रंगमंच है
ये समूचा संसार
प्रभु की लीला
करने आये
यहाँ अपना काम
रंग रंगीला
हम सब हैं
उँगलियों से बँधी
कठपुतली
नाचना हमें
उस के इशारों
पे
बन के भली
नाचेंगे हम
जैसे वो नचाएगा
जीवन भर
कभी राजा तो
कभी बन के रानी
कभी नौकर
कभी दुलहा
कभी दुलहन तो
कभी बाराती
कभी सिपाही
कभी तुरही वाला
तो कभी हाथी
हमारा काम
नाचना इशारों
पे
जैसे वो चाहे
उसका काम
नचाना डोरियों
पे
जब जी चाहे
मानते हम
हुकुम मालिक का
सर झुका के
खुश हो जाते
सभी देखने वाले
ताली बजाते
हँसते गाते
लोग चले घर को
खेल ख़तम
साथ ही हुआ
कठपुतली का भी
किस्सा ख़तम
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद प्रिय सखी यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! आभार आपका !
Deleteसाथ ही हुआ
ReplyDeleteकठपुतली का भी
किस्सा ख़तम
कठपुतली और मानव जीवन के साम्य को कितने सरल तरीके में प्रकट कर दिया आपने। सादर नमस्कार दीदी।
नमस्कार मीना जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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