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Saturday, April 11, 2015

सूर्योदय से सूर्यास्त तक

 
बालारुण ने
खोल दीं मुँदी आँखें 
भोर हो गयी ! 

चूम के माथा 
सूरज की किरणें 
प्रात जगातीं !

उदित हुआ 
सुदूर क्षितिज में 
बाल भास्कर
जागी सम्पूर्ण सृष्टि 
मुदित हुई धरा ! 

आँगन  मेरे 
झिलमिल करतीं
सूर्य रश्मियाँ ! 

प्रखर ताप 
खिले अमतास
सजे पलाश ! 

प्रचण्ड ताप 
बुझाए जठराग्नि 
कैसी ये लीला ! 

आँख मिचौली 
खेलें रवि बादल 
धरा सुस्ताये ! 

जुटा हुआ है 
सदियों से सूरज 
सुखा पायेगा 
अतल रत्नाकर ?
या मान लेगा हार ?

वर्षा की बूँदें 
रवि की शरारतें 
खिली वसुधा 
सकल सृष्टि खुश 
सजा इन्द्रधनुष ! 

अतल सिंधु 
डूबता दिनकर 
सूर्यास्त बेला 
पसरता अँधेरा 
आगमन संध्या का ! 

 

साधना वैद


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