Followers

Saturday, March 30, 2024

रंगमंच

 




रंगमंच है

ये समूचा संसार

प्रभु की लीला

 

करने आये

यहाँ अपना काम

रंग रंगीला

हम सब हैं

उँगलियों से बँधी

कठपुतली

 

नाचना हमें

उस के इशारों पे

बन के भली  

 

नाचेंगे हम

जैसे वो नचाएगा

जीवन भर

 

कभी राजा तो

कभी बन के रानी

कभी नौकर

 

कभी दुलहा

कभी दुलहन तो

कभी बाराती

 

कभी सिपाही

कभी तुरही वाला

तो कभी हाथी

 

हमारा काम

नाचना इशारों पे

जैसे वो चाहे   

 

उसका काम

नचाना डोरियों पे

जब जी चाहे

 

मानते हम

हुकुम मालिक का

सर झुका के  

 

खुश हो जाते

सभी देखने वाले

ताली बजाते  

 

हँसते गाते

लोग चले घर को

खेल ख़तम

 

साथ ही हुआ   

कठपुतली का भी

किस्सा ख़तम   




 

साधना वैद 

 

 

 


7 comments :

  1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय सखी यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! आभार आपका !

      Delete
  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! आभार आपका !

      Delete
  4. साथ ही हुआ
    कठपुतली का भी
    किस्सा ख़तम
    कठपुतली और मानव जीवन के साम्य को कितने सरल तरीके में प्रकट कर दिया आपने। सादर नमस्कार दीदी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. नमस्कार मीना जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !

      Delete