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Saturday, May 24, 2014

आज की नारी




साधना वैद 


चित्र - गूगल से साभार

Thursday, May 22, 2014

शब्द बाण



कब तक इसी तरह
विष बुझे बाणों से
बींधते रहोगे तुम मुझे !
स्वर्ण मृगी बन कर
सनातन काल से
आखेट के लिये आतुर
तुम्हारे बाणों की
पिपासा बुझाने के लिये  
अपनी कमनीय काया पर
मैं अनगिनत प्रहारों को
झेलती आयी हूँ !
युग परिवर्तन के साथ
बाणों के रूप रंग
आकार प्रकार में भी
परिवर्तन आया है !
इस युग के बाण
पहले से स्थूल नहीं वरन
अति सूक्ष्म हो गये हैं !
इतने कि दिखाई भी नहीं देते !
अब ये धनुष की
प्रत्यंचा पर चढ़ा कर
नहीं चलाये जाते !  
ये चलते हैं
जिह्वा की कमान से
और जब चलते हैं
रक्त की एक बूँद भी
दिखाई नहीं देती
लेकिन मन प्राण आत्मा को
निमिष मात्र में घायल कर
निर्जीव बना जाते हैं !
प्रयोजन कुछ भी हो,
स्वार्थ किसी का भी
सिद्ध हो रहा हो
निमित्त नारी ही बनती है !
लेकिन अब अपने मन की
इस कोमल स्वर्ण मृगी की  
रक्षा करने के लिये
प्रतिकार में नारी ने भी
धनुष बाण उठा लिया है !
सावधान रहना
इस बार तुम्हारा सामना
अत्यंत सबल और प्रबल
शत्रु से है
जिसके पास हारने के लिये
कदाचित कुछ भी नहीं है
लेकिन जब वह
कुपित हो जाती है
तो उसका रौद्र रूप देख
देवता भी काँप जाते हैं
और पल भर में
चंडिका बन वह
असुरों का नाश कर  
समस्त विश्व को
भयहीन कर देती है !

साधना वैद  

चित्र  - गूगल से साभार


Friday, May 16, 2014

संकेत


धूल के गुबार के साथ 
धीमे-धीमे धुँधले से होते जाते 
कदमों के निशाँ,
हर पल हर क्षण दूर हो
नेपथ्य में विलीन सी हुई जाती 
पैरों की आहट
पल-पल कमज़ोर होती जाती 
मुट्‍ठी की पकड़ से छूटने को आतुर  
अतीत की कड़वी मीठी स्मृतियों के 
बेनाम से दस्तावेज़ 
दूर आसमान के जर्जर आँचल में
उखड़े पैबंद की तरह टंका
उदास सा चाँद 
फिज़ाओं में ठिठकती 
ठहरती गुमसुम सी हवाऐं
निशब्द, निस्पंद, नीरव
सहमे से खडे 
अवसादग्रस्त पेड़ पौधे 
यामिनी के आँसुओं की 
अटूट धार से भीगी धरा की 
गीली-गीली सी दूब  !
कायनात की हर शै 
आशंकित है !
कहीं यह जीवन के
एक और अध्याय के 
समापन का संकेत तो नहीं !


साधना वैद 
 




Saturday, May 10, 2014

माँ...... एक भावांजलि


मातृदिवस पर संसार की हर माँ एवं हर संतान के लिये हार्दिक शुभकामनायें !



माँ का आँचल
 जीवन की धूप में
जैसे बादल !

दुःखों ने घेरा
सुखों ने मुँह फेरा 
माँ याद आई !

बेटी के आँसू
झरना बन बहे
माँ की आँखों से !

याद आती है
निंद्राहीन रातों में
माँ की थपकी !

अम्मा की लोरी
गूँजती है कानों में
सालों बाद भी !

झुर्रियाँ तेरी
माँ, तेरे संघर्ष की
अनंत गाथा !

 सारे सितारे
झोली में आ गिरे जो
माँ ने दुलारा !

मैं अकिंचन
कैसे उतारूँ क़र्ज़
तेरे प्यार का !

जो कहानियाँ
सुनाईं थीं तूने माँ
सीख दे गयीं !

अस्थि मज्जा से  
तन गढ़ा, आत्मा को
दिये संस्कार !

शिक्षा से तेरी
परिष्कृत होती माँ
अगली पीढ़ी !

स्पर्श है तेरा 
दर्द निवारक, माँ
धनवंतरी !

  माँ तेरी बातें  
बचपन की यादें
आँसू ले आयें !

स्वप्न में खोई
आँचल की छाँव में
सुख से सोई !

याद रहेगी
जब तक हैं साँसें
 ममता तेरी ! 

सारे जग में
तुझसा हितैषी माँ
कोई ना मिला !

कोटि प्रणाम
कृतज्ञ ह्रदय के
स्वीकारो माँ !




साधना वैद 

चित्र  - गूगल से साभार




Thursday, May 8, 2014

जाना है उस पार



गहरा सागर, दूर किनारा, तूफां के आसार   
नाव पुरानी, दिशा अजानी, जाना है उस पार
वेगवान है वायु, जलधि की हैं उत्ताल तरंगें
मन की हठधर्मी से मानी कुदरत ने भी हार !

साधना वैद