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Monday, April 25, 2016

एक विकट समस्या का सरल समाधान - जल





सम्पूर्ण विश्व और हम भारतीय भी इन दिनों जल संकट से जूझ रहे हैं ! दो वर्षों से वर्षा कम हुई है और खेती व जनजीवन के लिये जल का प्रबंध करना सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है !
आइये पानी की समस्या को थोड़ा सरल भाषा में समझें ! वैसे तो अपनी पृथ्वी का ७५% हिस्सा पानी से डूबा हुआ है लेकिन इस पानी का मात्र ०.५% ही मीठा पानी है जो पीने के लिये और खेती व औधोगिक इस्तेमाल के लिये उपयोग में लाया जा सकता है !
अपने देश भारत में यह समस्या कितनी विकट है उसे कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है ! विश्व के सारे भू भाग का मात्र २% भारत के पास है ! जिस पर पूरे विश्व की १६% आबादी का बोझ है और जिसके लिये मीठे पानी की उपलब्धता तो ०.५% का भी ४% ही है !
अब यह भी देख लिया जाए कि मीठा पानी हमको मिलता किस प्रकार है ! सर्वप्रथम यह हमें मिलता है पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ के रूप में जिसके बर्फीले ग्लेशियर या हिमनद पिघल-पिघल कर नदियों के रूप में हमारे देश के बड़े हिस्से में मीठे पानी की आपूर्ति का स्त्रोत बने हुए हैं !
वर्षा से प्राप्त होने वाला पानी हमारा मीठे पानी का दूसरा महत्वपूर्ण स्त्रोत है ! यह पानी अनेक बरसाती नदियों को जन्म देता है जो आगे चल कर बड़ी छोटी झीलों व तालाबों को पानी से भर देती हैं ! देश के मध्य भाग के पठार में जो पहाड़ हैं वे स्पंजी चट्टानों और पत्थरों की परतों से बने हुए हैं ! ये बड़ी मात्रा में बरसाती पानी को सोख और रोक लेते हैं और यह संचित बरसाती पानी अनेक उदगम स्थलों से बाहर निकल कर कई छोटी बड़ी जलधाराओं का निर्माण करता है जो आगे जाकर बड़ी नदियों में परिवर्तित हो जाती हैं जिनमें नर्मदा, कृष्णा, ताप्ती, गोदावरी तथा कावेरी आदि प्रमुख हैं ! इन्हीं पर बाँध बना कर बड़े-बड़े जलाशय बनाए गये हैं ! देश के मैदानी भाग और ये पठारी इलाके बरसात के पानी के बहुत बड़े भाग को सोख कर अपने अंदर जमा कर लेते हैं जिसे ग्राउण्ड वाटर कहते हैं ! मीठे पानी का लगभग ४०% जल भूमिगत होकर हमारे उपयोग के लिये उपलब्ध हो जाता है ! 
 
यही जल हमारी कुल खेती की आवश्यकता की ५५% की पूर्ति तो करता ही है साथ ही गाँव की कुल आबादी की दैनिक आवश्यकताओं की ८५% और शहर की कुल आबादी की ५०% जल की आपूर्ति भी यही ग्राउण्ड वाटर कर रहा है जो कूएँ, हैंड पम्प व बोरवेल आदि के माध्यम से हमें प्राप्त होता है !
कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस भूमिगत जल का संरक्षण और इसका जल स्तर गिरने से रोकना हमारी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए ! सबसे अधिक राहत की बात यह है कि भूमिगत पानी के स्तर के संरक्षण के लिये व उसे और अधिक गिरने से रोकने के लिये जिस ज्ञान व उपायों की ज़रूरत है वह सदियों से हमारे पास मौजूद है और हमारे पूर्वज सदियों से इनका प्रयोग कर समाज को पानी की समस्या से बचाते आये हैं ! गुजरात व राजस्थान की पुरानी हवेलियों में पानी के संग्रहण की इतनी अद्भुत व्यवस्था थी कि उसकी वजह से आपदा के समय कई महीनों तक घरों में बंद लोगों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ता था ! अहमदाबाद की अडलज बावड़ी व आगरा जयपुर के रास्ते में पड़ने वाली चाँद बावड़ी इनके बहुत ही सुन्दर उदाहरण हैं ! ऐसी बावड़ियों को बनाने की तकनीक ना तो अधिक खर्चीली है, ना ही इनके लिये हमें किसी विदेशी सहायता की ज़रूरत है ! ज़रूरत है तो सिर्फ सही समय पर सचेत होने की और सही कदम उठाकर समस्या के समाधान के लिये कृत संकल्प होने की ! 
 
 
राजस्थान एक बहुत कम वर्षा वाला प्रदेश है ! यहाँ हिमालय की बर्फ से बनने वाली कोई झील या नदी नहीं है ! लेकिन यही प्रदेश अपनी छोटी बड़ी झीलों तालाबों और बावडियों के लिये प्रसिद्ध है जिनका निर्माण मनुष्यों द्वारा उस समय किया गया जब ना तो जे सी बी मशीनें अस्तित्व में थीं ना ही बुलडोज़र ! साधन थे सिर्फ फावड़े, कुदाली, तसले और लोक गीत गाते हुए, पसीना बहाते हुए, दृढ़ निश्चयी, मेहनतकश नर नारी ! अब ज़रा हम इस बात पर भी विचार कर लें कि पिछले ४० – ५० सालों में कितने ताल तलैये हमारे इर्द गिर्द थे जिन्हें हमारी नादानी के चलते भर दिया गया और उन पर कंक्रीट के जंगल उगा दिए गये ! 
 
 
 
पानी के उचित संरक्षण के लिये एक बार फिर से हमको उन नदियों पर, जो सिर्फ बरसात में ही बहती दिखाई देती हैं, छोटे छोटे चेक डैम बना कर उनका पानी ताल तलैयों और झीलों में जमा करना होगा ! सूख चुके कूओं में वर्षा का पानी डाल कर भूमिगत पानी के जल स्तर को उठाने का पूरा प्रयास करना होगा ! जी हाँ इसे ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग कहते हैं ! इसके छोटे बड़े अनेक रूप हैं और हमें हर संभव तरीके से इन्हें अपनाना होगा ! मेरे विचार से मनरेगा जैसी योजनाओं के लिये उपलब्ध धन व संसाधनों को सिर्फ ऐसी योजनाओं में ही लगाना चाहिए जिससे ग्राउण्ड वाटर का स्तर बढ़ाने में सहायता मिले ! सूझ बूझ से पानी का सही उपयोग कर हमें इसका अपव्यय भी रोकना होगा तब ही हम इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगे ! अभी भी देर नहीं हुई है और साधन व हल दोनों ही हमारे पास हैं बस हमें अपने इरादों को मजबूती देनी होगी और सही निर्णय लेने के लिये एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करना होगा !
 
 
 
साधना वैद

Friday, April 22, 2016

शब्दों का पैरहन





तुम्हारे शब्दों का पैरहन

अब मेरे ख्यालों के जिस्म पर

फिट नहीं आता !

उसके घेर पर टँके

मेरे सुकुमार सपनों के सुनहरे सितारे

बेरहम वक्त की मार से

धूमिल हो जाने के बाद

कब के उखड़ चुके हैं !

किनारी पर लगी मेरी

कोमल भावनाओं की

निर्मल चाँदनी सी

रुपहली किरण जगह-जगह से

कट फट चुकी है !

मेरी अपेक्षाओं और अरमानों के

बहुत सारे रंग बिरंगे काँच

जो तुमसे उपहार में मिले

इस पैरहन पर

बड़ी खूबसूरती से

जगह-जगह पर जड़े थे

चटक कर गिर गये हैं !

गले, बाहों और कमर पर टँकी

तुम्हारे प्रेम की नर्म

रेशमी झालर में

इतने सूराख हो गये थे

कि मैंने उसे खुद ही

उखाड़ फेंका है !  

तुम्हारे शब्दों के इस लिबास से

हर बार कतर ब्योंत कर

घिसा फटा जर्जर हो चुका

काफी हिस्सा काट छाँट कर मैं

निकाल देती हूँ और

तुम्हारे वादों की सुई में

विश्वास का नया धागा डाल

उसे फिर से मरम्मत कर

सी लेती हूँ !

लिबास हर बार      

छोटा होता जाता है,

तानों उलाहनों के

पैने नश्तरों में उलझ कर

फट गये हिस्सों को 

मैं बार बार उधेड़ कर

सहिष्णुता के पैबंद लगा

बार बार सिल लेती हूँ !

जानते हो क्यों ?

क्योंकि तुम्हारा दिया हुआ

मेरे पास एक यही

अनमोल तोहफा है जिसे मैं

जी जान से अपने

कलेजे से चिपटाए 

रखना चाहती हूँ !  

लेकिन इस उधेड़बुन में

मेरे सपनों का फलक हर बार

छोटा होता जाता है

भावनाओं का ज्वार

मद्धम होता जाता है !

अपेक्षाओं और ज़रूरतों की सूची

सिमट कर छोटी होती जाती है !

बस बारहा एक यही कोशिश

बाकी रह जाती है कि  

उपहार में तुमसे मिले

इस पैरहन का एक रूमाल तो

कम से कम अपनी मुट्ठी में

मैं पकड़े रह सकूँ !

जीने के लिये

कोई तो भुलावा

ज़रूरी होता ही है ना !

बोलो,

तुम क्या कहते हो ?



साधना वैद



Wednesday, April 20, 2016

जल प्रदूषण ---- एक विकट समस्या



वर्तमान में आम इंसान को दिन प्रतिदिन जल के घटते हुए स्तर एवं प्रदूषण की भीषण समस्या का सामना करना पड़ रहा है ! ज़मीन के नीचे का जल स्तर कम वर्षा के कारण हर रोज़ घट रहा है तो नदी, झील, तालाब एवं कुओं का पानी प्रदूषण से इतना गंदा हो चुका है कि इसे साफ़ किये बिना इस्तेमाल करना आपदाओं को निमंत्रण देने जैसा हो गया है ! वर्षा पर तो हमारा कोई वश नहीं है लेकिन नदियों, झीलों, तालाबों, और कुओं के पानी को यदि हम कुछ प्रयास कर प्रदूषित होने से बचा सकें तो न केवल हम अपने आज को बचा सकेंगे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के कल को भी सँवार पायेंगे ! 

आइये ज़रा उन कारणों की जाँच पड़ताल कर लें जिनकी वजह से नदियों, झीलों व तालाबों का पानी सबसे अधिक प्रदूषित होता है !


बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव -                         
          

प्राय: बड़े-बड़े शहर व गाँव जो नदियों के किनारे बसे हुए हैं उनकी आबादी में पिछले कुछ वर्षों में कल्पनातीत वृद्धि हुई है किन्तु आबादी के अनुरूप नगर पालिकाओं की कार्य प्रणाली में न तो कोई सुधार ही आया है ना ही उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिये समुचित प्रबंध ही किये गये हैं ! नगरों में घरों के गंदे पानी की निकासी व कूड़े कचरे को हटाने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण सारा गंदा पानी घर से बाहर सड़क की नालियों में सड़ता रहता है जो अक्सर फेंके गये कूड़े कचरे से चोक हो जाती हैं और दुर्गन्ध और बीमारी के कीटाणुओं को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं ! शहर की नालियों का यह गंदा पानी और सारा कूड़ा कचरा बिना किसी ट्रीटमेंट के नदियों में ज्यों का त्यों मिला दिया जाता है जो नदियों के पानी को प्रदूषित करता है !


कल कारखानों के रसायन युक्त पदार्थों का नदियों में प्रवाहित होना –---


कल कारखानों से जो हानिकारक रसायन युक्त अपशिष्ट पदार्थ निकलते हैं उन्हें भी ट्रीटमेंट की समुचित व्यवस्था न होने के कारण जैसे का तैसा ही नदियों में बहा दिया जाता है जिनकी वजह से नदियों का पानी इतना प्रदूषित हो जाता है कि उससे कुल्ला करना भी बीमारियों को दावत देने जैसा हो जाता है ! आधुनिक खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन व कीटनाशक दवाएं भी बारिश के पानी के साथ नदियों के पानी में मिल कर पानी को प्रदूषित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं !


धार्मिक कारण ---


नदियों व तालाबों के प्रदूषण के लिये काफी हद तक जन मानस की अंधश्रद्धा व धार्मिक अनुष्ठानों का अतिरेक भी ज़िम्मेदार है ! पहले गणेशोत्सव या दुर्गा पूजा के अवसर पर शहरों में गिने चुने स्थानों पर पूजा के लिये पंडाल बनाए जाते थे और बड़ी दूर-दूर से लोग वहाँ पूजा करने के लिये आते थे ! अब शहरों की आबादी और सीमाएं बढ़ने साथ हर गली मोहल्ले में असंख्यों पंडाल बनाए जाने लगे हैं ! पूजा के बाद बड़ी संख्या में मूर्तियों तथा पूजा पाठ के लिये प्रयोग में लाये गये सामान जैसे सड़े गले हार फूल, राख, हवन सामग्री आदि का विसर्जन नदियों या तालाबों में किया जाता है जो न केवल पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं वरन पानी को बहुत अधिक प्रदूषित भी करते हैं !

हमारे देश में एक मानसिकता यह भी है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और समस्त रोगों का उपचार हो जाता है ! उनके किनारे अंतिम क्रिया करने से मृतात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसकी सद्गति हो जाती है ! इन मान्यताओं के चलते पवित्र मानी जाने वाली नदियों जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा आदि का प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ गया है क्योंकि हर समय इनके किनारे किसी न किसी शव की अंतिम क्रिया चलती रहती है व संस्कार के बाद का सारा अवशिष्ट सामान नदियों में बहा दिया जाता है ! इन नदियों में स्नान कर रोगमुक्त होने के स्थान पर अनेकों बीमारियों को लोग अपने साथ घर ले आते हैं ! कई बार तो धनाभाव के कारण शवों को बिना जलाए ही पानी में बहा दिया जाता है जो पानी में ही सड़ते रहते हैं और जलचरों का भोजन बन जाते हैं ! इस वजह से न केवल पानी ही प्रदूषित होता है नदी के जीव जंतुओं को भी बहुत हानि पहुँचती है !


आम जनता की अपनी विवशताएं एवं आदतें ---



बढ़ती हुई आबादी की पानी ज़रूरत पूरी न हो पाने के कारण लोग अक्सर नदी या तालाब पर नहाने धोने के लिये चले जाते हैं ! इसके कारण घाटों का पानी बहुत अधिक गंदा व प्रदूषित हो जाता है ! पहले के ज़माने में लोग सिर्फ पानी में डुबकी लगाते थे लेकिन अब लोग जब नदियों के घाट पर कपड़े धोने व नहाने के लिये जाते हैं तो तरह तरह के साबुन व शैम्पू इत्यादि का प्रयोग करते हैं ! नदी तालाबों के पानी में इन पदार्थों के मिलने से वह पानी बहुत अधिक गंदा हो जाता है ! 


केवल हम ही नहीं शहरों के आस पास गाँव देहात में बड़ी संख्या में गाय भैंसों को ताल तलैया में नहाते हुए और अपनी गर्मी को शांत करते हुए देखा जा सकता है ! चिंता का विषय तब हो जाता है जब इन्हीं ताल तलैयों का गंदा पानी बिना साफ़ किये हमें नलों के द्वारा घरों में इस्तेमाल करने के लिये सप्लाई किया जाता है !

इन्हीं सब कारणों से पानी हर रोज़ और अधिक गंदा होता जाता है ! घरों में जितना और जैसा पानी नलों में आ रहा है वह चिंता का विषय है ! एक तो पानी की मात्रा ही अपर्याप्त है दूसरे जो भी है और जितनी है वह भी नियमित नहीं है ! कई शहरों में तो रोज़ पानी की सप्लाई ही नहीं होती ! जहाँ होती भी है तो वह अपर्याप्त होती है ! और जो पानी नलों में आता है वह इतना गंदा होता है कि उसे यदि उबाले बिना या साफ़ लिये बिना पी लिया जाए तो प्राण संकट में पड़ सकते हैं ! नल के पानी को काँच के गिलास में निकालने पर पानी में घूमते हुए कीड़ों को बिना मैग्नीफाइंग ग्लास की सहायता के नंगी आँखों से भी सहज ही देखा जा सकता है !

उपर्युक्त कारणों पर गंभीरता से मनन किया जाए तो जल प्रदूषण के कारकों को हम भली भाँति समझ सकते हैं और इन्हें दूर करने के उपायों पर भी विचार कर सकते हैं ! सबसे पहले हमें स्वयं यह संकल्प लेना होगा कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिनके कारण जल प्रदूषित हो ! क्योंकि जल है तो कल है ! आज चेत जाइए और अपने आने वाले कल को और पीढ़ियों को रोगमुक्त और सुरक्षित कर लीजिए !



साधना वैद


Monday, April 11, 2016

एक अविस्मरणीय मुलाक़ात -- रश्मि रविजा जी के साथ



   कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी घटना, किसी बात या मुलाक़ात पर व्यक्ति तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे पाता ! इसके कई कारण हो सकते हैं ! उन कई कारणों में से एक कारण यह भी होता है कि व्यक्ति उस बात या मुलाक़ात से मिलने वाले आनंद और सुख को आत्मसात करने में इतना समय ले लेता है कि उसे अपनी प्रतिक्रिया देने में समय लग जाता है ! मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब दो दिन पूर्व रश्मि रविजा जी से मिलने का सुअवसर मिला ! जी हाँ, हमारी आपकी सबकी वही रश्मि रविजा जी जो वर्षों से अपने ब्लॉग, ‘अपनी, उनकी, सबकी बात’, पर अपने गंभीर और स्तरीय आलेख, कहानियों तथा लघु उपन्यासों से हम सबको प्रभावित करती आ रही हैं और अब फेसबुक पर भी विविध विषयों पर उनकी दिलचस्प पोस्ट्स और सामाजिक सरोकारों से जुड़े उनके स्टेटस सबको भरपूर पाथेय उपलब्ध कराते हैं ! ये स्टेटस कभी गंभीर, कभी चुटीले तो कभी हलके फुल्के मजाकिया भी होते हैं ! व्यक्तिगत प्रसंगों से जुड़े उनके स्टेटस अक्सर बड़े मनोरंजक होते हैं ! क्रिकेट से लेकर फिल्म समीक्षा तक और यात्रा संस्मरणों से लेकर अपने किचन में ज़रूरत से कहीं ज़्यादह बन गयी मटर की सब्जी के मज़ेदार ज़िक्र तक सब उनके लेखन का विषय बन जाते हैं ! बेटे के हाथ की बनी पहली बार की मसाला चाय की बात हो या बेटे की बनाई खूबसूरत रंगोली की चर्चा हो, अमलतास के फूल के इकलौते गुच्छे की तस्वीर हो या किसी साहित्यिक समागम की रिपोर्ट हो उनकी वाल पर हमेशा कुछ न कुछ अविस्मरणीय पढ़ने के लिये मिल ही जाता है ! अभी कुछ समय पूर्व उनका एक उपन्यास, ‘काँच के शामियाने’, भी प्रकाशित हुआ है जिसने कुछ ही दिनों में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल कर ली है !
रश्मि जी अपने भैया भाभी से मिलने आगरा आने वाली हैं यह बात मुझे फेसबुक पर उनके एक छोटे से लेकिन बेहद दिलचस्प स्टेटस से पता चली थी जो उन्होंने राजधानी एक्सप्रेस में यात्रियों को सर्व किये जाने वाले नाश्ते और खाने के मेनू को लेकर डाला था ! अपनी प्रिय आभासी मित्र से मिलने का यह अवसर मैं खोना नहीं चाहती थी सो मैंने उनसे फेसबुक पर ही अनुरोध किया कि वे यहाँ आ रही हैं तो मुझसे भी ज़रूर मिलें और मेरे इस अनुरोध को उन्होंने सहज ही स्वीकार कर लिया ! रश्मि जी के आगरा पहुँचने के बाद फोन पर हम लोगों की दो तीन बार बात हुई और ९ अप्रेल की सुबह मिलने का कार्यक्रम तय हो गया !
इंतज़ार खत्म हुआ ! अंतत: वह घड़ी भी आ ही गयी जब उनकी कार हमारे घर के सामने रुकी ! फेसबुक पर इतने सालों से जिस प्यारे से चहरे को देखती आ रही थी वह नज़रों में इतना समा चुका था कि उसे साक्षात अपने सामने देख पहचानने में मुझे एक पल भी नहीं लगा ! जैसे ही वो कार से बाहर आईं उन्हें देख कर मुझे वैसी ही आत्मीयता की अनुभूति हुई जैसे अपने किसी परम आत्मीय स्वजन को देख कर होती है ! सुबह घर में बिलकुल शान्ति रहती है ! बच्चे स्कूल जा चुके होते हैं ! परिवार के वयस्क सदस्य भी अपने–अपने काम से चले जाते हैं ! रश्मि जी जब घर आईं तो उनका स्वागत करने के लिये मैं, मेरे पतिदेव और मेरा प्रिय डॉगी ‘सम्राट’ उपस्थित थे ! पति देव रश्मि जी से रस्मी मुलाक़ात कर कम्प्यूटर पर अपने काम में व्यस्त हो गये ! सम्राट हमारे घर का बेहद चंचल और अति उत्साही सदस्य है ! अगर हम लोगों से पहले वह मेहमान को देख लेता है तो मेहमान का स्वागत करने के लिये वह इतना आतुर और अधीर हो जाता है कि हमें तो वह नमस्ते करने का अवसर भी नहीं देता ! उसे काबू में लाने के लिये अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ जाती है और बिस्किट्स की अच्छी खासी रिश्वत भी देनी पड़ती है ! इस स्थिति से बचने के लिये मैंने उसे पहले ही अपने कमरे में बंद कर दिया था ! घर में परम शान्ति थी, हम दोनों थे, दुनिया जहान की ढेर सारी बातें थीं और थी परम सुख की अनुभूति जो मुझे उनके साथ इस तरह मिल कर हो रही थी ! ब्लॉग जगत की बातें, कई कॉमन पढ़े हुए उपन्यासों की बातें, कई साहित्यकारों की बातें, घर परिवार की बातें और भी बहुत सारी बातें ही बातें ! बहुत मज़ा आया ! यह तो सर्व विदित है ही कि दो महिलायें साथ हों तो चुप नहीं रह सकतीं ! फिर हमें तो बहुत कुछ शेयर करना था एक दूसरे के साथ ! इसीलिए मैं जब चाय बनाने के लिये उठी तो उन्हें भी अपने साथ हमारे किचिन कम डाईनिंग रूम में ले गयी ! यह और बात है कि इसी बीच मौक़ा पाते ही सम्राट बाहर आ गया और फिर उसने पूरी शिद्दत के साथ रश्मि जी का स्वागत सत्कार किया ! यह तो अच्छा है कि रश्मि जी कुत्तों से डरती नहीं हैं और उनसे कतराती भी नहीं हैं इसलिए कोई विशेष परेशानी नहीं हुई ! तब तक हमारी बातों का पहला दौर भी निबट चुका था ! चाय बनने के दौरान और पीने के दौरान भी हम लोगों की बातों का सिलसिला जारी रहा !
  रश्मि जी मेरे लिये मन्नू भंडारी जी द्वारा रचित उनका अत्यंत लोकप्रिय उपन्यास ‘आपका बंटी’ लेकर आई थीं ! यह मेरा वैसे भी बहुत ही पसंदीदा उपन्यास है ! इसकी रिपीट वैल्यू भी बहुत है ! जितनी बार भी पढ़ा जाये हर बार हृदय को विगलित कर देता है ! मुझे बहुत अच्छा लगा ! पुस्तक के अलावा बहुत ही स्वादिष्ट कुकीज़ का पैकेट भी था जिसका रसास्वादन मैं नव रात्रि के व्रत समाप्त होने के बाद करूँगी ! रश्मि जी के प्रभावशाली व्यक्तित्व और मिलनसार व्यवहार ने घर में सबका दिल जीत लिया ! तब तक बच्चे भी स्कूल से आ गये थे ! वाणी ने हम लोगों के स्नैप्स लिये उनके और मेरे मोबाइल से ! रश्मि जी का ड्राइवर उन्हे लेने के लिये आ चुका था ! भेंट का समय समाप्त होने को आ गया था लेकिन मन तृप्त नहीं हुआ था ! रश्मि जी से अपने घर में इस तरह से मिलना इतना सुखद अनुभव था कि इसके बारे में मैं जितना लिखूँ कम ही रहेगा ! यही कामना है कि ऐसे अवसर बार-बार आयें और मेरे जीवन में इसी तरह मिठास घुलती रहे ! मुझे तो बस मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर याद आ रहा है ---
  
 वो आये घर में हमारे, खुदा की कुदरत है
 कभी हम उन्हें कभी अपने घर को देखते हैं !


साधना वैद