आओ तुमको मैं दिखाऊँ
मुट्ठियों में बंद कुछ
लम्हे सुनहरे ,
और पढ़ लो
वक्त के जर्जर सफों पर
धुंध में लिपटे हुए
किस्से अधूरे !
आओ तुमको मैं सुनाऊँ
दर्द में डूबे हुए नगमात
कुछ भूले हुए से,
और कुछ बेनाम रिश्ते
वर्जना की वेदियों पर
सर पटक कर आप ही
निष्प्राण हो
टूटे हुए से !
और मैं प्रेतात्मा सी
भटकती हूँ उम्र के
वीरान से
इस खण्डहर में
कौन जाने कौन सी
उलझन में खोई,
देखती रहती हूँ
उसकी राह
जिसकी नज़र में
पाई नहीं
पहचान कोई !
देख लो एक बार जो
यह भग्न मंदिर
और इसमें प्रतिष्ठित
यह भग्न प्रतिमा
मुक्ति का वरदान पाकर
छूट जाउँगी
सकल इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे
छूकर मुझे
और मुक्त हो जायेगी
एक शापित अहिल्या
छू लिया तुमने
उसे जो प्यार से
निज मृदुल कर से !
साधना वैद
चित्र - गूगल से साभार
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