बालारुण ने
खोल दीं मुँदी आँखें
भोर हो गयी !
चूम के माथा
सूरज की किरणें
प्रात जगातीं !
प्रात जगातीं !
उदित हुआ
सुदूर क्षितिज में
बाल भास्कर
जागी सम्पूर्ण सृष्टि
मुदित हुई धरा !
आँगन मेरे
झिलमिल करतीं
सूर्य रश्मियाँ !
प्रखर ताप
खिले अमतास
सजे पलाश !
प्रचण्ड ताप
बुझाए जठराग्नि
कैसी ये लीला !
आँख मिचौली
खेलें रवि बादल
धरा सुस्ताये !
जुटा हुआ है
सदियों से सूरज
सुखा पायेगा
अतल रत्नाकर ?
या मान लेगा हार ?
या मान लेगा हार ?
वर्षा की बूँदें
रवि की शरारतें
खिली वसुधा
सकल सृष्टि खुश
सजा इन्द्रधनुष !
अतल सिंधु
डूबता दिनकर
सूर्यास्त बेला
पसरता अँधेरा
आगमन संध्या का !
साधना वैद
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