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Monday, February 23, 2015

राजा के बकरी जैसे कान --- बाल कथा





लोक कथाएं अमर होती हैं इसीलिये तो पता नहीं कितनी शताब्दियों के बाद भी आज तक पढ़ी और सुनी जा रही हैं ! हालाँकि समय और सामाजिक परिवेश के हिसाब से इनमें परिवर्तन होता रहा है ! लोक कथाओं में किस कथा को अधिक लोकप्रिय माना जाए इसका एक पैमाना यह भी है कि उसे कितनी भाषाओं और कितने देशों में आज भी पढ़ा और सुना जा रहा है ! ऐसी ही एक कहानी है ‘राजा के बकरी जैसे कान’ !

एक राजा था ! उसके साथ कुछ ऐसा हुआ कि जब वो बड़ा हुआ तो उसके कान लंबे होने लगे ! पहले तो वह उन्हें अपने बालों में छिपाता रहा ! पर जब अधिक बड़े हो गये तो राजा हर समय पगड़ी पहनने लगा ! किसीको भी राजा की इस परेशानी का पता नहीं था ! कहीं लोग उसका मज़ाक न उड़ायें इस डर से उसने बाल कटवाना भी बंद कर दिया !

 राजा के यहाँ प्रति वर्ष एक उत्सव मनाये जाने की परम्परा थी जिसमें नृत्य, संगीत और महाभोज होता था ! दूर-दूर से मेहमान आते थे ! राजा के बाल अब बहुत ही ज्यादह बड़े हो गये थे और उत्सव के लिये उन्हें कटवाना अति आवश्यक हो गया था ! उसने एक नाई को अपने महल में बुलवाया ! नाई ने उसके बाल काटे ! पर राजा के बाल कट जाने के बाद किसीने भी उस नाई को फिर दोबारा शहर में नहीं देखा ! नाई के घरवाले उसे खोजते ही रहे ! राजा के डर के मारे किसी की भी कोई सवाल करने की हिम्मत नहीं हुई !

ऐसे ही हर साल उत्सव के समय एक नाई शहर से लापता होने लगा ! नाई बिरादरी में राजा के बुलावे का आतंक छा गया ! जिसे भी बुलाया जाता वह डर से थर-थर काँपने लगता ! फिर यह तय हुआ कि हर साल कागज़ की पर्ची डाल कर नाई का चुनाव हो कि राजा के पास किसे भेजा जाए !

अब क्या हुआ कि एक साल लॉटरी में एक कम उम्र के नाई डुमडुम का नाम निकला जिसकी माँ विधवा थी और उसका एक मात्र सहारा उसका यही इकलौता बेटा था ! डुमडुम की परेशान माँ रोती बिलखती राजा के पास पहुँची और उससे किसी दूसरे नाई को बुला लेने की फ़रियाद करने लगी ! राजा ने भी महसूस किया कि नाइयों के इस तरह लापता होने से उसकी बहुत बदनामी हो रही है ! उसने डुमडुम की माँ को यह विश्वास दिलाया कि उसका बेटा उसके पास सकुशल लौट आएगा ! राजा ने नाई को अकेले में बुलाया और उसे ताकीद की, ‘तुम्हें उत्सव के लिये मेरे बाल खूब अच्छी तरह से काटने हैं ! भरपूर इनाम भी मिलेगा पर खबरदार बाल काटते समय तुम्हें जो कुछ भी दिखाई दे उसका ज़िक्र तुम किसीसे भी नहीं करोगे ! अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हारी जान की खैर नहीं’ !

डुमडुम फ़ौरन मान गया ! बाल काटते समय उसने देख लिया कि राजा के कान तो बकरी जैसे हैं ! पर तभी उसको राजा की धमकी याद आ गयी ! वह चुपचाप अपने काम में लग गया ! राजा से भरपूर इनाम लेकर वह अपने घर आ गया ! माँ उसको सही सलामत देख कर बहुत प्रसन्न हुई !

डुमडुम अपने घर आकर प्रसन्न तो था पर राजा के जैसे अनोखे कान उसने देखे थे वह नज़ारा हर समय उसकी आँखों के सामने घूमता रहता था ! राजा की धमकी से डरा हुआ वह यह बात किसीको बता भी नहीं सकता था ! कहीं गलती से भी कोई बात मुँह से ना निकल जाए इसलिए उसने घर से निकलना ही बंद कर दिया ! वह बीमार रहने लगा ! चिंतित माँ हकीम को बुला कर लाई ! जिसने तरह-तरह की दवाएं दीं पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ ! हकीम बूढ़ा और अनुभवी था ! उसने नाई से पूछा, ‘कहीं तुम अपने मन में कोई बात छिपा तो नहीं रहे हो ? यदि ऐसा है तो दवा असर नहीं करेगी’ ! नाई बोला, ‘आपने अंदाज़ तो ठीक लगाया है ! पर वो बात ना तो मैं आपको बता सकता हूँ ना किसी और को ! ऐसा करने के लिये मैंने किसी से वादा भी किया है और कसम भी खाई है’ ! हकीम ने कहा, ‘कोई बात नहीं ! इस समस्या का भी एक हल है ! तुम जंगल में जाओ वहाँ पर अपने मन की बात किसी पेड़ या पौधे से कह दो ! तुम्हारा जी भी हल्का हो जाएगा, तुम जल्दी ही स्वस्थ भी हो जाओगे और तुम्हारी कसम भी नहीं टूटेगी’ !

डुमडुम ने ऐसा ही किया ! बीच जंगल में एक शीशम का पेड़ था ! जिसका तना खोखला था ! उसीमें मुँह लगा कर डुमडुम ने राजा के बकरी जैसे कान होने की सारी कहानी सुना डाली ! कहानी सुना कर उसे ऐसा लगा जैसे उसके सिर से मनों बोझ उतर गया हो ! वह खुशी-खुशी घर लौट आया और जल्दी ही पूरी तरह स्वस्थ भी हो गया !

धीरे-धीरे एक साल बीत गया ! राजमहल में फिर से नये उत्सव की तैयारियाँ होने लगीं ! दरबार के संगीतकार नयी धुनों को गाने बजाने का अभ्यास करने लगे ! पर एक अजब बात हुई ! उन्होंने देखा कि पुराने सारे वाद्यों की लकड़ी चटक गयी है और वे बेसुरे हो गये हैं ! आनन फानन में वाद्य यंत्र बनाने वाले कारीगरों को बुलवाया गया और उन्हें नये बाजे बनाने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी ! लकड़ी की तलाश में वे लोग उसी जंगल में गये जहाँ खोखले तने वाला शीशम का पेड़ खड़ा था ! पेड़ अब बिलकुल सूख गया था इसलिये नये वाद्य बनाने के लिये वह सबसे उपयुक्त माना गया ! शीशम के इसी पेड़ को कटवा कर नये वाद्य बनाए गये और संगीतकारों को सौंप दिए गये !



उत्सव के लिये राजा ने डुमडुम को बुलवा कर फिर अपने बाल कटवाए ! निश्चित दिन पर समारोह आरम्भ हुआ ! राजा सज संवर कर सिंहासन पर बैठे ! अन्य सभासद और गणमान्य अतिथि भी कुर्सियों पर विराजमान हुए ! प्रजा जन सब महल के प्रांगण में उपस्थित हुए ! संगीतज्ञों ने संगीत की पहली धुन छेड़ी ! शांत रस और भक्ति भाव की ऐसी धारा बह निकली कि सभी लोग आँख मूँद कर झूमने लगे ! जब यह संगीत समाप्त हुआ तो कलाकारों ने दूसरी धुन बजाई ! नृत्य का अदभुत संगीत बजने लगा ! जो जहाँ खड़ा था मंत्रमुग्ध हो नाचने लगा ! जो बैठे थे वे भी पैरों से ताल देकर बैठे-बैठे ही थिरकने लगे ! इस धुन के बाद संगीत कारों ने जब तीसरी धुन छेड़ी तो लोगों ने वीर रस की ऐसी चमत्कारी धुन सुनी कि उनकी बाहें फड़कने लगीं और वे ओज से भर उठे ! जब यह धुन बंद हुई तो सभी कहने लगे कि ऐसा संगीत तो इससे पहले कभी नहीं सुना था !

भोजन का समय हो चुका था ! राजा ने शाही संगीतकार को अपने पास बुलाया और तारीफ़ करते हुए कहा, ‘इस साल तो आपने कमाल ही कर दिया ! पर अब बस एक धुन और बजा कर विराम दीजिए ! भोज का समय हो रहा है उसके बाद और भी कई कार्यक्रम होने हैं ! वैसे अब आप क्या बजाने वाले हैं ?” शाही संगीतकार बोला, ‘महाराज मुझे नहीं पता कि मैं क्या बजाऊँगा ! सच तो यह है कि ये तीनों धुनें भी हमने नहीं बनाई थीं ! हमारी उंगलियाँ वाद्य यंत्रों पर अपने आप ही चल रही थीं और यंत्र अपने आप ही ऐसा अदभुत संगीत हमसे बजवा रहे थे !’ राजा ने कहा, ‘आप बड़े संगीतकार ही नहीं एक विनम्र व्यक्ति भी हैं ! खैर चलिए अब अपना आख़िरी गीत सुना दीजिए’ !

संगीत आरम्भ हुआ ! मधुर पर विचित्र-विचित्र धुनें बजने लगीं ! लोग उत्सुक होकर सुनने लगे ! तभी एक यंत्र से आवाज़ आई, ‘राजा के बकरी जैसे कान.... ! राजा के बकरी जैसे कान.... !’ सब आश्चर्य चकित होकर एक दूसरे को देखने लगे ! सारा माहौल जैसे सन्न हो गया ! राजा ने भी सुना ! तभी दूसरे यंत्र से आवाज़ आई,  ‘तुझसे किसने कहा....! तुझसे किसने कहा.... ?‘ अब तीसरे यंत्र से आवाज़ आई, ‘डुमडुम नाई ने कहा....! डुमडुम नाई ने कहा.... !’ पहला यंत्र फिर से बोला, ‘राजा के बकरी जैसे कान ... राजा के बकरी जैसे कान ... !‘ फिर तो जैसे कोरस शुरू हो गया ! सारे बाजे बार-बार यही धुन सुनाने लगे ! प्रजा जन आपस में हैरानी से खुसुर पुसुर करने लगे ! सहमे से राज दरबारी राजा की तरफ देखने लगे ! राजा पहले तो क्रोध से खड़ा हो गया  और वहाँ से जाने के लिये मुड़ा फिर कुछ सोच के रुक गया और अपनी पगड़ी सम्हालने लगा जो अचानक ही खुल गयी और ज़मीन पर गिर गयी ! राजा के बकरी जैसे कान अब सबको साफ-साफ़ दिखाई दे रहे थे ! संगीत थम चुका था और हर तरफ सन्नाटा पसर चुका था ! संयत होकर राजा ने सबसे भोज का आग्रह किया और हाथ जोड़ कर सबसे विदा ले महल के अंदर चला गया !

अंदर जाकर राजा ने नौकरों को आदेश दिया, ‘डुमडुम हज्जाम को फ़ौरन पकड़ कर लाओ !’ और खुद शीशे के सामने बैठ कर अपने कानों को देखने लगा और सोचने लगा जो बात मैंने इतने दिन से छिपाई थी वह बात आज सबको मालूम हो गयी ! .... हज्जाम ने धोखा दिया है ! ... उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी ! .... लोग क्या सोच रहे होंगे ! ... शायद सब मुझ पर हँस रहे होंगे ! ... हँसने दो .... ! मैंने तो सदा प्रजा की भलाई के लिये ही काम किया है ! ... क्या मैं एक अच्छा राजा नहीं हूँ ? ... शारीरिक दोष तो ईश्वर की इच्छा से होते हैं इसमें लज्जित होने की क्या बात है !’

तभी सेवक डुमडुम को ले आये ! राजा ने उससे कहा, मैंने तुम पर विश्वास किया लेकिन तुमने मुझे धोखा दिया ! जिस बात को मैंने मना किया था वह बात तुमने सबको बता दी ! डुमडुम बोला, ’महाराज मैंने तो किसीसे भी कुछ नहीं कहा !’ तभी उसे अपनी बीमारी की बात याद आई और राजा को खोखले पेड़ वाली सारी बात सच-सच बता दी ! राजा को अब कुछ-कुछ बात समझ में आने लगी कि क्यों संगीतकार यह कह रहा था कि सारी धुनें अपने आप ही निकल रही हैं ! राजा ने डुमडुम को माफ कर दिया और प्रजा के सामने आगे से बिना पगड़ी के ही जाने का निर्णय लिया ! बाद में उसने उन नाइयों के परिवारों को भी बुलवा कर उचित धन राशि देकर विदा किया जो पिछले वर्षों में लापता हो गये थे !

तो यह कहानी थी बकरी जैसे कान वाले विचित्र राजा की ! आशा है आपको इस कहानी में भी ज़रूर मज़ा आया होगा !   


साधना वैद     

  




Sunday, February 15, 2015

शेखचिल्ली की कहानी



  लोक कथायें कहाँ से आईं और कहाँ तक पहुँचीं, उनमें कितने बदलाव हुए और कितने नये किस्से उनमें जुड़ते गये इसका अनुमान लगाना मुश्किल है | पर इन काल्पनिक कथाओं के कुछ नायक इतने पसंंद किये गये कि उनके गुणों से मिलते हुए यथार्थ जगत के किसी भी व्यक्ति को उन्हीं के नाम से पुकारा जाने लगा यह उन नायकों की लोक स्वीकृति और प्रसिद्धि का परिचायक है ! थोड़े बुद्धू पर खयाली पुलाव पकाने के आदी शेखचिल्ली भी एक उसी तरह का और सबको हँसाने वाला एक मशहूर पात्र है !

  परन्तु शेखचिल्ली का चरित्र कोई काल्पनिक चरित्र नहीं है ! हरियाणा के किसी गाँव में एक ग़रीब परिवार रहता था ! परिवार में शेख नाम का एक बालक था ! इस बच्चे का नाम शेखचिल्ली कैसे पड़ा यह एक रोचक कहानी है ! एक बार मदरसे में व्याकरण पढ़ाते हुए मौलवी साहेब ने बच्चों को सिखाया कि अगर ‘लड़का’ है तो वह खाता है, रोता है और सोता है लेकिन इसके विपरीत अगर ‘लड़की’ है तो वह खाती है, रोती है, सोती है इत्यादि ! शेख ने यह बात ध्यान से सुनी और याद कर ली ! एक दिन गाँव की एक लड़की सूखे कुए में गिर गयी ! सारा गाँव उसे खोजने लगा ! शेख भी उसे खोजने लगा ! शेख को कुए के अंदर से लड़की के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी ! उसने सबको बुलाया देखो, ‘लड़की चिल्ली रही है !’ लोगों ने लड़की को कुए से बाहर निकाला ! लड़की ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी पर उसे ज्यादह चोट नहीं लगी थी ! शेख ने कहा, ‘ये चिल्ली रही है पर ठीक हो जायेगी !’ लोगों ने आश्चर्य से पूछा, ‘ये चिल्ली चिल्ली क्या कह रहे हो !’ शेख ने कहा, ‘लड़का होता तो मैं कहता चिल्ला रहा है ! लड़की है इसलिए चिल्ली रही है !’ लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो गये और मदरसे के सभी छात्रों के बीच बालक शेख का नाम 'शेखचिल्ली' पड़ गया ! शेखचिल्ली ने इसका बुरा भी नहीं माना ! और वह अपने अजीब कारनामों से सबका मनोरंजन करता रहा ! आज भी शेखचिल्ली की कहानियाँ हम सबको खूब हँसाती हैं ! कहा जाता है कि बाद में उम्रदराज़ हो जाने पर यही शेखचिल्ली फ़कीर बन गये और हरियाणा के कुरूक्षेत्र में उनका मकबरा आज भी अच्छी हालत में मौजूद है ! उसके पास ही उनकी पत्नी का मकबरा भी बना हुआ है ! वहीं पर एक मदरसा भी है ! कहते हैं कि शेखचिल्ली इसी मदरसे में पढ़ा करते थे ! 
                         
                                                    शेखचिल्ली का मकबरा


  आइये शेखचिल्ली की सबसे मशहूर कहानी आज आपको सुनाती हूँ !

शेखचिल्ली अपनी माँ के पास रहते थे पर कुछ काम काज नहीं करते थे ! एक दिन गाँव की हाट में पंसारी की दूकान के पास खाली बैठे थे तभी एक अमीर आदमी दूकान पर आया और उसने पंसारी से घड़ा भर घी खरीदा ! मदद के लिये उसने शेखचिल्ली से पूछा, ‘क्या तुम यह घड़ा मेरे घर पहुँचा दोगे ? मैं तुम्हें इसके बदले में दो सिक्के दूँगा !’ शेखचिल्ली तुरंत राज़ी हो गये ! उन्होंने अपने सिर पर घड़ा रखवा लिया और अमीर आदमी के पीछे-पीछे चल दिये ! आदत के अनुसार वो लगे खयाली पुलाव पकाने ! मैं तो इन पैसों से एक अंडा खरीदूँगा ! अंडे को खूब सम्हाल के रूई पर रखूँगा ! कुछ दिन के बाद उसमें से चूज़ा निकल आएगा ! चूज़ा बड़ा होकर मुर्गी बन जाएगा ! अब तो वह मुर्गी रोज़ अंडे दिया करेगी ! और मेरे पास जब बहुत सारे चूज़े, मुर्गियाँ और अंडे जमा हो जायेंगे तो मैं उनको बेच कर बकरियाँ खरीद लूँगा ! बकरियों के भी बच्चे हो जायेंगे तो मेरे पास ढेर सारे बकरे बकरियाँ जमा हो जायेंगे ! लेकिन बड़ा आदमी बनने के लिये मुझे तो बहुत तरक्की करनी है इसलिए मैं उनको भी बेच दूँगा और फिर मैं भैंस पालने का काम करूँगा ! भैंस के दूध में अच्छा मुनाफ़ा है ! खूब धन जमा हो जाएगा ! माँ भी खुश हो जायेंगी और मुझे निखट्टू कहना बंद कर देंगी ! सबसे पहले तो मैं अपने टूटे हुए घर की मरम्मत करवा के एक सुन्दर सा मकान बनाउँगा ! पड़ोसी तो देखते ही रह जायेंगे ! और फिर तो मेरी शादी के लिये बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते भी आने लगेंगे ! मेरी माँ ज़रूर मेरे लिये एक सुन्दर और आज्ञाकारी पत्नी खोज लेंगी और मेरा जीवन खुशियों से भर जाएगा ! मैं रोज़ भैंसों के लिये चारा काटने जंगल जाया करूँगा और मेरी पत्नी घर का और भैंसों का सारा काम कर दूध निकाला करेगी ! मेरी माँ घर के बाहर बैठ कर दूध बेचा करेगी ! सोचते-सोचते शेखचिल्ली मुस्कुरा भी रहे थे और शरमा भी रहे थे ! अब बाल बच्चे भी तो हो जायेंगे और वहीं घर के आँगन में खेला करेंगे ! शाम को मेरे घर लौटने का इंतज़ार किया करेंगे ! जब शाम को सिर पर भैसों के लिये चारा लाद कर मैं घर आउँगा तो बच्चे ‘अब्बा-अब्बा’ कह कर मेरे पैरों से लिपट जायेंगे ! उन्हें गोद में लेने के लिये मैं सिर के गठ्ठर को वहीं पटक दूँगा और उन्हें गोद में उठा लूँगा ! शेखचिल्ली अपने ख्यालों में इतने डूब चुके थे कि चारे का गठ्ठर पटकने की जगह उन्होंने अपने सिर पर रखा घी से भरा घड़ा ही ज़मीन पर पटक दिया ! घड़ा फूट गया और सारा घी ज़मीन पर फ़ैल गया ! अमीर ने जब यह नज़ारा देखा तो अपना सिर पीट लिया ! शेखचिल्ली को उसने खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि, ‘तुमने तो मेरा सारा घी मिट्टी में मिला दिया !’

शेखचिल्ली सदमे में चुपचाप खड़े थे ! डाँट सुन कर बोले, ‘तुम्हारा तो सिर्फ घी ही मिट्टी में मिला है मेरा तो सारा घरबार, बीबी बच्चे, भैंस तबेला, सब के सब मिट्टी में मिल गये !’

तो ऐसे थे जनाब शेखचिल्ली ! आज भी कोरे दिवास्वप्न देखने वाले और आधारहीन कल्पना के संसार में विचरने वालों लोगों को शेखचिल्ली की उपाधि से ही नवाज़ा जाता है ! तो कहिये कैसी रही कहानी ! मज़ा आया न आपको ?



साधना वैद  

Thursday, February 12, 2015

प्रेम पाषाण हो चुका है


जब मेघदूत की तर्ज़ पर
बादलों के पंखों पर
बड़े जतन से सवार कर
प्रियतम को भेजे हुए संदेश
धरा पर गिर
भूलुण्ठित हो जायें,
जब चाँद के कानों में कही गयी
तमाम राज़ की बातें
काल के अगम्य गह्वर में
विलीन हो राज़ ही रह जायें,
जब नभ के अनगिनत तारों के
टिमटिमाते आलोक में
घुली मिली आशा की
एक नन्हीं सी किरण भी
धीरे-धीरे चुक कर
धूमिल हो जाये,
जब आँगन के चम्पा की
घनिष्ठ सहेलियों सी शाखों के
इर्द-गिर्द पड़ी गलबहियाँ
स्वत: ही अनमनी शिथिल हो
नीचे लटक जायें,
जब आँखों के दरीचों में पसरी
इंतज़ार की लम्बी-लम्बी सूनी पगडंडियाँ
दूर-दूर तक बिलकुल
निर्जन, नि:संग, सुनसान सी
दिखाई देने लगें,
जब हवा विरक्त हो जाये,
जब बारिश की बूँदें
तन पर चुभने लगें,  
जब फिज़ाओं में गूँजते
मोहोब्बत के तराने
मद्धम होते-होते एक दम ही
मौन हो जायें,  
जब प्रेम की कोमल भावनाओं को
परिभाषित करती कवितायें
बेमानी अर्थहीन सी लगने लगें,
जब वादी में किसी भी पुकार की
कोई भी प्रतिध्वनि  
सुनाई न दे,  
जब कायनात भी
निश्चल, निस्पंद, निष्प्राण
प्रतीत होने लगे  
समझ लेना चाहिये कि 
हृदय को आंदोलित करने वाला
जीवंत प्रेम अब
पाषाण हो चुका है !
प्रेम निष्प्राण हो चुका है !

साधना वैद