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Thursday, January 30, 2020

अभी न होगा मेरा अन्त



काम अनगिनत अभी पड़े हैं
रस्ते में अवरोध खड़े हैं
हैं चिंताएं अभी अनंत
अभी न होगा मेरा अंत !

किसे सौंप दूँ फिक्रें सारी
किस पर लादूँ गठरी भारी
किसे पुकारूँ मेरे कन्त
अभी न होगा मेरा अंत !

जीवन जकड़ा है उलझन में
व्याकुलता उमड़ी है मन में
नैनन नीर बहे बेअंत
अभी न होगा मेरा अंत !

हर कर्तव्य निभाना होगा
हर दायित्व उठाना होगा
पतझड़ हो कि या हो बसंत
अभी न होगा मेरा अंत !

भाग नहीं सकता मैं वन में
नहीं मिलेगी मुक्ति भजन में
ना मैं साधू ना हूँ संत
अभी न होगा मेरा अंत !

बदलूँगा किस्मत की भाषा
पूरी होगी हर प्रत्याशा
मुझमें अभी हौसला बुलंद
अभी न होगा मेरा अंत !

साधना वैद


Wednesday, January 29, 2020

नमन माँ शारदे



ऐ हंसवाहिनी
माँ शारदे
दे दो ज्ञान !
सद्मति और संस्कार से
अभिसिंचित करो
हमारे मन प्राण !
गूँजे दिग्दिगंत में
चहुँ ओर
तुम्हारा यश गान !
शरण में आये माँ
उर में धर
तेरा ही ध्यान !
तू ही मान हमारा माँ
तू ही अभिमान !
हर लो तम और
जला दो ज्ञान की
ज्योति अविराम !
दूर कर दो माँ
जन जन का अज्ञान !
चरणों में
शीश नवाऊँ मैं
स्वीकार करो माँ
मेरा प्रणाम !

साधना वैद

Thursday, January 23, 2020

माचिस की तीली

  


कई बार देखी है मैंने
माँ के हाथों में
जलती हुई माचिस की तीली
कभी चूल्हा सुलगाते हुए,
कभी अँगीठी या स्टोव जलाते हुए,
कभी आरती का दीपक जलाते हुए,
कभी हवन की अग्नि प्रज्ज्वलित करते हुए,
कभी लालटेन या मोमबत्ती जलाते हुए !
कितनी सुखदाई लगा करती थी तब
यह माचिस की तीली
जैसे जीवन का सारा सार, सारा सुख,
सारा प्रकाश, सारी ऊर्जा
माचिस की इस नन्ही सी तीली में ही है !
चूल्हा जलने के बाद
रसोई से आती वह भोजन की सुगंध,
आरती का दीप जलने के बाद
मन में उमड़ती वह भक्ति भावना,
हवन के पात्र से नि:सृत होती
और वातावरण को शुद्ध करती
प्रज्वलित समिधा की वह पावन गंध,
घर के कोने कोने को प्रकाशित करती
लालटेन या मोमबत्ती की वह
ललछौंही मद्धम रोशनी सब
माचिस की तीली के सिरे पर जलती
उस नन्ही सी लौ की कारण ही तो
हमें प्राप्त हो पाती थी !
बड़ी आस्था थी तब हमें
माचिस की इस नन्हीं सी तीली पर !
लेकिन अब डर लगने लगा है
अब इसका इस्तेमाल अराजकता और
दंगे भड़काने के लिए होने लगा है,
पेट्रोल छिड़क कर कार, बस और रेलों को
आग लगाने के लिए होने लगा है !
सन्दर्भ बदलते ही पता नहीं कैसे
कभी बहुत प्रिय लगने वाली वस्तु
अनायास ही भय का कारण बन जाती है !
माचिस की यह जलती हुई तीली
अब मेरे मन की सुख शान्ति को भी
न जाने कैसे आग लगा जाती है !


साधना वैद


Tuesday, January 21, 2020

ताशकंद यात्रा – ९ आइये चलते हैं बुखारा – २



बुखारा मध्य एशिया में स्थित एक बड़ा इस्लामिक तीर्थ स्थान है ! यह एक बहुत ही पुराना शहर है जिसमें सात सौ तेरहवीं सदी में बनी हुई पुरानी इमारतें भी आज तक अपनी पूरी शानो शौकत के साथ खड़ी हुई हैं ! इस शहर की सबसे अनोखी बात यही है कि आक्रमणकारी इस पर बार-बार हमले करते रहे इसे नष्ट करते रहे और इसका बारम्बार पुनर्निर्माण होता रहा ! सच पूछा जाए तो यह पूरा शहर ही एक विशाल म्यूज़ियम की तरह है ! यह अद्भुत शहर बुखारा उसी सिल्क रूट के किनारे बसा हुआ है जिसके द्वारा चीन और यूरोप के बीच व्यापार हुआ करता था ! यह सोच कर बहुत रोमांच का अनुभव हुआ कि इटली का मार्को पोलो, जिसका घर हमने वेनिस में देखा था, इसी सिल्क रूट से यात्राएं करता था और अनेकों बार बुखारा में आकर ठहरता था ! आज हम भी उसी सिल्क रूट पर अपने कदम रखने जा रहे थे ! सन् १९९३ में बुखारा की ऐतिहासिक इमारतों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित कर लिया है !
ल्याबी हौज़ पहनावा
सुबह के नाश्ते के बाद ल्याबी हाउस होटल से बिलकुल तरो ताज़ा और चुस्त दुरुस्त हमारा काफिला बुखारा की सैर के लिए निकल पड़ा ! पाँच सात मिनिट्स चलने के बाद ही हम ल्याबी हौज़ पहुँच गए ! यह एक छोटा सा सरोवर है जिसके आस पास अनेकों छोटी बड़ी दिलचस्प चीज़ें आपका ध्यान आकर्षित करती हैं ! बीच में बिलकुल स्वच्छ पानी का ताल, उसके आस पास सजे सँवरे गलियारे, खाने पीने के छोटे छोटे जॉइंट्स, दो कूबड़ वाले ऊटों की जीवंत मूर्तियाँ और कुछ दूरी पर खड़ी थी सोलहवीं सदी में बनी नोघई कारवाँसेरी की आलीशान इमारत ! एक और बहुत अनोखी चीज़ वहाँ देखी कि ताल के आस पास सूखे पेड़ों के तनों पर बहुत ही आकर्षक डिजाइंस के कपड़े चढ़ाये गए हैं ! इन्हें केवल सजावट के लिए चढ़ाया गया है या वहाँ के हस्त शिल्प का विज्ञापन है या और फिर इसका कोई अन्य आध्यात्मिक महत्त्व है पता नहीं चल सका !
मुल्ला नसीरुद्दीन की मूर्ति
नोघई कारवाँसेरी के विशाल परिसर में गधे पर सवार मुल्ला नसीरुद्दीन की बहुत ही दिलचस्प और मज़ेदार सी मूर्ति रखी हुई है जो इस स्थान के प्रमुख आकर्षणों में से एक है ! उसे देख कर सारे पर्यटक बहुत खुश हो जाते हैं और बड़े शौक के साथ उसके संग अपनी फोटो खिंचवाते हैं ! मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानियाँ उसी तरह से मशहूर हैं जैसे बीरबल, तेनाली राम और लाल बुझक्कड़ की कहानियाँ भारत में मशहूर हैं ! भारत में तो मुल्ला नसीरुद्दीन पर आधारित एक टी वी धारावाहिक भी बना था जो काफी लोकप्रिय हुआ था ! हमारे ग्रुप के तो सारे ही लोग इस चरित्र से बखूबी परिचित थे ! यहाँ सबने अपनी खूब तस्वीरें खिंचवाईं !
नोघई कारवाँसेरी
इस स्टेचू पीछे स्थित है सोलहवीं सदी में बनी विशाल नोघई कारवाँसेरी जिसे खान मोहोम्मद रिहिम्बी के शासन काल में बनवाया गया था और जो उस ज़माने में बाहर से आने वाले व्यापारियों के रहने ठहरने के लिए मशहूर ठिकाना मानी जाती थी ! इस एक मंज़िला इमारत में यात्रियों के खाने पीने, सोने रहने व अन्य सभी सुख सुविधाओं के सारे प्रबंध होते थे ! इसका परिसर बहुत विशाल था और इसमें ४५ कमरे, नौकरों के रहने की समुचित व्यवस्था, रसोई एवं अन्य सहायता कक्ष हुआ करते थे ! इसे सिल्क रूट की आधार शिला कहा जाता था ! आजकल इस स्थान को हस्त शिल्प क्षेत्र में बदल दिया गया है !
हस्तशिल्प बाज़ार
इस हस्तशिल्प बाज़ार की सैर बहुत ही रोचक एवं आनंदवर्धक रही ! बिलकुल सही अर्थों में यह शिल्प बाज़ार है जहाँ हुनरमंद कारीगर अपनी कला प्रदर्शन करते हुए दिखाई देते हैं ! आपके पास फुर्सत हो, सीखने की ललक हो और उस कला का आपको थोड़ा बहुत ज्ञान हो तो निश्चित रूप से आप बहुत कुछ सीख सकते हैं ! सुन्दर रंगबिरंगे डिजाइंस में सिल्क के कपड़े को हथकरघे पर बुनते हुए देखना बहुत सुखकारी अनुभव था ! इस स्टॉल पर कपड़ों का रंग संयोजन और नमूने काफी कुछ भारत के कटक प्रिंट के कपड़ों से मिलते जुलते लगे ! एक स्टॉल पर एक बहुत बुज़ुर्ग महिला बड़े ही सधे हुए हाथों से कुरते पर कढ़ाई कर रही थीं ! हस्त शिप के खिलौने, सोवेनियर्स, कठपुतलियाँ सब यहाँ उपलब्ध थे ! कठपुतली वाला हमें देख कर भारतीय अभिनेता अभिनेत्रियों के नाम लेकर उनकी फिल्मों के गीत सुना रहा था और कठपुतलियों को बड़ी कुशलता से हाथों में नचा रहा था ! विदेश में किसी विदेशी के मुख से हिन्दी गीत सुन कर बहुत अच्छा लगा !
मघोक ए अत्तार मस्जिद
बुखारा का यह कॉम्प्लेक्स ऐसा है जहाँ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए आप लगातार चलते ही रहते हैं ! रास्ते में ऐतिहासिक महत्त्व का कोई स्थान मिल जाता है तो गाइड उसके बारे में आपको बताते हैं ! शिल्प बाज़ार से बाहर निकले तो रास्ते में पड़ी मघोक ए अत्तार मस्जिद ! यह उज्बेकिस्तान की सबसे पुरानी मस्जिद है जिसे मूल रूप से नौवीं सदी में बनाया गया था और सोलहवीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया ! यह स्थान आध्यात्मिक महत्त्व का है ! यहाँ पर एक बौद्ध मंदिर और पारसी मंदिर के अवशेष भी मिलें हैं ! यह भी कहा जाता है कि सोलहवीं सदी तक यहाँ पारसी अनुयाइयों को पूजा आराधना करने की अनुमति थी ! इन्हें तुड़वा कर इसके ऊपर मस्जिद बनाई गयी थी ! आक्रमणकारी जब भी बाहर से आते उन मस्जिदों को तोड़ देते ! कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि वर्तमान में जो मस्जिद है इसे मंगोलों ने बनवाया था और आक्रमणकारियों से इसे बचाने के लिए इसे रेत के टीले के नीचे दबा कर छिपा दिया था ! सन १९३० में जब इस जगह पर मस्जिद का शीर्ष दिखाई दिया तो खुदाई करके इसे बाहर निकाला गया ! इसके आस पास जो खंडहर दिखाई देते हैं वे उस युग के सार्वजनिक स्नानागार हैं जब बुखारा व्यापार का प्रमुख केंद्र था और यहाँ देश विदेश से अनेकों सौदागर व्यापार करने के लिए आते थे !
बुखारा के बाज़ार
मघोक ए अत्तार से बाहर निकल हम पहुँच गए थे ताकी तल्पक फरोश बाज़ार ! यह बड़ा ही मज़ेदार सा बाज़ार है ! पहले यह केवल टोपियों का बाज़ार था लेकिन वर्तमान में यहाँ पर्यटकों की दिलचस्पी के सारे सामान मिलते हैं ! बुखारा गर्म शहर है ! बाज़ार में ठंडी हवा के आवागमन के लिए छतों की गुम्बद इस तकनीक से बनाई गयीं थीं कि वे बाहर की गर्म हवा को खींच ठंडा करके नीचे फेंकती थीं और बाज़ार के तापमान को खुशगवार बनाए रखती थीं ! इस बाज़ार में हर तरह का सामान मिलता है ! बजाने वाले वाद्यों से लेकर, टीशर्ट्स, कपडे, कलात्मक कैंची, छुरी, चाकू, कालीन, तरह तरह के ठप्पे और भी अनेकों तरह के सामान ! इसीके पास ताकी सर्राफा बाज़ार हुआ करता था जहाँ पहले कभी टकसाल हुआ करती थी लेकिन अब तो हर जगह यही सामान मिल रहा था ! मैंने वहाँ से तीन कलात्मक कैंचियाँ और एक बुखारा की यादगार इमारतों से सजा मोबाइल का कवर लिया ! इसके पास ही एक और छोटा सा मगर बहुत सुन्दर गहनों का बाज़ार है जहाँ सोने, चाँदी और कीमती रत्नों के बहुत सुन्दर आभूषण मिल रहे थे ! ग्रुप की सभी महिलाओं की आँखें खुशी से चमक उठीं ! आभूषण जितने सुन्दर थे उतने की कीमती भी थे !
मीर ए अरब मदरसा
इसी कॉम्प्लेक्स में मीर ए अरब मदरसा स्थित है ! इसका निर्माण सन् १५३५ से सन् १५३६ के बीच बुखारा के तत्कालीन राजा उबेदुल्ला खान ने अपने आध्यात्मिक गुरू शेख अब्दुला यमानी के नाम पर करवाया जो यमन के रहने वाले थे ! उन्हें मीर ए अरब भी पुकारा जाता था ! उबेदुला खान ने अपने शासनकाल में ईरान पर तीन बार आक्रमण किया और इन आक्रमणों के बाद उसके पास बेशुमार दौलत और तीन हज़ार युद्ध कैदी इकट्ठा हो गए ! इन कैदियों को गुलाम की तरह बेच कर जो धन एकत्रित हुआ उससे यह विशाल मदरसा बनवाया गया ! इसका प्रांगण बहुत बड़ा है ! इसके प्रवेश द्वार पर नीले रंग की एक आकर्षक गुम्बद है ! उबेदुल्ला खान बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था ! उस समय तक भव्य मकबरे बनाने की परम्परा नहीं पड़ीं थी इसलिए मरणोपरांत इसी मदरसे में उसे दफनाया गया !
कलान मीनार
यहाँ से हमारा कारवाँ पो-ए-कलान कॉम्प्लेक्स की ओर बढ़ चला ! यह सबसे सुन्दर स्थान है और इससे जुड़ी कहानियाँ तो और भी रोचक हैं ! कलान मीनार यहाँ की सबसे ऊँची, सबसे भव्य और सबसे पुरानी मीनार है ! इसका निर्माण करखानिद शासक अरसलान खान ने सन् ११२१ में करवाया था ! यह ज़मीन से ४७ मीटर ऊँची है और ज़मीन के नीचे इसकी बुनियाद १० मीटर गहरी है ! धरातल पर इस मीनार का व्यास ९ मीटर है और इसकी ऊपरी मंजिल का व्यास ६ मीटर है ! इस मीनार को बनाने वाले वास्तुकार का नाम बाको है ! इस मीनार के शीर्ष से इमाम और मुअज़्ज़िन धार्मिक घोषणाएँ तो करते ही थे इसका उपयोग मृत्युदंड पाने वाले मुजरिमों को सज़ा ए मौत देने के लिए भी किया जाता था ! इसीलिये इसे डेथ टावर भी कहा जाता है ! दंड देने के लिए मुजरिमों को मीनार के ऊपर से नीचे पथरीली ज़मीन पर फेंक दिया जाता था ! इस मीनार से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया है कि चंगेज़ खान ने जब बुखारा पर आक्रमण किया तो इस मीनार के आस पास की सारी इमारतों को जला दिया ! वह इसे भी जलाना चाहता था लेकिन इस मीनार की भव्यता देख वह बहुत प्रभावित हुआ ! वह सर उठा कर जब इसकी ऊँचाई का जायज़ा ले रहा था तो उसकी टोपी नीचे गिर गयी ! उसे उठाने के लिए जब वह नीचे झुका तो उसकी फौज के लोगों ने समझा कि चंगेज़ खान इबादत कर रहा है ! चंगेज़ खान के मन में भी कुछ संशय पैदा हो गया कि इस पवित्र स्थान को नष्ट करना उचित नहीं होगा ! इसीलिये उसने इस मीनार को कोई नुक्सान नहीं पहुँचाया ! आज भी अपनी पूरी शान ओ शौकत के साथ आसमान से बातें करती हुई यह मीनार पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनी हुई है !
कलान मस्जिद
कलान मीनार के पास ही बनी हुई है कलान मस्जिद ! यह भव्यता एवं विस्तार में तो समरकंद की बीबी खानम मस्जिद से भी बड़े क्षेत्र में बनी हुई है लेकिन वास्तुकला की दृष्टि से यह उससे बिल्कुल भिन्न है ! जहाँ कलान मस्जिद बहुत सादगी से बनी हुई है समरकंद की बीबी खानम मस्जिद बहुत ही आलीशान और भव्य है ! इसका निर्माण सन् १५१४ में बुखारा के तत्कालीन गवर्नर सुलतान उबेदुल्ला गाजी ने करवाया ! जो आगे चल कर जब बुखारा एक स्वतंत्र राज्य बन गया तो वहाँ का राजा बना ! इस मस्जिद में २०८ खम्भों पर २८८ गुम्बद बने हुए हैं ! यह अपने आप में वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है !
एक और अद्भुत स्थान जो हमने बुखारा में देखा वह था उस ज़माने की बेगमों और शहज़ादियों का शाही हम्माम ! यहाँ पुरुषों को अन्दर जाने की अनुमति नहीं थी ! ग्रुप की सिर्फ महिला सदस्य ही अन्दर गयीं ! बड़े घुमावदार रास्तों से होकर नीचे पहुँचे तो वहाँ एक विदेशी महिला का मसाज उसी पुरातन विधि से किया जा रहा था ! नीचे हॉल में हल्का हल्का धुआँ भरा था और वातावरण लोबान की सुगंध से महक रहा था ! बरतनों में अनेक प्रकार के नैसर्गिक पदार्थ, सूखे पाउडर फूलों की पंखुड़ियाँ, तेल व अन्य कई लोशंस रखे हुए थे जिनसे सौन्दर्यवर्धक प्रसाधनों को तैयार किया जाता है ! यह अनुभव भी बहुत रोमांचक था !
बुखारा दर्शन का हमारा यह सफ़र अपने अंजाम तक आ चुका था ! चलते चलते सब थक भी चुके थे और भूख भी लग आई थी ! लंच के लिए हम लोग इस कॉम्प्लेक्स से बाहर निकले ! खाना खाकर दिन में हमें ट्रेन भी पकड़नी थी ताशकंद के लिए ! तो चलिए चलते हैं खाना खाने !
अगली कड़ी में आपसे मुलाक़ात होगी बुखारा के स्टेशन पर ! हमारे हमसफ़र बन कर आप भी चलिएगा हमारे साथ ताशकंद ! तब तक के लिए इजाज़त दीजिये मुझे ! नमस्कार !


साधना वैद

Friday, January 17, 2020

अंधा बाँटे रेवड़ी .... ???




अंधा बाँटे रेवड़ी ... ? 
ये क्या बात हुई ? आखिर अंधा ही क्यूँ बाँटे रेवड़ी ?
जब उसको रेवड़ी का सही तरह से हिस्सा बाँट करना आता ही नहीं तो वही क्यों बाँटे रेवड़ी ? क्या ये जुमले सिर्फ उछाले जाने लिए हैं ? सिर्फ मुख की कसरत के लिए हैं ? बस इन्हें दोहराते रहिये और वही होने दीजिये जो अभी तक होता आया है ! क्या इनका दोहराया जाना एक अनिवार्यता है या संविधान में लिखा गया कोई लिखित क़ानून है जिसका पालन करना सभी के लिए ज़रूरी है ?

वैसे कहने सुनने में यह मुहावरा अच्छा लगता है ! इससे जुड़ा कोई रोचक किस्सा भी ज़रूर रहा होगा इस बात का भी आभास होता है ! लेकिन क्या सिर्फ इसीलिए कि कभी किसीने एक ग़लती की और उस पर यह मुहावरा गढ़ लिया गया तो हमें इसे जीवन भर दोहरा दोहरा कर इसे अजर अमर बनाना होगा ? माना कि मुहावरा आकर्षक है ! इसमें कुछ हास्य है, कुछ मज़ा है, और ढेर सारी नाटकीयता है लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं कि हम हमेशा ही यह गलती दोहराते रहें !

इसे दोहराते रहने के पीछे कदाचित यह मानसिकता भी है कि आरोप लगाने के लिए अंधा सामने है ही ! कुछ ग़लत होने पर सारी तोहमत उस पर मढ़ दी जाये और बाकी सब पाक साफ़ किनारे पर खड़े डूबने वालों को गोते खाते हुए देखते रहें ! ना कोई दायित्व लो, ना किसी काम के लिए मशाल हाथ में लो, ना किसी नेतृत्व का जिम्मा लो ! काम करना सबसे मुश्किल और काम खराब होने की तोहमत लगाना, दूसरे के कामों की टीका टिप्पणी करना और दूसरों की गलती निकालना सबसे आसान ! यह सारी कवायद कहीं अपनी जिम्मेदारियों से जान छुड़ाने के लिए तो नहीं ?

फिर सबसे अहम् बात यह कि हर युग में यही गलती क्यों दोहराई जाती है ? आखिर अंधा इतना अधिकार संपन्न कैसे हो जाता है कि रेवड़ी बाँटने की ज़िम्मेदारी उसके हिस्से ही आ जाती है ? उस अंधे को चुन कर उस पद पर बैठाता  कौन है और रेवड़ी पाने वालों की कतार में गिने चुने उसके अपने ही क्यों बैठ जाते हैं ? बाकी सब किस अँधेरे में बिला जाते हैं ? अगर इस व्यवस्था से समाज के अन्य लोगों के साथ अन्याय होता है या दूसरों को हानि पहुँचती है तो क्या अंधे के हाथ से रेवड़ी का थैला ले लेने का वक्त अब भी नहीं आया ? उसे इस अधिकार से मुक्त क्यों नहीं कर दिया जाता ?

तो दोस्तों अगर मुहावरों की परिभाषा बदलनी है, उनके अर्थ बदलने हैं और उनके परिणामों में अंतर देखना चाहते हैं तो कमर कस कर खुद को तैयार करना होगा ! अपने हाथों में नेतृत्व की बागडोर भी लेनी होगी और ऐसे अंधों को हटाने के लिए भी कृत संकल्प होकर प्रयास भी करना होगा जो दृष्टिहीनता के कारण सिर्फ अपनों की खुशबू को ही पहचान सकते हैं ! ना किसीको देख सकते हैं, ना परख सकते हैं, ना ही किसीकी योग्यता, प्रतिभा और सामर्थ्य का आकलन ही कर सकते हैं ! अगर अब भी ना चेते तो हमेशा मन मसोसते रहियेगा और दोहराते रहियेगा  –

अंधा बाँटे रेवड़ी और फिर फिर खुद को दे !


साधना वैद  


Thursday, January 16, 2020

ताशकंद यात्रा – ८ आइये चलते हैं बुखारा – १



समरकंद की रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक यात्रा के बाद बुखारा देखने की ललक और बढ़ गयी थी ! बुखारा के बारे में पहले से ही बहुत कुछ सुना हुआ था कि यह अद्भुत शहर है ! इसका धार्मिक महत्त्व बहुत अधिक है ! दूर दूर के देशों में मस्जिदों के लिए इमाम यहीं के मदरसों से बुलाये जाते हैं ! हमारे यहाँ दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अब्दुल्ला बुखारी के पूर्वज भी बुखारा से ही आये थे ! इसीलिये उनके नाम के आगे ‘बुखारी’ उपाधि लगाई जाती है ! करीमबेग के यहाँ से डिनर के बाद हम लोग सीधे रेलवे स्टेशन पहुँचे ! समरकंद से बुखारा की यह यात्रा भी हमें ट्रेन से ही करनी थी ! उज्बेकिस्तान में जनसंख्या बहुत अधिक नहीं है तो रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड या हवाई अड्डा कहीं पर भी लोगों का जमघट और भीड़भाड़ नहीं होती ! हम सब लोग बहुत ही आराम से समय पर स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन में सभी आराम से अपने स्थान पर बैठ गए ! रात का वक्त था, दिन में समरकंद के सिटी टूर के बाद सब थके भी हुए थे, अँधेरे की वजह से खिड़की के बाहर भी कुछ देखने के लिए दिलकश नज़ारा नहीं था ! खाना खाने के बाद वैसे भी नींद जल्दी आने लगती है ! इसलिए कुछ ऊँघते कुछ सोते सब विश्राम की मुद्रा में आ गए ! समरकंद से बुखारा की दूरी बहुत अधिक नहीं है ! हम लोग साढ़े दस बजे तक बुखारा पहुँच गए थे !
यहाँ भी स्टेशन के बाहर हमारे बुखारा के गाइड अपनी शानदार बस के साथ हम लोगों के स्वागत के लिए हमें स्टेशन के बाहर खड़े मिले ! मेहमान नवाज़ी में उज्बेकिस्तान के लोग बहुत ही दक्ष हैं इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं ! बस में सवार हो हम लोग जल्दी ही अपने गंतव्य पर पहुँच गये ! हमारे होटल का नाम था ल्याबी हाउस !
ताशकंद और समरकंद के मुकाबले में बुखारा का वह हिस्सा, जिसमें हम ठहरे थे, कुछ पुरातन अवस्था में दिखा ! होटल पतली गली में होने की वजह से बस ने हमें काफी दूर उतारा था ! सड़कों में गड्ढे थे और शाम को ही बारिश हो जाने कारण उनमें पानी भरा था ! बिलकुल नए शहर में अपना सामान खुद ही लेकर होटल तक पहुँचना रात के उस वक्त में चुनौती भरा लग रहा था ! शायद थके हुए थे, नींद से बोझिल हो रहे थे और अनजान जगह पर वैसे भी हर मंजिल दूर ही लगती है ! अगली सुबह यही सब कुछ बिलकुल विपरीत प्रतीत हो रहा था ! सारा आलम बड़ा ही खुशनुमां और जाना पहचाना सा लग रहा था ! असली चैलेन्ज तो होटल में था झेलने के लिए ! यहाँ लिफ्ट नहीं थी ! तीन मंज़िल के इस होटल में हम लोगों के कमरे तीनों फ्लोर्स पर बुक थे ! लेकिन सबका आग्रह यही था कि ग्राउंड फ्लोर पर ही कमरा मिले ! होटल के सारे कमरे भरे हुए थे ! ग्राउंड फ्लोर पर केवल चार ही कमरे हमारे ग्रुप के नाम अलॉटेड थे ! सब बहुत थके हुए थे और बिना लिफ्ट के ऊपर चढ़ना कोई नहीं चाहता था ! रिसेप्शन काउंटर पर होटल का जो कर्मचारी बैठा था इतने शोर शराबे से घबरा कर वह चाबियाँ संतोष जी को सौंप कर अंतर्ध्यान हो गया ! हम शान्ति से अपनी चाबी का इंतज़ार कर रहे थे ! सबसे आखीर में संतोष जी के पास अंतिम चाबी जो रह गयी वह हमें मिली और वह थी तीसरे फ्लोर की ! नींद के मारे हालत खराब हो रही थी ! जैसे तैसे हिम्मत करके यह हिमालय भी हम चढ़ गए ! लेकिन ऊपर कमरे में पहुँच कर मन प्रसन्न हो गया ! खूब बड़ा कमरा था और उसका इंटीरियर देखने लायक था ! कमरे से ज़रा ही छोटा बाथरूम था ! बिलकुल साफ़ और आरामदेह ! कमरे में wi fi काम कर रहा था ! जल्दी जल्दी दिन भर के मैसेजेज़ चेक किये और बिना समय गँवाए सुबह पहनने वाले कपड़े बाहर निकाल हम फ़ौरन सोने के मूड में आ गए !
सुबह का आलम बहुत ही खूबसूरत था ! ल्याबी हाउस होटल बुखारा के जिस इलाके में है यह पूर्व में यहूदियों के रहने का मोहल्ला हुआ करता था ! एक से एक अमीर और धनवान यहूदी यहाँ अपनी बेशकीमती हवेलियों और शाही भवनों में रहा करते थे ! विश्व युद्ध के बाद में वे सब तो अमेरिका, यूरोप, कैनेडा आदि देशों में बसने के लिए चले गए लेकिन अपनी इन हवेलियों को उचित रख रखाव के साथ सजा संवार कर होटलों में तब्दील कर गए ! जिस होटल में हम ठहरे थे, ल्याबी हाउस, यह भी पूर्व में किसी बहुत धनी यहूदी का अपना रिहाइशी महल था जिसे बाद में होटल में तब्दील कर दिया गया ! हमारे यहाँ भारत में भी तो राजस्थान व अन्य अनेकों प्रदेशों में राजे महाराजों के महलों को होटल में कन्वर्ट कर दिया गया है ! घर के बीच में बड़ा सा आँगन ! आँगन में बड़े बड़े डबल बेड के साइज़ के खूबसूरत कालीनों व मसनदों से सजे तखत ! एक साइड में रिसेप्शन उसके सामने डाइनिंग हॉल एक तरफ खूब विशाल प्रवेश द्वार ! और तीसरी तरफ नीचे व ऊपर की मंजिलों में अतिथियों के ठहरने के लिए बड़े बड़े आराम देह कमरे ! तीसरी मंज़िल तक जाने के लिए सीढ़ियां लकड़ी की बनी हुई थीं ! होटल में हमारा आना जाना पीछे के छोटे द्वार से हो रहा था ! कदाचित इसलिए कि बुखारा के जिन दर्शनीय स्थलों को हमें देखना था वे वहाँ से बिलकुल पास थे !
ऊपर से नीचे का नज़ारा बहुत ही खूबसूरत लग रहा था ! जल्दी जल्दी तैयार होकर हम भी नीचे पहुँचे ! गरमागरम नाश्ता सर्व हो रहा था ! बाहर सहन में भी टेबिल चेयर्स लगी हुई थीं और अन्दर डाइनिंग हॉल में भी खाने का प्रबंध था ! बाहर भी खुशगवार वातावरण था ! अन्दर की सज्जा और दीवारों पर हुई कलात्मक कारीगरी देखने लायक थी ! हर दीवार, हर स्तम्भ, हर खिड़की, हर दरवाज़े और हर पैनल पर अद्भुत इनले वर्क हो रहा था ! हम अपनी नाश्ते की प्लेट्स लेकर अंदर ही बैठ गए ! नाश्ता इतना लज़ीज़ था कि मज़ा आ गया ! नाश्ता समाप्त कर समय का सदुपयोग मैंने तस्वीरें खींचने में किया ! होटल की हर एंगिल से तस्वीरें लीं ! पूरे वक्त इसी कल्पना में खोई हुई थी कि जो परिवार इसमें रहता होगा वह किस तरह से इस घर के हर कमरे हर साजो सामान का इस्तेमाल करता होगा ! यहाँ की क्रोकरी भी बहुत ही खूबसूरत थी !
नाश्ता समाप्त हो चुका था ! अब घूमने जाने का वक्त हो गया था ! हमारे गाइड महोदय आ चुके थे ! सब बस में बैठने के लिए उत्सुक थे ! बस कितनी दूर खड़ी है सब यह जानना चाहते थे ! जैसे ही पता चला कि आज बस से नहीं जाना है पैदल ही घूमना होगा तो निराशा की एक समवेत ध्वनि कोरस में हर गले से फूट पड़ी ! लेकिन जब घूमने के लिए ल्याबी हौज़ पहुँचे तो समझ में आ गया कि वाकई यहाँ बस का कोई काम न था ! मात्र पाँच मिनिट की दूरी पर होटल से यह स्थान था और उसके आस पास ही बुखारा के वे सभी दर्शनीय स्थल थे जिन्हें देखने के लिए हमारा ग्रुप भारत से उज्बेकिस्तान पहुँचा था !
तो क्या ख़याल है आपका ! इन स्थानों की सैर अगली कड़ी में करें तो अधिक आनंद आयेगा ना ? अभी तो आप भी हमारे साथ इस तीन मंज़िला ल्याबी हाउस होटल में ऊपर नीचे चढ़ उतर कर थक गए होंगे ! तो आनंद लीजिये इन तस्वीरों का ! मैं जल्दी ही मिलती हूँ आपसे ढेर सारी नई जानकारी के साथ अगली कड़ी में ! तब तक के लिए मुझे इजाज़त दीजिये !
फिलहाल शुभ रात्रि !


साधना वैद

Monday, January 13, 2020

ताशकंद यात्रा – ७ तैमूर का समरकंद -२



तैमूर का मकबरा, ‘गुर ए अमीर’ देख कर हमारा काफिला रेगिस्तान स्क्वेयर की ओर चला ! गर्मी बहुत ज़बरदस्त थी ! गर्मी से राहत पाने के लिए कैप छाते जो साथ में लाये थे बस के लगेज केबिन में अटेची में बंद रखे थे ! हमने अपने गाइड से अनुरोध किया कि ड्राइवर से कह कर यह सामान वह निकलवा दे ! सबकी मन की मुराद पूरी हुई ! बस से सबने अपना अपना सामान निकाला ! कैप छातों से लैस होकर हम सब समरकंद का एक और प्रसिद्ध स्थान रेगिस्तान स्क्वेयर देखने के लिए चल पड़े !

यहाँ पन्द्रहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के बने हुए तीन मदरसे हैं जो बहुत ही शानदार हैं और तत्कालीन स्थापत्य के बेहतरीन उदाहरण हैं ! सबसे बड़ा और सबसे पुराना मदरसा उलुगबेग मदरसा है जिसे तैमूर के पोते उलुगबेग ने सन १४१७ से सन १४२० के बीच बनवाया ! इसकी कारीगरी और खूबसूरत मोजेक और टाइल वर्क देखते ही बनता है ! इसके चारों कोनों पर सुन्दर मीनारें बनी हुई हैं ! उलुगबेग स्वयं बहुत विद्वान् था ! खगोल विद्या में उसकी बहुत दिलचस्पी थी ! उसके इस मदरसे में छात्रों को विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र जैसे विषय भी पढ़ाये जाते थे ! यहाँ पर छात्रावास की व्यवस्था भी थी ! छात्र यहाँ आकर उसी तरह रहते थे जैसे आजकल होस्टल में रहते हैं !


दूसरा मदरसा शेर डोर मदरसा है जिसका निर्माण यलन्गतूश बक्दूर ने सत्रहवीं शताब्दी में सन १६१९ से सन १६३६ के बीच करवाया ! इसके मुख्य द्वार पर हिरन और शेर की आकृतियाँ बनी हुई हैं ! शेर के शरीर पर उदित होते सूर्य की आकृति भी बनी हुई है ! एक मदरसे के द्वार पर इस तरह की आकृतियों का बनाया जाना हैरान कर जाता है क्योंकि इस्लामी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी स्थान पर जीवित प्राणी की छवि को उकेरना या बनाना निषिद्ध माना जाता है !


तीसरा मदरसा तिल्या कोरी मदरसा है जिसका निर्माण सन १६४६ से सन १६६० के बीच हुआ ! यह बहुत ही विशाल दोमंज़िला इमारत है ! जहाँ हर जुम्मे के दिन समरकंद की सारी आबादी नमाज़ पढ़ने के लिए एकत्रित होती थी ! सारे शाही फरमानों की घोषणा यहाँ से की जाती थी और दूर दूर से पढ़ने के लिए छात्र यहाँ आते थे ! यहाँ भी छात्रों के रहने का समुचित प्रबंध था और यह अपने युग का सबसे मशहूर मदरसा माना जाता था !
रेगिस्तान स्क्वेयर की सैर बहुत ही बढ़िया रही ! हम लोग अगस्त के अंतिम सप्ताह में ताशकंद गए थे ! सितम्बर के प्रथम सप्ताह में उज्बेकिस्तान का स्वतन्त्रता दिवस आने वाला था ! सब जगह बड़ी ज़ोर शोर से उस उत्सव के लिए सजावट और सुरक्षा की चाक चौबंद तैयारियाँ चल रही थीं ! रेगिस्तान स्क्वेयर पर भी टूरिस्ट पुलिस का एक बड़ा दस्ता मुस्तैदी से तैनात था ! खूब लम्बे चौड़े खूबसूरत नौजवान ज़र्क वर्क पोशाक में बड़े ही आकर्षक लग रहे थे ! इस दस्ते में महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थीं ! मैंने उनसे फोटो लेने की इज़ाजत माँगी तो उन्होंने बड़े प्यार से हमें अपने साथ खड़ा कर खूब सारी तस्वीरें खींचीं भी और खिंचवाई भी !


रेगिस्तान स्क्वेयर देखते देखते काफी देर हो गयी थी ! सुबह ताशकंद से बड़े सवेरे नाश्ता करके चले थे ! इस समय तक खूब भूख लग आई थी ! लंच के लिए हम सब बीबी मोबारो के घर पर जाने वाले थे ! उज्बेकिस्तान के किसी निवासी का अपना घर देखने का यह दुर्लभ अवसर था ! उनका जीवन, उनका रहन सहन, उनके तौर तरीके देखने की मुझे सच में बड़ी उत्सुकता और जिज्ञासा थी ! बीबी मोबारो ८० वर्ष की वृद्ध महिला हैं और साठ वर्षों से वे अपने घर में ही खानसामों और कर्मचारियों की सहायता से रेस्टोरेंट चला रही हैं जहाँ अतिथियों को सुस्वादिष्ट भोजन वे उपलब्ध कराती हैं ! उनके यहाँ बुटीक में तैयार किये गए सुंदर परिधान भी मिलते हैं ! 


बीबी मोबारो के घर का रास्ता बहुत ही खूबसूरत था ! रिहाइशी इलाके में जाने का यह हमारा पहला अवसर था ! यहाँ की सड़क मुख्य मार्ग से कुछ कम चौड़ी थी ! दोनों तरफ मकान बने हुए थे और उनमें अहातों में लगे हुए फलों के पेड़ों से सारा वातावरण सुरभित था ! बीबी मोबारो के घर के आगे पूरी सड़क को कवर करते हुए लोहे का बड़ा ऊँचा गेट सा बना हुआ था जिसमें अंगूरों के असंख्य गुच्छे लटक रहे थे ! बीबी मोबारो ने स्वयं गेट पर हम लोगों की अगवानी की ! उनका दोमंज़िला घर बहुत खूबसूरत था ! सामने दालान में दो बड़ी बड़ी टेबिल्स लगी हुई थीं जहाँ हमें शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा गया ! अत्यंत स्वादिष्ट दाल का सूप, चावल, उज्बेकिस्तान की स्पेशल नान, अनेकों तरह के अति स्वादिष्ट फल, सलाद, बेकरी आइटम्स और कोल्ड ड्रिंक्स ! मन और आत्मा तृप्त हो गयी ! वहाँ की उँगली के साइज़ की ककड़ी (खीरा) मुझे बहुत अच्छी लगीं ! बमुश्किल तीन चार इंच की लम्बाई और अँगूठे के बराबर मोटी ! उन्हें छीलने की ज़रुरत भी नहीं होती और स्वाद एकदम ग़ज़ब का !
बीबी मोबारो के यहाँ पले हुए बड़े सुन्दर पंछियों को भी देखा ! उनके घर के अन्दर के बरामदे में उनके परिवार के सदस्यों के साथ कुछ पल भी बिताये और खूब तस्वीरें भी लीं ! मन में खूब मधुर स्मृतियाँ लेकर हम बीबी मोबारो के घर से चले !


 ग्रुप में सब चर्चा कर रहे थे कि ताशकंद और समरकंद में सड़क पर कोई भी कुत्ता बिल्ली या जानवर नहीं दिखा ! मुझे एक घर के बगीचे में एक कुत्ता सोता हुआ दिखाई दिया तो मैंने उसकी तस्वीर ले ली ! लेकिन वह चौंक कर उठ गया ! मेरी हरकत शायद उसे पसंद नहीं आयी और वह उठ कर दूसरी जगह चला गया !

हमारा अगला पड़ाव उलुगबेग द्वारा बनवाई गयी ऑब्ज़र्वेटरी था ! लेकिन समय हमारे पास कम था ! अन्य मशहूर स्थल देखने बाकी थे और उसी रात बुखारा के लिए हमें ट्रेन भी पकड़नी थी ! इसलिए ऑब्ज़र्वेटरी के बाहर प्लेटफार्म पर लगी उलुगबेग की भव्य प्रतिमा को देख कर और उसकी तस्वीरें खींच कर ही हमने संतोष कर लिया ! और हम चल पड़े एक और मशहूर पर्यटन स्थल ‘शाह ए ज़िंदा’ देखने के लिए ! यह भी बहुत ही पुराना और ऐतिहासिक स्थान है ! इसका गेट उलुगबेग ने पंद्रहवीं सदी में बनवाया था ! 


इस जगह का नाम शाह ए ज़िंदा इसलिए पड़ा कि मशहूर किंवदंती के अनुसार सातवीं शताब्दी में पैगम्बर मोहोम्मद साहेब के रिश्ते के भाई कुसम इब्न अब्बास इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए जब यहाँ आये तो उनका सर कलम कर दिया गया और उन्हें इस स्थान पर दफना दिया गया ! लेकिन कहा जाता है कि वे यहाँ कब्र से अपना सर लेकर एक गहरे कूएँ में प्रवेश कर गए जो बाग़े हयात में है ! लोगों का विश्वास है कि वो आज भी ज़िंदा हैं और वहाँ रहते हैं ! यहाँ पर अनेकों मकबरे हैं जिनमें कुछ कब्रें तैमूर की बहनों की हैं ! कुछ महत्वपूर्ण सेना के पदाधिकारियों या धर्म गुरुओं की हैं ! हमें सच में बड़े गर्व का अनुभव हुआ जब हमारे गाइड ने हमें बताया कि इनमें से कई मकबरों के निर्माण में राजस्थान के मकराना का संगमरमर इस्तेमाल किया गया है ! मकबरों में से वर्तमान में कुछ तो काफी खंडहर अवस्था में हैं लेकिन कई एक की मरम्मत कर उन्हें रेस्टोर करने का प्रयास किया गया है ! इस स्थान का निर्माण बारहवीं सदी से लेकर उन्नीसवीं सदी तक हुआ ! यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है और सिलसिलेवार तीन मुकामों पर तीन ग्रुप्स में ये मकबरे बनाए गए हैं ! इसमें ऊपर तक जाने के लिए कई सीढ़ियाँ हैं ! यदि आपको सारी कब्रें और उनका स्थापत्य देखना हो तो ऊपर तक जाना पड़ता है ! ग्रुप के कई सदस्य तो ऊपर गए ही नहीं ! हमने लेकिन इसे पूरा देखा ! 

नीचे उतर कर आये तो अनेकों स्थानीय निवासियों ने हम लोगों के साथ खूब तस्वीरें खिंचवाईं ! सड़क किनारे हरे सेव का पेड़ लगा हुआ था ! फल छोटे थे तो समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सा फल है ! तब एक लोकल बन्दे ने हम सबको छाँट छाँट कर बड़े बड़े सेव तोड़ कर खाने के लिए दिए ! सच में वहाँ के लोग बहुत ही आत्मीय और सज्जन हैं !

शाह ए ज़िंदा देखने के बाद हमें शॉपिंग के लिए बाज़ार जाना था ! सबसे अधिक मज़ा यहीं आया ! हालाँकि बस ने हमें काफी नीचे उतार दिया था लेकिन रास्ता रमणीक था और जगह खूबसूरत थी तो चल दिए उत्साह के साथ ! मार्केट के अन्दर पहुँच कर देखा कि केवल खाने के सामान का बाज़ार ही खुला था उस दिन ! लेकिन बाज़ार के आस पास जो अन्य दुकानें थीं वहाँ हर चीज़ मिल रही थी ! बहुत बड़े एरिया में यह बाज़ार था लेकिन कितना व्यवस्थित और साफ़ सुथरा ! ऊपर से पूरी तरह कवर्ड ! यहाँ हर प्रकार के मेवे मिल रहे थे ! सूखे मेवों का समरकंद सबसे बड़ा निर्यातक है ! काग़ज़ी बादाम का छिलका इतना नर्म और मुलायम कि अपने यहाँ की मूँगफली के छिलके भी उनसे कड़े लगें ! बाकी सब तो यहाँ भी खूब मिलता है लेकिन इतने बढ़िया बादाम यहाँ नहीं मिलते इसलिए हमने बादाम और अखरोट खरीदे वहाँ से ! आसपास की सोवेनियर शॉप्स से कुछ चीनी के प्लैटर्स खरीदे और समरकंद की यादगार स्वरुप कुछ शॉपिंग बैग्स लिए ! मेरा मोबाइल फोन वहाँ एक दूकान पर छूट गया ! लेकिन इतने शरीफ और सज्जन लोग हैं ! उन्होंने तुरंत लाकर हमें दे दिया ! मैंने उन्हें उपहार स्वरुप कुछ सोम देने की पेशकश भी की लेकिन उन्होंने विनम्रता के साथ लेने से मना कर दिया ! मेरा मन कृतज्ञता से भर उठा !

शाम उतर आई थी ! हमें डिनर के लिए भी जाना था और रात को बुखारा के लिए ट्रेन भी पकड़नी थी ! सारा सामान लेकर हम पहाड़ी से नीचे उतर कर एक स्थान पर बस का इंतज़ार करने के लिए बैठ गए ! आस पास का नज़ारा खूबसूरत था ! यहीं कहीं पास में बीबी खानम का मकबरा था लेकिन वहाँ जाने के लिए समय नहीं था ! बस के आते ही उसमें सवार होकर डिनर के लिए समरकंद के मशहूर करीमबेग होटल में हम लोग पहुँचे ! हम लोगों का २९ लोगों का ग्रुप था ! एक बहुत बड़ी टेबिल पर हम लोगों के लिए शाकाहारी भोजन का प्रबंध था ! जगह सुन्दर, भोजन स्वादिष्ट और सभी साथियों का सुखद सान्निध्य ! यात्रा का हर पल बहुत ही आनंद दायक था ! गुज़रने वाला हर पल हमें नयी ऊर्जा, नए अनुभव और नए ज्ञान से समृद्ध करता जा रहा था ! सबने खूब मज़े लेकर खाना खाया ! यहाँ से हमें सीधे स्टेशन जाना था बुखारा के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए !


तो चलिए समरकंद का क़िस्सा यही ख़त्म करते हैं ! अगली कड़ी में आपसे मुलाक़ात होगी बुखारा में ! तब तक के लिए इजाज़त दीजिये और इन तस्वीरों का मज़ा लीजिये !



साधना वैद

Friday, January 10, 2020

विरासत



अपने सारे जीवन भर 
घर, परिवार, समाज, नियति इन सबसे 
असंख्य चोटों, गहरे ज़ख्मों और 
अनगिनती छालों की 
जो दौलत मैंने विरासत में पाई है   
उसे आज मैं तुम्हें 
हस्तांतरित करने के लिए तत्पर हूँ, 
तुम चाहो तो उसे ले लेना ! 


आज मैं पूर्णत: जागृत और सचेत हूँ !
घर आँगन में उगे अनजाने, अनचीन्हे, अदृश्य
कैक्टसों के असंख्यों विषदंशों ने
मुझे हर क्षण, हर पल
एक तीव्र पीड़ा के साथ झकझोर कर जगाया है
और हर चुभन के साथ मेरी मोहनिंद्रा भंग हुई है ।
उस अभिशप्त आँगन में
मेरा पर्यंक आज भी रिक्त पड़ा हुआ है ।
तुम चाहो तो उस पर सो लेना ।

आज मैं सर्वथा प्रबुद्ध और शिक्षित हूँ !
बाल्यकाल से ही जिन संस्कारों, आदर्शों और मूल्यों को
अनमोल थाती मान सगर्व, सोल्लास
अपने आँचल में फूलों की तरह समेट
मैं अब तक सहेजती, सम्हालती, सँवारती रही
वर्तमान संदर्भों में वे
निरे पत्थर के टुकड़े ही तो सिद्ध हुए हैं
जिनके बोझ ने मेरे आँचल को
तार-तार कर छिन्न-विच्छिन्न कर दिया है !
आज भी घर के किसी कोने में
मेरी साड़ी का वह फटा आँचल कहीं पड़ा होगा
तुम चाहो तो उसे सी लेना ।

आज मुझे सही दिशा का बोध हो गया है !
भावनाओं की पट्टी आँखों पर बाँध
टूटे काँच की किरचों पर नंगे पैर अथक, निरंतर, मीलों
जिस डगर पर मैं चलती रही
उस पथ पर तो मेरी मंज़िल कहीं थी ही नहीं !
लेकिन आज भी उस राह पर
रक्तरंजित, लहूलुहान मेरे पैरों के सुर्ख निशान
अब भी पड़े हुए हैं
तुम चाहो तो उन पर चल लेना ।

आज मेरी आँखों के वे दु:स्वप्न साकार हुए हैं
जिन्हें मैंने कभी देखना चाहा ही नहीं !
कहाँ वे पल-पल लुभावने मनोरम सपनों में डूबी
मेरी निश्छल, निष्पाप, निष्कलुष आँखें !
कहाँ वो बालू को मुट्ठी में बाँध
एक अनमोल निधि पा लेने के बाल सुलभ हर्ष से
कँपकँपाते मेरे अबोध हाथ !
कहाँ वो दिग्भ्रमित, दिशाहीन
हर पल मरीचिकाओं के पीछे
मीलों दौड़ते थके हारे मेरे पागल पाँव !
और कहाँ इन सारी सुकुमार कल्पनाओं में
झूठ के रंग भरते
पल-पल बहलाते, भरमाते, भावनाओं से खिलवाड़ करते
आडम्बरपूर्ण वक्तव्यों के वो मिथ्या शब्द जाल !
इन सारी छलनाओं के अमिट लेख
अग्निशलाकाओं से आज भी
मेरे हृदय पटल पर खुदे हुए हैं
तुम चाहो तो उन्हें पढ़ लेना ।

साधना वैद

Thursday, January 9, 2020

ताशकंद यात्रा – ६ - तैमूर का शहर समरकंद



ग्रुप के कुछ साथियों का टिकिट किसी कारणवश बुलेट ट्रेन से नहीं हो पाया था इसलिए उन्हें बाद की ट्रेन से आना पड़ा ! हम सभी बस में बैठ कर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे ! अनजान देश ! ग्रुप से अलग हो गए कुछ सदस्य ! उद्विग्नता भी बनी हुई थी और चिंता भी हो रही थी ! दिन का तापमान बढ़ता जा रहा था और अच्छी खासी गर्मी हो गयी थी ! लेकिन हमें बहुत अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी ! जल्दी ही वे लोग भी आ गए और हमारा कारवाँ चल पड़ा समरकंद की सड़कों पर उन ऐतिहासिक इमारतों को देखने के लिए जो सदियों से अपना मस्तक उठाये बड़ी शान से आज भी खड़ी हुई हैं !
समरकंद दो हज़ार सात सौ साल पुराना शहर है ! अगर हम इसकी प्राचीनता का आकलन करें तो यह बेथलीहैम और रोम का समकालीन शहर है ! अमीर तैमूर ने इस शहर को अपनी राजधानी बना कर इसमें एक से बढ़ कर एक खूबसूरत इमारतों और भवनों को बनाने की परम्परा डाली जिसके लिए धन उसने टर्की, ईरान, भारत व अन्य अनेकों देशों में अपने वृहद् लूट के अभियानों द्वारा संचित किया ! इसके पूर्व इस शहर को चंगेज़ खान और सिकंदर ने हमला करके एक तरह से ध्वस्त ही कर दिया था ! तैमूर जितना बहादुर और महत्वाकांक्षी था उतना ही वह क्रूर और निरंकुश भी था ! उसने दो करोड़ निरपराध लोगों की बड़ी बर्बरतापूर्वक हत्या की थी ! उसके नाम का अर्थ ही है ‘फौलाद’ ! वह फौलाद सा ही कठोर और भावना शून्य था ! भारत में उसके द्वारा की गयी दिल्ली की लूट और नृशंस कत्ले आम इतिहास के काले पन्नों में दर्ज़ है ! उसने अनेकों लड़ाइयाँ बड़ी बहादुरी से लड़ीं और विश्व में अपने वर्चस्व का झंडा गाढ़ दिया ! समरकंद का पुनर्निर्माण कर इसे भव्य और सुन्दर बनाया ! इसीलिये बाकी दुनिया वाले उसके बारे में जो भी सोचें या कहें तैमूर को उज्बेकिस्तान में बड़े ही आदर और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ! उसका एक पैर युद्ध में स्थायी रूप से चोटिल हो गया था इसलिये वह लंगड़ा कर चलता था ! भारत में उस आतातायी को ‘तैमूर लंग’ के नाम से पुकारते हैं लेकिन समरकंद में उसे बड़े आदर मान के साथ ‘अमीर तैमूर’ कहा जाता है ! वर्तमान में समरकंद शहर प्राचीन युग की भव्य इमारतों और आधुनिक ज़माने के शहरीकरण और मनमोहक साज सज्जा का अनोखा सम्मिश्रण है !
समरकंद की साफ़ सुथरी चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर हमारी बस हौले-हौले चल रही थी ताकि हम खिड़की से शहर की खूबसूरती का लुत्फ़ उठा सकें ! मुझे शहर के सड़कों के दोनों और सुन्दर फूलों से सजे गमलों के स्टैंड बहुत ही आकर्षक लगे ! ये स्टैंड्स लोहे के थे और इनमें किसी में तीन किसी में चार पाँच किसी में छ: सात गमले बने हुए थे जिनमें बड़े ही आकर्षक फूल खिले हुए थे ! यह आइडिया मुझे बहुत अच्छा लगा ! अलग अलग शेप्स और साइज़ में ये स्टैंड्स ज़मीन में गढ़े हुए थे जिनमें कम जगह में ही रंग बिरंगे खूबसूरत फूलों के कई गमले आ गए थे और वातावरण को खुशनुमां और सुरभित बना रहे थे ! चलती बस से फोटो लेना संभव नहीं हो पा रहा था लेकिन अपने मन में मैंने इनकी फोटो सहेज ली थी !
सबसे पहला स्थल जो हमने देखा वह था रेगिस्तान रोड पर स्थित अमीर तैमूर स्क्वेयर जहाँ अमीर तैमूर की एक बहुत विशाल एवं भव्य प्रतिमा एक बड़े से चबूतरे पर रखी हुई है ! उसकी नक्काशी और जीवंत भाव भंगिमा देखते ही बनती है ! उसका जालीदार मुकुट, उसकी पोशाक की सिलवटें और उसका बॉर्डर, उसकी कामदार जूती सब देखने लायक हैं ! उसने किसी युद्ध में अपना दाहिना पैर घुटने के नीचे से गँवा दिया था ! यहाँ भी मूर्ति का एक ही पैर बना हुआ है ! इस स्थल पर भी सबने अमीर तैमूर की मूर्ति के साथ खूब तस्वीरें खीचीं और खिंचवाईं ! यहाँ का हॉल्ट छोटा ही था ! हम लोग बस में बैठ कर चल पड़े तैमूर के मकबरे की ओर !
तैमूर के मकबरे को गुर ए आमिर भी कहा जाता है ! अंग्रेज़ी में इसका नाम तैमूर मुसोलियम है ! मध्य युगीन स्थापत्य और कलाकारी का यह अद्भुत नमूना है ! सन १४०३ में इसका निर्माण कार्य आरम्भ हुआ था ! अमीर तैमूर ने अपने सर्वाधिक प्रिय पोते मुहम्मद सुलतान के लिए इसे बनवाया था जिसकी मृत्यु २७ वर्ष की अवस्था में किसी युद्ध में लड़ते हुए हो गयी थी ! लेकिन बाद में यह तैमूर के परिवार के कई सदस्यों की अंतिम ख्वाबगाह बन गया ! तैमूर के दोनों बेटे शाहरुख और मीरान शाह, दोनों पोते मुहम्मद सुलतान और उलुगबेग, स्वयं अमीर तैमूर और उनके परिवार के धर्म गुरु सैयद बारक्का को भी इसी मुसोलियम में दफनाया गया !
इसकी भव्य अष्टकोणीय इमारत और ऊपर की बहुत ही खूबसूरत गुम्बद देखते ही बनती है ! अष्टकोणीय इस चेंबर में चारों तरफ दीवारों पर अत्यंत सुन्दर इनले वर्क हो रहा है ! इसका प्रवेशद्वार एक बेहद प्राचीन और बहुत ही खूबसूरत नक्काशी वाला लकड़ी का दरवाज़ा है जिसे उलुगबेग ने १५ वीं सदी में बनवाया था ! गुम्बद में ६४ रिब्स हैं जो पैगम्बर मोहोम्मद साहेब के जीवन काल के चौंसठ वर्षों की प्रतीक हैं ! अमीर तैमूर की कब्र पर गहरे हरे रंग का जेड (पन्ना) पत्थर रखा हुआ है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह विश्व का सबसे बड़ा जेड स्टोन है ! इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है ! तैमूर के पोते उलुगबेग ने १५ वीं सदी में इसे मुगलिस्तान से लाकर अपने दादा जी की कब्र पर लगाया था ! कहते हैं कि इस पत्थर में उस वक्त जादुई शक्तियाँ थीं ! चीन में पहले इसकी पूजा हुआ करती थी फिर यह चंगेज़ खान के उत्तराधिकारी चुगताई खान के सिंहासन के रूप में प्रयोग में लाया जाने लगा वहाँ से लूट कर उलुगबेग इसे समरकंद ले आया और अपने दादा तैमूर की कब्र पर लगा दिया ! बाद में १७ वीं शताब्दी में नादिर शाह ने जब समरकंद पर आक्रमण किया तो इस पत्थर को उखाड़ कर वह अपने साथ ले गया और उसने अपने सिंहासन के सामने इसे एक सीढ़ी की तरह उपयोग में लाने के लिए लगा दिया ! लेकिन इसके बाद ही नादिर शाह पर विपत्तियों का सिलसिला शुरू हो गया और उसके बुरे दिन आ गए ! तब लोगों ने उसे सलाह दी कि ये सारी मुसीबतें इस पत्थर की वजह से आ रही हैं और उसे यह पत्थर वापिस समरकंद ले जाकर तैमूर की कब्र पर रख देना चाहिए ! नादिर शाह इसे समरकंद ले जाने के लिए तैयार हो गया ! लेकिन समरकंद ले जाते वक्त यह पत्थर एक दुर्घटना में टूट गया ! इस पत्थर पर अरबी भाषा में लिखा हुआ है “जब मुझे किसी मृतक के ऊपर से हटाया जाएगा तो सारा संसार थर्रायेगा !”
तैमूर के इसी मुसोलियम के कॉम्प्लेक्स में भव्य प्रवेश द्वार के अलावा एक मदरसा और एक खानका भी था ! खानका में उन दिनों प्रिंस मुहम्मद सुलतान का परिवार रहा करता था ! मकबरे की बड़ी खूबसूरत चार मीनारें थीं ! लेकिन अब वहाँ देखने योग्य बस विशाल एवं भव्य प्रवेश द्वार, मकबरा और दो मीनारें ही बची हैं ! खानका, मदरसा और दो मीनारें ध्वस्त हो चुकी हैं ! इसके कोर्टयार्ड में एक बड़ा सा पत्थर रखा हुआ है जो उस ज़माने में सुल्तानों के गद्दीनशीन होने के वक्त काम में लाया जाता था !
आजकल यहाँ मकबरे के पीछे के खंडहरों में पर्यटकों की दिलचस्पी के सोवेनियर्स, कपडे, स्कार्फ, पर्स, फ्रिज मैगनेट आदि सामान बिकते हैं !
तैमूर मुसोलियम का कॉम्प्लेक्स काफी बड़ा है ! वाश रूम्स भी हैं जो काफी दूरी पर हैं ! एक बार उसे इस्तेमाल करने के लिए एक हज़ार सोम की फीस चुकानी पड़ती है ! भारत में दो रुपये पाँच रुपये सुनने के आदी कान एक हज़ार सोम सुन कर झनझना गए ! लेकिन देना तो थे ही ! उस समय कौन एक्चेंज रेट का हिसाब लगाता है ! ऐसा लगा कहीं ठगे तो नहीं जा रहे ! लेकिन थोड़ी देर बाद ही सब भूल गये ! ग्रुप के सभी लोग शायद बाहर चले गये थे ! अलका चौधरी जी हमारे साथ थीं ! हम बाहर निकले तो कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था ! न बस ना ही ग्रुप के सदस्य ! अभी तक किसी होटल में भी नहीं रुके थे कि वहीं से कुछ पता लगाने का प्रयास करते ! धीरे-धीरे हम उसी दिशा में चल पड़े जहाँ बस ने उतारा था ! दूर तक कहीं कोई दिखाई नहीं दे रहा था ! स्थानीय निवासी सिर्फ इशारों में बात समझते थे ना वो हिन्दी जानते थे ना अंग्रेज़ी ! और उनसे पूछते भी क्या जब स्वयं हमें ही अपना पता ठिकाना मालूम न था ! माथे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी थीं ! तभी सड़क किनारे के हरे भरे उद्द्यान में कुछ भगवा रंग की झलक सी दिखाई दी ! यह रंग जाना पहचाना सा लगा ! हमारे ग्रुप के ही डॉ. स्वामी विजयानंद जी ऐसे ही भगवा परिधान पहनते हैं ! उनके पीछे हमने दौड़ लगा दी तो ग्रुप के और सदस्य भी दिखाई दिये और पास में बस भी दिखाई दे गयी ! हमारी जान में जान आई ! भटकते-भटकते बच गए ! सब हम लोगों का ही इंतज़ार कर रहे थे ! मन कृतज्ञता से भर आया !
चलिए आप भी आराम करिए अब ! बहुत रात हो चुकी ! अगले स्थानों की सैर अगले अंक में ! तो चलती हूँ ! श्रंखला की इस कड़ी के लिखने में बड़े व्यवधान आ गए थे तो देर हुई लेकिन अब अगली कड़ियाँ जल्दी जल्दी आयेंगी यह वादा रहा ! आप साथ में चल तो रहे हैं ना मेरे ?
साधना वैद

Sunday, January 5, 2020

राग - वैराग्य


हमने था शामिल किया अपनी दुआओं में तुझे
पर न शामिल हो सके तेरी दुआओं में कभी,
दूर था तेरा ठिकाना रास्ता दुश्वार था
हम जतन करते रहे तुझ तक पहुँचने के सभी !

पर मिली ना मंज़िलें, ना रास्तों का था पता
हम तेरी गलियों में यूँ बेआसरा भटका किये
आँख में तस्वीर तेरी, दिल में तेरी आरज़ू
बस तेरे साए को छूने का भरम मन में लिए !

अब ना तेरी आरज़ू, ना याद, ना कोई गिला
आज मन का राग ज्यों वैराग्य ही से युक्त है
नाम था तेरा मेरी जिन प्रार्थनाओं में कभी
पंक्तियाँ सारी वो उन गीतों से बिलकुल मुक्त हैं !

साधना वैद



Thursday, January 2, 2020

मुझे अच्छा लगता है




इन दिनों
मन की खामोशियों को
रात भर गलबहियाँ डाले
गुपचुप फुसफुसाते हुए सुनना
मुझे अच्छा लगता है !  

अपने हृदय प्रकोष्ठ के द्वार पर
निविड़ रात के सन्नाटों में
किसी चिर प्रतीक्षित दस्तक की
धीमी-धीमी आवाज़ों को
सुनते रहना
मुझे अच्छा लगता है !
  
रिक्त अंतरघट की  
गहराइयों में हाथ डाल
निस्पंद उँगलियों से
सुख के भूले बिसरे
दो चार पलों को  
टटोल कर ढूँढ निकालना
मुझे अच्छा लगता है !

अतीत की वीथियों में क्रमश: 
धीमी होती जाती अनगिनती 
जानी अनजानी ध्वनियों के 
कोलाहल के बीच 
प्राणों से भी प्रिय 
और साँसों से भी अनमोल
गिनी चुनी चंद दुआओं की ध्वनि को  
बड़ी एकाग्रता से सुनने की चेष्टा करना 
मुझे अच्छा लगता है ! 
  
थकान के साथ
शिथिलता का होना  
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है ! 

लेकिन सपनों से खाली
इन रातों में
थके लड़खड़ाते कदमों से  
खुद को ढूँढ निकालना
और असीम दुलार से
खुद ही को निज बाहों में समेट  
आश्वस्त करना  
मुझे अच्छा लगता है !



साधना वैद