जाने क्यों
आज सारे शब्द चुप हैं ,
सपने मूर्छित हैं ,
भावनायें विह्वल हैं ,
कल्पनाएँ आहत हैं ,
गज़लें ग़मगीन हैं ,
इच्छाएं घायल हैं ,
अधर खामोश हैं ,
गीतों के सातों
स्वर सो गये हैं
और छंद बंद
लय ताल सब
टूट कर
बिखर गये हैं !
मेरे अंतर के
चिर परिचित
निजी कक्ष के
नितांत निर्जन,
सूने, नीरव,
एकांत में
आज यह कैसी
बेचैनी घिर आई है
जो हर पल व्याकुल
करती जाती है !
कहीं कुछ तो टूटा है ,
कुछ तो बिखर कर
चूर-चूर हुआ है ,
जिसे समेट कर
एक सूत्र में पिरोना
मुश्किल होता
जा रहा है !
मुझे ज़रूरत है
तुम्हारी मुट्ठी में
बँधी उज्ज्वल धूप की ,
तुम्हारी आँखों में
बसी रेशमी नमी की ,
तुम्हारे अधरों पर
खिली आश्वस्त करती
मुस्कुराहट की ,
और तुम्हारी
उँगलियों के
जादुई स्पर्श की !
क्योंकि मेरे मन पर
छाये हर अवसाद का
घना कोहरा तभी
छँटता है
जब मेरे मन के
आकाश पर
तुम्हारा सूरज
उदित होता है !
साधना वैद
ek k bina sach me dusra adhura mehsoos karta hai...kaise ajeeb bat hai na ki apne hi man ki kaliya khilne k liye dusre ke sparsh aur ujale ki jarurat hoti hai. lekin yahi pyar ka saty hai. koi kitna bhi magroor ban le...lekin pyar sare garoor aur sari magroorta par havi ho jata hai.
ReplyDeletemarmsparshi abhivyakti.
"मेरे मन पर छाए अवसाद का कोहरा जभी हटता है
ReplyDelete------तुम्हारा सूरज उदित होता है "
बहुत सुन्दर पंक्ति |
अच्छी रचना |
बधाई
आशा
बहुत खूब.क्या बात है.
ReplyDeleteजब मेरे मन के
ReplyDeleteआकाश पर
तुम्हारा सूरज
उदित होता है !
यादों से घिरी सुंदर प्रस्तुति ...
शुभकामनायें.
सूर्य निकले तभी तो कोहरा हटेगा और रात में चाँद भी चमकेगा !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण !
आभार ..!
har ek shabd men jaan daal di hai aapne.....bahot khoobsurat kavita hai......
ReplyDeleteमन पर सूरज उदित हो और कल्पनाएँ साकार हों ..शब्द गुंजरित हों यही कामना है ..
ReplyDeleteअवसाद ग्रसित ह्रदय को किसी सूरज के स्नेहिल स्पर्श की जरूरत होती ही है...पर सब इतने भाग्यशाली कहाँ होते हैं.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता
बहुत ही सुंदर ,भाव पूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत सुंदर साधना जी,...
ReplyDeleteसुंदर पन्तियों से सजी बेहतरीन रचना,...बधाई
मेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है,....
very nice .
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...बधाई
ReplyDeleteक्योंकि मेरे मन पर
ReplyDeleteछाये हर अवसाद का
घना कोहरा तभी
छँटता है
जब मेरे मन के
आकाश पर
तुम्हारा सूरज
उदित होता है !
वाह! अवसाद का सुन्दर हल.
निश्छल समर्पण.
आपकी भावपूर्ण प्रस्तुति से मन मग्न हो गया है जी.
आपकी अनुपम प्रस्तुति संगीता जी की हलचल का
नायाब नगीना है,साधना जी.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
वाह ...बहुत बढि़या ।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
अवसाद का कोहरा और तुम्हारा सूरज ..... बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जितनी तारीफ की जाय कम ही है
ReplyDeleteक्योंकि मेरे मन पर
ReplyDeleteछाये हर अवसाद का
घना कोहरा तभी
छँटता है
जब मेरे मन के
आकाश पर
तुम्हारा सूरज
उदित होता है ! वाह वाह ……………नारी मन के कोमल भावो का सशक्त चित्रण्।
भावों से नाजुक शब्द......बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteइन पलों में आदमी खुद को जीता है। खुद को पाता है। तभी सब कुछ संवर जाता है।
ReplyDeleteअपनी तन्हाई में बसे बेकल मन के संबल को तलाशती , प्रतीक्षरत ..................
ReplyDeleteअपनी तन्हाई में बसे बेकल मन के संबल को तलाशती , प्रतीक्षरत ..................
ReplyDeleteएक नयी सुबह की शरुआत करती सुंदर कविता.
ReplyDeleteख़ूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
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