विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान के लिये या अभूतपूर्व मुकाम हासिल करने के लिये सम्मानित किया जाना किसे अच्छा नहीं लगता ! बहुत प्रसन्नता होती है जब आपके कार्यों को और आपकी उपलब्धियों को सराहा जाता है और मान्यता मिलती है ! लेकिन इस प्रक्रिया के लिये भी क्या छोटी बड़ी लकीरें खींचना ज़रूरी है ? पद्मश्री. पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न सभी राष्ट्रीय पुरस्कार हैं और सभीका अपना महत्त्व है ! जिसने भी इन्हें प्राप्त किया है वह स्वयं विशिष्ट एवं सम्मानित हो जाता है फिर इन पुरस्कारों को छोटा बड़ा या कमतर और बेहतर बना कर उनके महत्त्व को कम ज्यादह करना उचित नहीं लगता ! मेरे विचार से एक बार जिसे यह पुरस्कार मिल गया उसे दोबारा उसी कैटेगरी की उपलब्धि के लिये इन्हीं में से किसी दूसरे पुरस्कार के लिये नामांकित या चयनित नहीं किया जाना चाहिये !
राष्ट्रीय पुरस्कारों में ‘भारत रत्न’ भारत का सर्वोच्च सम्मान तथा ‘पद्मश्री’ सबसे छोटा सम्मान माना जाता है ! सम्मानित व्यक्तियों में भी हम उन्हें छोटा सम्मानित या बड़ा सम्मानित बना कर कहीं उनके क्रियाकलापों, उनकी उपलब्धियों और उनकी निष्ठा और प्रतिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह तो नहीं लगा रहे ? जिसे पद्मश्री मिला वह छोटे दर्जे का कलाकार या समाजसेवी हो गया और जिसे पद्म विभूषण या भारत रत्न मिल गया उसकी लकीर खुद ब खुद बड़ी होकर पहले वाले को बौना बना गयी ! क्या यह प्रक्रिया मनुवादी मानसिकता की द्योतक नहीं ?
मेरे विचार से यह गलत है ! पुरस्कार देने के लिये जितनी भी श्रेणियों और क्षेत्रों को चुना जाये उन्हें चार वर्गों में बाँट देना चाहिये ! हर वर्ग के लिये एक ही पुरस्कार होना चाहिये ! जैसे उदाहरण के लिये पद्मश्री फिल्मो, संगीत या उससे जुडी शाखाओं के लिये हो, पद्मभूषण खेलों के लिये या समाज सेवा में विशिष्ट योगदान के लिये हो, पद्मविभूषण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाने के लिये हो, भारत रत्न अदम्य शौर्य, साहस एवं बहादुरी के लिये हो ! इत्यादि ! सभी श्रणियों और उनकी शाखाओं उपशाखाओं को इन्हीं चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है ! एक श्रेणी से जुड़े व्यक्ति को यह पुरस्कार मिलना स्वयमेव उसे विशिष्ट बना देता है ! सारे पुरस्कार अपने अपने क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार माने जाने चाहिये ! ऐसा नहीं होना चाहिये कि जिसे पद्मश्री मिल गया वह स्वयं को उस व्यक्ति के सामने छोटा और अपमानित या अवहेलित महसूस करे जिसे समान धर्मी होने के बावजूद भी भारत रत्न मिल गया हो ! ये सारे ही तरीके त्रुटिपूर्ण प्रतीत होते हैं ! इसलिए सबसे सही तरीका यही दिखाई देता है कि जितनी भी श्रेणियाँ और क्षेत्र पुरस्कार देने के लिये चुने जाते हैं उन्हें इन चार श्रेणियों में विभाजित कर देना चाहिये और हर फील्ड से बहुत सोच समझ कर पुरस्कार देने के लिये व्यक्ति का चयन किया जाना चाहिये क्योंकि यही उसके लिये सर्वोच्च सम्मान होगा ! किसी भी व्यक्ति को एक ही श्रेणी में विशिष्ट उपलब्धि के लिये अगली बार कोई दूसरा पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिये ! यदि उसे दोबारा भी उसी उपलब्धि के लिये सम्मानित किया जा रहा है जिसके लिये उसे पहली बार चुना गया था तो उसे वही पुरस्कार दिया जाना चाहिये जो उसे पहले मिल चुका है ! जैसे किसीको फिल्मों में अभूत पूर्व योगदान के लिये एक बार पद्मश्री से नवाजा गया है तो इसी प्रकार की उपलब्धि के लिये उसे पद्म विभूषण या भारत रत्न नहीं दिया जाना चाहिये ! दूसरी बार भी उसे पद्मश्री ही मिलना चाहिये ! हाँ यदि वह किसी अन्य श्रेणी में भी विशिष्ट मुकाम हासिल करता है तो अवश्य उसे दूसरा सम्मान दिया जा सकता है ! कभी रिपोर्टिंग करनी हो तो कहा जा सके इन्हें फिल्मों में विशिष्ट योगदान के लिये दो बार पद्मश्री से सम्मानित किया गया और खेल में विशिष्ट योगदान के लिये तीन बार पद्मभूषण से सम्मानित किया गया ! इससे किसीको भी हीन भावना से ग्रस्त नहीं होना पड़ेगा और सभी के साथ न्याय हो सकेगा !
वैसे व्यक्ति का काम ही उसके यश को विस्तीर्ण करता है ! भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ जिन ४१ विभूतियों को मिला उनमें से अधिकाँश व्यक्तियों के नाम शायद आज की पीढ़ी के युवाओं ने सुने भी नहीं होंगे ! लेकिन महात्मा गाँधी जिन्हें यह सम्मान आज तक नहीं मिला आज भी जनमानस के हृदय में वास करते हैं और विश्व के कोने कोने में उनके यश का प्रकाश फैला हुआ है ! निस्वार्थ सेवा, विशिष्ट उपलब्धियाँ या ईमानदार मेहनत से पाये गये मुकाम किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते उनका आकलन सारा विश्व स्वयं कर लेता है !
साधना वैद
छोटे-बडे का अंतर तो रहेगा ही।
ReplyDelete...... लेकिन महात्मा गाँधी जिन्हें यह सम्मान आज तक नहीं मिला आज भी जनमानस के हृदय में वास करते हैं और विश्व के कोने कोने में उनके यश का प्रकाश फैला हुआ है ! निस्वार्थ सेवा, विशिष्ट उपलब्धियाँ या ईमानदार मेहनत से पाये गये मुकाम किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते उनका आकलन सारा विश्व स्वयं कर लेता है !
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट और समस्या का हल भी अच्छा लगा
कोइ भी अच्छा काम किसी पुरस्कार का मोहताज नहीं होता |कितने ही लोगों ने कुर्वानी दी देश के लिए पर क्या सभी पुरस्कार के किये किया गया था |जो भी सम्मान मिलता है वह भी ना तो छोटा होता है ना ही बड़ा |
ReplyDeleteलेख अच्छा लगा बधाई |
आशा
सम्मान कोई भी हो - छोटा, बड़ा नहीं होता , सम्मान तो बस सम्मान है
ReplyDeleteAgree .
ReplyDeleteनिस्वार्थ सेवा, विशिष्ट उपलब्धियाँ या ईमानदार मेहनत से पाये गये मुकाम किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते उनका आकलन सारा विश्व स्वयं कर लेता है !
bahut achcha prashn uthayeen hain aap......purashkaron ki to jaise in dinon hod si lagi hui hai.
ReplyDeleteनिस्वार्थ सेवा, विशिष्ट उपलब्धियाँ या ईमानदार मेहनत से पाये गये मुकाम किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते उनका आकलन सारा विश्व स्वयं कर लेता है !
ReplyDeleteबस ध्यान देने योग्य बात यही है....ये पुरस्कार...किसी व्यक्ति को नहीं खुद को सम्मानित करते हैं....इन पुरस्कारों को ग्रहण करनेवाले ऐसे महान कार्य कर गए होते हैं कि उसका आकलन ये पुरस्कार नहीं कर सकते...
पुरस्कारों के वितरण का हल तो अच्छा सुझाया है ... बहुत बार तो सम्मान मृत्योपरांत मिलते हैं ..
ReplyDelete.
निस्वार्थ सेवा, विशिष्ट उपलब्धियाँ या ईमानदार मेहनत से पाये गये मुकाम किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते उनका आकलन सारा विश्व स्वयं कर लेता है !
सटीक कहा है .. अच्छी और विचारणीय पोस्ट
आपका सुझाव विचारणीय है ...और इसपे बहस होनी चाहिए ..
ReplyDeleteसटीक कहा है .. अच्छी और विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteनहीं
ReplyDeleteaaj apka ye lekh sach me apki profile 'NYAYPRIY MAHILA' se match karta hai. aisa nahi ki pahle aapke lekhon se aisi nayaypriyeta na jhalki ho. lekin aaj itni gehri soch aur is level ke mudde par lekh likhna apne aap me aapki chhavi ko sabit karta hai.
ReplyDeleteadbhut soch,vicharneey lekh.
अच्छी और विचारणीय पोस्ट.....
ReplyDeleteआदरणीय मौसीजी ,सादर वन्दे ,कितना सही लिखा कि सम्मान का अंतर उचित नहीं है | विचारनीय पोस्ट है| मेरे ख्याल से कोई भी कार्य पुरस्कार का मोहताज नहीं होता है ,यदि निःस्वार्थ भाव से या मानव कल्याण केलिए किये गए कार्यों का मूल्यांकन कर उसका सार्थक उपयोग हो / उसका सही दिशा में अनुसरण हो तो भी कर्ता स्वयं को पुरस्कृत समझता है ,मेरा व्यक्तिगत अनुभव तो यही कहता है |
ReplyDeleteकाम किसी पुरस्कार का मोहताज नहीं होता
ReplyDeleteसटीक कहा है .. अच्छी और विचारणीय पोस्ट