जहाँ तुम कहोगे वहीं मैं चलूँगी
जिधर पग धरोगे उधर पग धरूँगी !
जिधर पग धरोगे उधर पग धरूँगी !
जो चाहोगे मैं खुद को छोटा करूँगी
मैं पैरों के नीचे समा के रहूँगी !
जो चाहोगे दीवार पर जा चढूँगी
मैं तुमसे भी बढ़ कर ज़मीं नाप लूँगी !
मैं तुमसे भी बढ़ कर ज़मीं नाप लूँगी !
मैं पानी की लहरों पे चलती रहूँगी
मैं दुर्गम पहाड़ों पे चढ़ती रहूँगी !
मैं दुर्गम पहाड़ों पे चढ़ती रहूँगी !
जिधर तुम मुड़ोगे मैं संग में मुड़ूँगी
मैं हर एक कदम संग तुम्हारे बढूँगी !
मैं हर एक कदम संग तुम्हारे बढूँगी !
अंधेरों में तुमको मैं घिरने न दूँगी
अकेला कभी तुमको रहने न दूँगी !
अकेला कभी तुमको रहने न दूँगी !
रहूँगी सदा साथ परछाईं बन कर
मगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी !
मगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी !
मगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी !
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteवाह !बहुत ख़ूब दी जी
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteरहूँगी सदा साथ परछाईं बन कर
ReplyDeleteमगर शर्त है दीप बुझने न दूँगी
बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमस्कार
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी! आभार आपका !
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका!
ReplyDeleteआपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी! आभार आपका!
ReplyDeleteThanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!
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