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Saturday, March 30, 2024

रंगमंच

 




रंगमंच है

ये समूचा संसार

प्रभु की लीला

 

करने आये

यहाँ अपना काम

रंग रंगीला

हम सब हैं

उँगलियों से बँधी

कठपुतली

 

नाचना हमें

उस के इशारों पे

बन के भली  

 

नाचेंगे हम

जैसे वो नचाएगा

जीवन भर

 

कभी राजा तो

कभी बन के रानी

कभी नौकर

 

कभी दुलहा

कभी दुलहन तो

कभी बाराती

 

कभी सिपाही

कभी तुरही वाला

तो कभी हाथी

 

हमारा काम

नाचना इशारों पे

जैसे वो चाहे   

 

उसका काम

नचाना डोरियों पे

जब जी चाहे

 

मानते हम

हुकुम मालिक का

सर झुका के  

 

खुश हो जाते

सभी देखने वाले

ताली बजाते  

 

हँसते गाते

लोग चले घर को

खेल ख़तम

 

साथ ही हुआ   

कठपुतली का भी

किस्सा ख़तम   




 

साधना वैद 

 

 

 


Friday, March 22, 2024

एकल काव्य पाठ


       जन सरोकार मंच पर मेरा एकल काव्य पाठ |

Thursday, March 14, 2024

आभासी मित्र

 



ये आभासी मित्र बड़े अच्छे होते हैं
हँसते संग में और हमारे संग रोते हैं !
होती नहीं हमारी उनसे कभी लड़ाई
करते नहीं किसी दूजे की कभी खिंचाई !
कभी न खोलें फरमाइश की लम्बी सूची
कभी न माँगें पिट्जा बर्गर छोले लूची !
जब जी चाहे उनसे हँस हँस बातें कर लो
जब जी चाहे हफ़्तों उनकी छुट्टी कर दो !
कभी न होती उनसे बक झक रूठा रूठी
कभी न लगता डोर प्रेम की अब है टूटी !
देखा नहीं कभी पर हमको लगते सुन्दर
हर लड़की ज्यों ‘सुधा’ और हर लड़का ‘चंदर’ !
सबको उनका साथ बड़ा अच्छा लगता है
अपने घर का हाल बड़ा कच्चा लगता है !
घर के जोगी ‘जोगड़ा’ और लगते वो ‘सिद्ध’
इनमें ‘सारस’ कौन है और कौन है ‘गिद्ध’ !
इसकी जाँच परख भी बहुत ज़रूरी भाई
होती नहीं स्वास्थ्य के हित में अधिक ‘मिठाई’ !
बातों ही बातों में उठ जाती रचनाएं
लिखते हम और मेवा वो सारी ले जाएं !
किसे कहें, है कौन, करेगा जो सुनवाई
दूजे हित क्यों मोल भला वो लें रुसवाई !
इसीलिये चौकस रहना अच्छा होता है
अधिक भरोसा जो करता है वह रोता है !
जब तक इनकी भली तरह पहचान न होवे
रहें सतर्क सचेत न अपनी बुद्धि खोवें !

साधना वैद
चित्र - गूगल से साभार

Friday, March 8, 2024

हे शिव शंभू

 




महाशिवरात्रि पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

 

हे महादेव

फ़ैल गया असत

विनाश करो

 

भ्रष्टाचार से 

सिक्त इस जग को

पावन करो

 

छाये हुए हैं

चहुँ ओर असुर

संहार करो

 

भोले शंकर

पीड़ित हुए भक्त 

आश्वस्त करो

 

आये शरण

तुम्हारे चरणों में

वरदान दो

 

हे शिव शम्भू

त्रस्त हो चुके अब

निर्वाण करो !

 

चित्र - गूगल से साभार  


साधना वैद





Sunday, March 3, 2024

दो मुक्तक

 



मस्तक पर हिमगिरी हिमालय नैनों में गंगा यमुना

अंतर में हैं विन्ध्य अरावलि सुन्दर संस्कृति का सपना

मुट्ठी में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर उत्ताल

भारत मेरा अपना है और मैं हूँ भारत का अपना !

 

जन्म लिया जिस माटी में हम क़र्ज़ उतारेंगे उसका

पाया जिसके कण कण से हम फ़र्ज़ निभायेंगे उसका

आँख उठा कर देखेगा यदि दुश्मन भारत माँ की ओर

पल भर की भी देर न होगी शीश काट लेंगे उसका !

 

 साधना वैद