हल्की सी ठेस
तोड़ जाती पल में
काँच से रिश्ते
कटु वचन
छुईमुई से सच्चे
शर्मिन्दा रिश्ते
गुस्से की आँधी
टहनी से झरते
फूलों से रिश्ते
बातों के शोले
अपमान की आग
झुलसे रिश्ते
चीरती बातें
मखमल से रिश्ते
काँटों से लोग
हुए एकाकी
जो सँवारे न रिश्ते
लगाए रोग
निर्मम धूप
चुरा कर ले गयी
रिश्तों की गंध
व्यर्थ हो गये
कागज़ के फूलों से
रिश्ते निर्गंध
पूरा होने को
तरसते ही रहे
अधूरे रिश्ते
डाल से टूटे
जीवन सलिला में
बहते रिश्ते
साधना वैद
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