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Friday, December 29, 2017

ये रिश्ते



हल्की सी ठेस
तोड़ जाती पल में
काँच से रिश्ते


कटु वचन 
छुईमुई से सच्चे 
शर्मिन्दा रिश्ते 


  गुस्से की आँधी  
टहनी से झरते
फूलों से रिश्ते 


बातों के शोले
अपमान की आग
झुलसे रिश्ते



चीरती बातें
मखमल से रिश्ते
काँटों से लोग


हुए एकाकी
जो सँवारे न रिश्ते
लगाए रोग


निर्मम धूप
चुरा कर ले गयी
रिश्तों की गंध


व्यर्थ हो गये
कागज़ के फूलों से
रिश्ते निर्गंध  


पूरा होने को
तरसते ही रहे
अधूरे रिश्ते


डाल से टूटे
जीवन सलिला में
बहते रिश्ते



साधना वैद






Tuesday, December 26, 2017

वह सर्दी की रात थी


वह सर्दी की रात थी
कड़कड़ाती ठण्ड थी
घना कोहरा था
बुझा बुझा सा अलाव था
सीली लकड़ियों से फैला
धुआँ ही धुआँ था चहुँ ओर
और थीं कडुआती आँखें !

घर से दूर
परिवार से दूर
अपने गाँव से दूर
उसे याद आ रही थीं
माँ के हाथ की बनी
चूल्हे से उतरी
गरम गरम रोटियाँ
बैंगन का भरता
और सिल बट्टे पर पिसी
मिर्च और लहसुन की
सुर्ख लाल चटनी !

इन नेमतों से दूर
बुझे अलाव के सामने
भूख से कुलबुलाती आँतों को
कस के घुटने से दबा
सर्द ज़मीन पर
पतली सी चादर से यथासाध्य
अपने तन को लपेटे
काँप रहा है वो
किस सुनहरे भविष्य की आस में
यह तो शायद वह
खुद भी नहीं जानता !

कहीं दूर से गाने की
आवाज़ आ रही है
“आगे भी जाने न तू
पीछे भी जाने न तू
जो भी है बस यही एक पल है”
उसका मन सहसा
बगावत कर उठता है
अगर वर्तमान का
यही एक पल सब कुछ है
तो नहीं चाहिए उसे यह
कँपकँपाती ठंडी रात
यह बर्फ सी सर्द ज़मीन
यह सीली लकड़ियों के धुँए से
कड़ुआती आँखें
यह बुझा अलाव और
गर्म चाय की
एक प्याली के लिए
तरसती जिह्वा !

एक निश्चय उसकी
इस उदासी को पल भर में
दूर कर जाता है 
उसे गाँव वापिस जाना है
कोई भी भौतिक लालसा
उसकी माँ से
उसके घर परिवार से
उसके गाँव से 
बढ़ कर हो ही नहीं सकती !

उसे जाना होगा
वापिस अपने घर
अपनों के बीच
अपनों के लिए
और खुद अपने भी लिए
और फिर इसके बाद
इस हाड़ कँपाती ठण्ड में भी
उसे बहुत गहरी नींद आई
जैसे एक नन्हा बालक
सो जाता है अपनी
माँ के आँचल में 
शांत बेसुध !
  


साधना वैद 





Saturday, December 16, 2017

राम तुम बन जाओगे




आओ तुमको मैं दिखाऊँ
मुट्ठियों में बंद कुछ 
लम्हे सुनहरे ,
और पढ़ लो 
वक्त के जर्जर सफों पर 
धुंध में लिपटे हुए 
किस्से अधूरे !
आओ तुमको मैं सुनाऊँ 
दर्द में डूबे हुए नगमात 
कुछ भूले हुए से,
और कुछ बेनाम रिश्ते
वर्जना की वेदियों पर
सर पटक कर आप ही
निष्प्राण हो 
टूटे हुए से !
और मैं प्रेतात्मा सी 
भटकती हूँ उम्र के 
वीरान से 
इस खण्डहर में 
कौन जाने कौन सी
उलझन में खोई,
देखती रहती हूँ 
उसकी राह 
जिसकी नज़र में 
पाई नहीं 
पहचान कोई ! 
देख लो एक बार जो 
यह भग्न मंदिर 
और इसमें प्रतिष्ठित 
यह भग्न प्रतिमा 
मुक्ति का वरदान पाकर 
छूट जाउँगी 
सकल इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे 
छूकर मुझे 
और मुक्त हो जायेगी 
एक शापित अहिल्या 
छू लिया तुमने 
उसे जो प्यार से 
निज मृदुल कर से !



साधना वैद


चित्र - गूगल से साभार

Saturday, December 9, 2017

बातों वाली गली – मेरी नज़र से



ये लीजिये ! इस ‘बातों वाली गली’ में एक बार जो घुस जाए उसका निकलना क्या आसान होता है ! इसकी उसकी न जाने किस-किस की, यहाँ की वहाँ की न जाने कहाँ-कहाँ की, इधर की उधर की न जाने किधर-किधर की बस बातें ही बातें ! और इतनी सारी बातों में हमारा तो मन ऐसा रमा कि किसी और बात की फिर सुध बुध ही नहीं रही ! आप समझ तो गए ना मैं किस ‘बातों वाली गली’ की बात कर रही हूँ ! जी यह है हमारी हरदिल अजीज़ बहुत प्यारी ब्लगर वन्दना अवस्थी दुबे जी की किताब ‘बातों वाली गली’ जिसमें उनकी चुनिन्दा एक से बढ़ कर एक २० कहानियाँ संगृहीत हैं ! सारी कहानियाँ एकदम चुस्त दुरुस्त ! मन पर गहरा प्रभाव छोड़तीं और चेतना को झकझोर कर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करतीं !

इन कहानियों को पढ़ कर इस बात का बड़ी शिद्दत से एहसास होता है कि नारी मन की गहराइयों को नाप लेने की वन्दना जी में अद्भुत क्षमता है ! यूँ तो सारी ही कहानियाँ बहुत बढ़िया हैं लेकिन कुछ कहानियों में नारी मन की अंतर्वेदना का वन्दना जी ने जिस सूक्ष्मता के साथ चित्रण किया है वह देखते ही बनता है ! इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते कई बार अचंभित हुई कि अरे मेरी तो कभी वन्दना जी से बात ही नहीं हुई फिर इस घटना के बारे में इन्हें कैसे पता चल गया  और इतने सटीक तरीके से इन्होंने इसे कैसे लिख दिया ! क्या यह भी संयोग है कि स्वयं पर बीती हुई अनुभूत बातें ठीक उसी प्रकार औरों के साथ भी बीती हों ? चित्रण इतना सजीव और सशक्त कि जैसे चलचित्र से चल रहे उस घटनाक्रम के हम स्वयं एक प्रत्यक्षदर्शी हों ! लेखिका की यह एक बहुत बड़ी सफलता है कि पाठक कहानियों के चरित्रों के साथ गहन तादात्म्य अनुभव करने लगते हैं ! भाषा और शैली इतनी सहज और प्रांजल जैसे किसी मैदानी नदी का एकदम शांत, निर्द्वन्द्व, निर्बाध प्रवाह !

नारी को कमतर आँकने की रूढ़िवादी पुरुष मानसिकता पर करारा प्रहार करती कहानियाँ ‘सब जानती है शैव्या’ और ‘प्रिया की डायरी’ बहुत सुन्दर बन पडी हैं ! कुछ कहानियाँ जो मन के बहुत करीब लगीं उनके नाम अवश्य लूँगी ! ‘अहसास’, ‘विरुद्ध’ और ‘बड़ी हो गयी हैं ममता जी’ मुझे विशेष रूप से बहुत अच्छी लगीं ! ‘दस्तक के बाद’, ‘नीरा जाग गयी है’, ‘बड़ी बाई साहेब’ और ‘डेरा उखड़ने से पहले’ कहानियों में हम भी स्त्री की हृदय की विषम वीथियों में जैसे वन्दना जी के हमराह बन जाते हैं ! ‘हवा उद्दंड है’, ‘बातों वाली गली’ और ‘आस पास बिखरे लोग’ वास्तव में इतनी यथार्थवादी कहानियाँ हैं कि ज़रा इधर उधर गर्दन घुमा कर देख लेने भर से ही इन कहानियों के पात्र सशरीर हमारे सामने आ खड़े होते हैं !

‘बातों वाली गली’ कहानी संग्रह की हर कहानी हमें एक नए अनुभव से तो परिचित कराती ही है हमारी ज्ञानेन्द्रियों को नए स्वाद का रसास्वादन भी कराती है !

पुस्तक नि:संदेह रूप से संग्रहणीय है ! इतने सुन्दर संकलन के लिए वन्दना जी को बहुत-बहुत बधाई ! वे इसी तरह स्तरीय लेखन में निरत रहें और हमें इसी प्रकार अनमोल अद्वितीय कहानियाँ पढ़ने को मिलती रहें यही हमारी शुभकामना है ! आपकी अगली पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी वन्दना जी ! हार्दिक अभिनन्दन !




साधना वैद 

Tuesday, December 5, 2017

A thing of beauty is a joy for ever and for everyone.



मीडिया वालों की बातें कभी भरपूर मनोरंजन करती हैं तो कभी कभी तीव्र झुँझलाहट से भी भर देती हैं ! शशि कपूर साहेब की प्रशंसा में कल से बिना कॉमा फुल स्टॉप के सारे चैनल वाले कशीदाकारी में लगे हुए हैं ! लगना भी चाहिए ! वे नि:संदेह रूप से हरदिल अजीज़ कलाकार थे और अपने जीवन में उन्होंने दर्शकों का भरपूर प्यार, इज्ज़त और शोहरत कमाई ! जितने अच्छे वे कलाकार थे उतने ही अच्छे इंसान भी थे और एक निहायत ही खूबसूरत और शानदार व्यक्तित्व के स्वामी थे ! उनके चाहने वालों में स्त्री और पुरुष सभी शामिल थे ! लेकिन हमारे खोजी पत्रकार न जाने कहाँ से आँकड़े जुटा लाते हैं कि उन पर हज़ारों लड़कियाँ मरती थीं ! बात अगर किसी हीरो की हो जैसे देवानंद, राज कपूर, राजेश खन्ना, ओम पुरी, विनोद खन्ना, शशि कपूर तो पत्रकारों की स्क्रिप्ट में उन पर मरने वाले प्रशंसकों में महिलाओं की संख्या कई गुना अधिक हो जाती है और यही बात जब किसी हीरोइन की हो जैसे मधुबाला, नूतन, मीना कुमारी, दिव्या भारती, स्मिता पाटिल तो यहाँ अपनी प्रिय अभिनेत्री पर मरने वाले प्रशंसकों में महिलाओं का स्थान पुरुष ले लेते हैं ! अभी तक यह रहस्य समझ में नहीं आया कि इतने सटीक आँकड़े इन्हें मिल कहाँ से जाते हैं !

अंग्रेज़ी में एक कहावत है, A thing of beauty is a joy for ever. मैं इस वाक्य में थोड़ी सा इज़ाफा और करना चाहती हूँ, A thing of beauty is a joy for ever and for everyone. जो वस्तु अनमोल है, अनुपम है, प्रशंसनीय है वह हर इंसान को समान रूप से एक सा सुख देती है फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ! राज कपूर, देवानंद, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना के प्रशंसक क्या पुरुष कम थे ? ना जाने कितने लोग उन्हीं की तरह रहने की, उन्हीं की स्टाइल के सूट, बूट, कोट, पेंट, चश्मे, टोपी पहनने की और उन्हीं की अदा से बोलने की कोशिश किया करते थे ! महिलायें तो सिर्फ प्रशंसा भरी नज़रों से ही देखती होंगी लेकिन पुरुष तो स्वयं को पूरी तरह से उन्हीं के अवतार में ढालने की कोशिश किया करते थे ! उसी तरह अभिनेत्रियों की खूबसूरती के जितने दीवाने पुरुष होते हैं महिलायें भी उनसे कम दीवानी नहीं होतीं ! आशा पारिख, साधना की हेयर स्टाइल, रेखा की तरह साड़ी पहनने का अंदाज़, करीना, करिश्मा की मेक अप टिप्स, प्रियंका, ऐश्वर्या, दीपिका और विद्द्या बालन की लुक्स की दीवानी स्त्रियाँ अधिक हैं और स्वयं को उन्हीं के अनुरूप बनाने की भरपूर कोशिश किया करती हैं ! बाज़ारों में ड्रेसेज भी महिलाओं को वही लुभाती हैं जिनके बारे में सेल्समेन बता देते हैं कि फलां फिल्म में दीपिका ने या प्रयंका ने ऐसी ही ड्रेस पहनी थी ! क्या किसी अभिनेता या अभिनेत्री की सफलता को आँकने का एक यही पैमाना होता है कि अभिनेता पर कितनी लड़कियाँ या अभिनेत्री पर कितने युवक प्राण न्यौछावर करने के लिए तत्पर हैं !

ज़रा सोचिये अमिताभ बच्चन को फिल्म की शूटिंग के दौरान जब गंभीर चोट लगी थी तब उनके जीवन की सलामती के लिए क्या सिर्फ महिला प्रशंसकों ने ही दुआ की थी ? सारा हिन्दुस्तान तब प्रार्थनाघर में तब्दील हो गया लगता था और हर इंसान के हाथ उनके जीवन की रक्षा की दुआ माँगने के लिए ऊपर उठे हुए थे ! कलाकार की कला और उसका आकर्षक व्यक्तित्व सबको समान रूप से लुभाता है इसलिए पत्रकार किसी भी कलाकार की प्रशंसा करते समय इस प्रकार की उक्तियों से बचें तो अच्छा होगा !

साधना वैद 

Saturday, December 2, 2017

दूषित हवा



कितना भी चाहे वह बचना
कितना भी चाहे मुँह फेरना  
गाहे बगाहे रोज़ ही उसकी  
मुलाक़ात हो जाती है,
उस सबसे जिससे वह  
पूरी शिद्दत से दूर बहुत दूर
रहना चाहती है  
लेकिन लाख कोशिश करने पर भी
बचने की कोई और सूरत
निकाल नहीं पाती है !
बचना चाहती है वह
उस कड़वाहट से
जो इन दिनों तुम्हारी वाणी का
आभूषण बन गयी है,
और जिसकी कर्णकटु खनक
उसकी बर्दाश्त के बाहर हो गयी है !  
उस नफरत से
जो तुम्हारे छोटे से दिल की
बहुत थोड़ी सी जगह में   
समा न सकने की वजह से
अक्सर ही बाहर छलक जाती है,
और घर में सबके
सुखमय संसार को
पल भर में ही
विषमय कर जाती है !
उस तल्खी से
जिसे इन दिनों शायद
तुमने अपनी ढाल बना लिया है,
और उस कवच की आड़ में
तानों उलाहनों के तीक्ष्ण बाण चला
सबके कोमल दिलों को
तीरंदाजी का पटल बना लिया है !
उस अजनबियत से
जिसे ओढ़ कर तुम अपनी
बदसूरती को सायास
ढकने का प्रयास करते हो,
और अपनी हर बेढंगी चाल से
परत दर परत खोल-खोल कर  
खुद को ही उघाड़ा करते हो !
कितना मुश्किल हो गया है
इतनी दूषित हवा में साँस लेना  
ताज़ी हवा के एक झोंके की
सख्त दरकार है कि
दम घुटने से
कुछ तो राहत मिले
कुछ तो साँसें ठिकाने से आयें
कुछ तो जीने की चाहत खिले !

साधना वैद