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Sunday, November 29, 2020

उम्र का तकाज़ा




भूलने की बीमारी हो गयी है
उम्र का तकाज़ा है
कुछ भी दिमाग में सहेज कर
नहीं रख पाती अब
यह कैसा भुलावा है !
याद है बस बरसों पहले
ज़ेहन में खुदी एक तिथि
जिस दिन तुम्हें
आख़िरी बार देखा था
और याद है वह दूसरी तिथि
जिस दिन तुमने मुझसे
फिर मिलने का वचन दिया था !
वर्षों गुज़र गये
हर दिन कैलेण्डर में
उन तारीखों को देखती हूँ और
उन्हीं की नित क्षीण होती जाती रोशनी में
अपने जीवन की राह खोजती हूँ !
बस जैसे कुछ और बाकी ही न रहा !
लेकिन क्या हुआ बोलो तो ?
मुझे उन तिथियों के सिवा
अब कुछ याद नहीं !
और तुम ...... ?
तुम्हें शायद
उन तिथियों के अलावा
बाकी सब कुछ याद रहा !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद

Wednesday, November 25, 2020

ज़रूरी तो नहीं



हर जीत तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं ,
हर हार हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

सच है तुम्हें सब मानते हैं रौनके महफ़िल ,
हर बात तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

जो रात की तारीकियाँ लिख दीं हमारे नाम ,
हर सुबह पे भारी हों ज़रूरी तो नहीं !

बाँधो न कायदों की बंदिशों में तुम हमें ,
हर साँस तुम्हारी हो ज़रूरी तो नहीं !

तुम ख़्वाब में यूँ तो बसे ही रहते हो ,
नींदें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

जज़्बात ओ खयालात पर तो हावी हो ,
गज़लें भी तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !

चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद

Tuesday, November 24, 2020

ऋतुचक्र

 


प्रकृति के ऋतुचक्र के साथ हम अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं और ऐसा समझ लीजिये कि ऋतुओं की उँगलियों के इशारों पर प्रकृति हमें नचाती रहती है ! ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर की जाने वाली परिक्रमा और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव है । पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग 66.5 अंश का कोण बनता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है । यह झुकाव सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ़ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है। यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है । ऋतुचक्र के अनुसार मौसम में तो परिवर्तन आते ही हैं हमारे आहार विहार, खान पान, वेशभूषा, आचार विचार और मानसिकता को भी ये निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं !

यूँ तो मोटे तौर पर ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शीत ऋतु ये तीन मौसम ही जाने जाते हैं और वर्ष में चार चार माह का समय इनके लिए निर्धारित होता है लेकिन इनके आगमन के बाद इनके स्थापित होने में और विदाई के पूर्व अगली ऋतु के आने तक इनकी विदाई की बेला के महीनों को तीन और ऋतुओं में विभाजित किया गया है ! इस प्रकार बारह महीनों में छ: ऋतुओं का विधान है ! ये ऋतुएँ हैं—

वसंत – मार्च अप्रेल

ग्रीष्म – मई जून

वर्षा – जुलाई अगस्त सितम्बर

शरद – अक्टूबर नवम्बर

हेमंत – १५ दिसंबर से १५ जनवरी

शिशिर – १६ जनवरी से फरवरी के अंत तक !

अब देखिये इन दिनों शरद ऋतु का समय चल रहा है जो शनै: शनै: समाप्ति की ओर बढ़ रहा है ! शीत ऋतु के आने का समय है ! हम उसके स्वागत के लिए तैयारियाँ कर रहे हैं ! गुलाबी गुलाबी ठंड पड़ने लगी है ! हल्की रजाइयाँ कम्बल निकल आये हैं ! गर्म कपड़ों के बॉक्स खुल गए हैं और शॉल, स्वेटर्स, कार्डिगन निकल आये हैं ! गर्म-गर्म चाय कॉफ़ी के प्याले सुहाने लगने लगे हैं ! माघ पौष में जब हेमंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है यह अपने पूरे दम ख़म के साथ हमें सतायेगी ! सड़कों और फुटपाथ पर सोने वालों के लिए यह ऋतु अत्यंत कष्टदायी हो जायेगी ! शीत लहर से कइयों की जान पर बन आती है ! अनेकों पहाड़ी स्थानों पर बर्फ गिरने लगती है और कड़ाके की सर्दी पड़ने लगती है ! सर्दी से बचने के लिए अस्थाई रैन बसेरों का निर्माण किया जाएगा ! कम्बल, गद्दे, लिहाफों का दान किया जाएगा ! खाने पीने में गरम तासीर के पकवान बनाए जायेंगे ! तिल, गुड़, शहद, सौंठ, अदरक का प्रयोग बढ़ जाएगा ! घरों में तापने के लिए अँगीठी या रूम हीटर निकल आयेंगे ! सडकों पर जगह जगह अलाव जला कर शीत से मुकाबला करते लोग दिखाई देने लगेंगे ! सरसों का साग, मक्के बाजरे की रोटी, बाजरे की खिचड़ी और लड्डू, तिल गुड़ की गजक, रेवड़ी, भुनी हुई मूँगफली और चिक्की बहुत स्वादिष्ट लगते हैं ! इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं मकर संक्रान्ति, लोहड़ी, बीहू, पोंगल आदि ! मकर संक्रांति को बड़े उत्साह से मनाया जाता है ! इस दिन खिचड़ी दान करने और खाने का बड़ा महात्म्य होता है ! अनेकों स्थानों पर मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की प्रथा भी है ! पूर्वी भारत में इस पर्व को बीहू के नाम से मनाया जाता है और दक्षिण में यह पर्व पोंगल के नाम से विख्यात है ! १३ जनवरी उत्तर भारत में लोहड़ी पर्व के रूप में भी मनाई जाती है ! इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है और बड़ी सी आग जला कर सामूहिक रूप से इसकी परिक्रमा कर उत्सव मनाया जाता है !  

हेमंत ऋतु के जाने के बाद शिशुर ऋतु का आगमन होता है ! रातें कुछ बड़ी हो जाती हैं ! दिन में यदि धूप तेज़ हो तो गरम कपड़ों में कसमसाहट सी होने लगती है ! ये मौसम अचार डालने के लिए सबसे अधिक उपयुक्वत होता है ! लाल मिर्चें इसी मौसम में आती हैं और कई घरों में लाल काली गाजर की कांजी, गोभी गाजर, शलजम का मिक्स्ड अचार, बड़ियाँ, मंगोड़ियाँ, आलू के पापड़, चिप्स इत्यादि बनाने के कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं ! सहती धूप में बनाने में दिक्कत नहीं होती और दिन में धूप तेज़ हो जाती है तो ये अच्छी तरह से सूख जाते हैं ! 

शीशिर ऋतु के बाद वसंत का आगमन होता है ! धरती रंग बिरंगे फूलों से सज जाती है ! वातावरण रूमानी हो जाता है ! भारी भरकम गरम कपड़ों से छुटकारा मिल जाता है और मन पंछी निर्द्वंद उड़ान भरने लगता है ! यह प्रेम के अंकुरण का महीना होता है ! मदनोत्सव इसी माह में मनाया जाता है ! वेलेंटाइन डे के नाम से लोग अधिक परिचित होंगे शायद ! सारी धरा वासंती रंग में रंग जाती है इस माह में वसंत पंचमी के दिन हमारे यहाँ वसंती रंग की फीरनी बनाई जाती है प्रसाद के लिए ! चैत्र बैसाख वसंत ऋतु के महीने माने जाते हैं ! इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं वसंत पंचमी, महा शिवरात्रि, होली, बैसाखी, गुड़ीपड़वा ! रंगों से भरा और जायकेदार पकवानों से पगा प्रेम और सौहार्द्र का महीना ! वसंत से लेकर ग्रीष्म ऋतु के आगमन तक सब बहुत मनमोहक लगता है !

ग्रीष्म ऋतु के आगमन की तैयारी हो चुकी है अब ! गरम कपड़े संदूकों के हवाले हो गए हैं ! हलके फुल्के कपड़े निकल आये हैं ! कूलर, ए, सी, चालू हो गए हैं ! लू में बाहर निकलना अत्यंत दुष्कर हो जाता है ! यह ऋतु बड़ी ही त्रासद हो जाती है ! धूल भरी आँधियाँ और तूफ़ान इस ऋतु को और कष्टप्रद बना देते हैं ! सारे घर में हर जगह धूल ही धूल भर जाती है ! साफ़ सफाई के काम बहुत बढ़ जाते हैं ! आँधी तूफ़ान में अक्सर पुराने सूखे पेड़ गिर जाते हैं और हज़ारों की संख्या में वृक्षों पर रहने वाले परिंदों और छोटे छोटे प्राणियों की जान चली जाती है !  सड़कों बाज़ारों में आवागमन अवरुद्ध हो जाता है और अनिश्चित काल के लिए बिजली ठप हो जाती है ! गर्मी में बिजली के चले जाने से स्थिति और दुखदायी हो जाती है ! घर से बाहर जाने वालों को प्याज की गाँठ साथ में ले जाने की हिदायत दी जाती है ! ठन्डे पेय पदार्थ सुहाते हैं ! आम और खरबूजे का पना घर में अनिवार्य रूप से बनाया जाता है ! ज़रा सा बाहर निकलते ही पसीने की धाराएं बहने लगती हैं ! मन अनमना हो जाता है ! अचानक बिजली गुल हो जाने की आशंका में हाथ के पंखे हर कमरे में रखे रहते हैं ! रूमानी विचारों पर ब्रेक लग जाता है और दिन में कई कई बार नहाने का सिलसिला चालू हो जाता है ! घिसे हुए पुराने कपड़े सुहाते हैं और बिलकुल सादा और सुपाच्य भोजन ही अच्छा लगता है ! ठन्डे पेय पदार्थ जैसे शरबत, लस्सी, रूह अफज़ा, फलों का रस, फालसे का शरबत, सत्तू इत्यादि केवल अच्छे ही नहीं लगते हमारे शरीर के तापमान को संतुलित रखने में भी सहायक होते हैं ! ज्येष्ठ अषाढ़ के ये महीने सबका वज़न घटा जाते हैं ! इन दिनों वट सावित्री व अहोई अष्टमी की पूजा के त्यौहार आते हैं जिन्हें विवाहित स्त्रियाँ बड़ी निष्ठा के साथ मनाती हैं !

सावन भादौं के आते ही मन फिर से रूमानी होने लगता है ! बादलों को देख कर सब हर्षित हो जाते हैं किसान, कवि, कलरव करते बच्चे सब पहली बारिश के लिए आतुर रहते हैं ! कालीदास का मेघदूत दिल दिमाग पर हावी हो जाता है ! और मन तरंगित हो उठता है ! लेकिन यहाँ भी फुटपाथ पर रहने वालों के लिए बड़ी समस्या हो जाती है ! जिन घरों में पानी टपकने की समस्या होती है उनकी व्यवस्था चरमरा जाती है ! और सब तहस नहस सा हो जाता है जिसकी वजह से मन में झल्लाहट और खीझ भर जाती है ! गृहणियों के लिए बड़े कष्टप्रद दिन होते हैं जब घर में अव्यवस्था फ़ैली हो और गरमागरम पकौड़े बनाने की फरमाइश पेश आ जाए ! हल्के हल्के कपड़े भी कई कई दिनों तक नहीं सूखते ! बच्चों को स्कूल जाने में और नौकरीपेशा नर नारियों को अपने कार्यस्थल तक पहुँचने में बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है ! अति वृष्टि से अनेकों स्थानों पर बाढ़ आ जाती है और नदियाँ अत्यंत विकराल रूप धारण कर लेती हैं तो जन धन की अपार हानि होती है ! लेकिन फिर भी बारिश खिड़की से देखने में बहुत सुहानी लगती है ! इन दिनों भी खान पान में विशेष सावधानी बरतने की संस्तुति की जाती है ! साग पात खाना वर्जित माना जाता है ! दही का प्रयोग वर्जित माना जाता है ! दूध की खीर और मोदक इस माह के विशिष्ट पकवान है जो रक्षा बंधन व गणेश चतुर्थी पर अवश्य ही बनाए जाते हैं ! तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि इस ऋतु के प्रमुख त्यौहार हैं ! भाद्र पक्ष के समाप्त होने के बाद आश्विन माह आरम्भ होता है  पितृ पक्ष आरम्भ होता है जिसका समापन अमावस्या की तिथि को होता है ! इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं ! इस पक्ष में अपने पूर्वजों के सम्मान में श्राद्ध तर्पण इत्यादि करने का विधान है !

और लीजिये पूरे वर्ष के मौसमों का जायज़ा लेते हुए हम फिर से आ पहुँचे हैं उसी शरद ऋतु पर जहाँ से हमने यह सफ़र शुरू किया था ! सबसे सुखद और सुहावना वर्ष का यही मौसम होता है ! जिसमें आनंद ही आनंद होता है और ढेर सारे मनभावन त्यौहार होते हैं ! इन दिनों प्रकृति भी मेहरबान होती है ! व्याकुल कर देने वाली गर्मी समाप्त हो चुकी होती है ! बारिश के बाद पेड़ पौधे एकदम धुले पुछे से स्वच्छ और मनोहारी लगने लगते हैं ! धूल बैठ जाती है तो पार्यावरण बिलकुल साफ़ हो जाता है और धूसर आसमान नीला दिखाई देने लगता है ! चारों और खूबसूरत फूल खिल जाते हैं और मन में उमंग और उत्साह अंकुरित होने लगता है ! इस ऋतु का शुभारम्भ ही नवरात्रों से होता है ! नौदेवी के व्रत के साथ मन में शुचिता का भाव जागृत होता है और यह भक्ति एवं आनंद का उत्सव का अवसर होता है तो हर इंसान का मन उल्लसित होता है ! बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है तो गुजरात राजस्थान आदि में यह नव रात्रों के नाम से प्रसिद्ध है ! नौ दिनों तक हर उम्र के नर नारी खूब गरबा खेलते हैं और जगह जगह पर इनके आयोजन किये जाते हैं ! बच्चों और युवाओं का जोश और उत्साह देखते ही बनता है ! साल भर से लोग इस अवसर की तैयारी में लगे रहते हैं ! इस ऋतु के अन्य विशिष्ट त्यौहार हैं दशहरा, शरद पूर्णिमा, सुहागिन स्त्रियों का सबसे महत्वपूर्ण व्रत करवा चौथ एवं दीपावली ! और दीपावली के बाद आने वाला छठ माता का पर्व ! जो सन २०२० का अभी कल ही समाप्त हुआ है ! इस ऋतु में मौसम बहुत ही सुहाना रहता है ! लेकिन अक्सर बदलते मौसम का ख़याल न करने से यह कुपित होकर दण्डित भी कर देता है और अक्सर इस मौसम में लोगों को सर्दी गर्मी का असर हो जाता है और खाँसी ज़ुकाम की शिकायत हो जाती है ! मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है ! देव उठान एकादशी से शादियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं तो सब उल्लसित होकर कपड़ों और गहनों की खरीदारी में जुट जाते हैं ! इस मौसम के पकवानों का तो कोई अंत ही नहीं है ! अनेक तरह की मिठाइयों और नमकीन की वैराइटी से दुकानें सजी रहती हैं ! शरद पूर्णिमा के दिन ख़ास तौर पर खीर बनाई जाती है और उसे जाली से ढक कर पूर्ण चन्द्र की रोशनी में रात भर रखा जाता है ! विश्वास है कि उसमें चाँदनी की अमृत वृष्टि हो जाती है तो यह खीर अत्यंत गुणकारी हो जाती है ! मौसम अच्छा होता है तो मन माफिक कपड़े पहन सकते हैं सब ! वर्ष का यह मौसम सबसे बढ़िया होता है ! और लो जी यह भी अब समाप्त होने को है ! तो चलिए तैयारी शुरू करते हैं हेमंत ऋतु के स्वागत की !

साधना वैद

 

 

 

 


Saturday, November 21, 2020

तमाशबीन

 


सड़क पर भीड़ थी,

कोलाहल था, हलचल थी

आँखों के सामने

चलती बस से कूद कर

सड़क पर गिरी घायल लड़की की

तड़पती हुई देह थी !

यह दम तोड़ती लड़की

सड़क वाली भीड़ में

किसीकी बेटी, बहन, दोस्त, बीबी  

या परिचित नहीं थी

इसलिए उनके वास्ते वह

सिर्फ एक तमाशा थी 

और यह भीड़ थी तमाशबीन !

किसीने यह जानने की

कोशिश नहीं की लड़की

चलती बस से क्यों कूदी ?  

उसके कपड़े फटे क्यों थे ?

उसके हाथों पर और चहरे पर

खरोंचें क्यों थी ?

और इन जख्मों और खरोंचों का

ज़िम्मेदार कौन था ?  

हाँ उसके जिस्म पर

कहाँ कहाँ जख्म थे

इसे ज़रूर सब अपनी पैनी नज़रों से

ताड़ने की कोशिश कर रहे थे !

तमाशबीन अपनी नज़रों से ही

उसके शेष कपड़े फाड़ने में जुटे थे

और एक दूसरे को इशारों में

लड़की के बदन पर पड़े

जख्मों को दिखा रहे थे !

तभी सायरन बजाती आ गयी

पुलिस की गाड़ी !

तमाशबीनों की भीड़ छँटने लगी

पुलिस वालों के सवालों का जवाब

किसीके पास न था

अगर था भी तो कोई

देना नहीं चाहता था !

जब तक पुलिस नहीं आई

खूब आँखें सेक लीं !

पुलिस के आते ही 

तमाशा ख़त्म हुआ और

अपनी अपनी राह मुड़ गये

सारे तमाशबीन !


चित्र -- गूगल से साभार 


साधना वैद    

 

Wednesday, November 18, 2020

दीवाली की रात - बाल कथा




दीपावली की रात थी ! चारों तरफ पटाखों का शोर था ! कहीं अनार छोड़े जा रहे थे तो कहीं बम चल रहे थे ! कहीं रॉकेट शूँ-शूँ कर आसमान में सितारों से गले मिलने के लिए उड़े जा रहे थे तो कहीं लंबी सड़क पर एक कोने से दूसरे कोने तक बिछी हुई लड़ियों की श्रंखला आने जाने वाले राहगीरों को त्रस्त करती ज़ोर के धमाकों के साथ बजती ही जा रही थी ! सुरेश के यहाँ भी कॉलोनी के बहुत सारे बच्चे और बड़े एकत्रित हो गए थे और बड़ी धूमधाम के साथ पटाखे चलाये जा रहे थे ! उसके घर के नीम के पेड़ पर गौरैया का नन्हा चूज़ा डरा सहमा हुआ घोंसले में अपनी माँ के पंखों के नीचे दुबका हुआ था ! भय के मारे उसका कलेजा काँप रहा था ! माँ बार-बार उसे चोंच से सहला रही थी लेकिन उसका भयभीत मन किसी भी तरह से आश्वस्त नहीं हो रहा था ! कॉलोनी के अनेकों जांबाज़ कुत्ते इस समय पटाखों से डर कर सड़क पर खड़ी कारों के नीचे दुबक कर बैठ गए थे ! 
  
नीम के इस वृक्ष पर और भी कई प्राणी रहते थे ! बगल वाली डाल पर बन्दर मामा का परिवार रहता था ! ऊपर वाली डाल पर खुराफाती भूरी बिल्ली रहती थी ! नीचे वाली डाल पर गिलहरी मौसी का घर था ! आम दिनों में तो चूज़े को इन लोगों से भी डर लगता था लेकिन आज सबकी मनोदशा पटाखों के कान फोडू शोर के मारे एक सी हो रही थी ! तभी अपनी दिशा से भटक कर एक रॉकेट सीधा नीम के पेड़ की तरफ आया और पत्तों के बीच में दुबके बन्दर मामा के छोटे से बच्चे की पीठ में चुभ गया ! बच्चा पेड़ से नीचे गिरा धड़ाम ! बंदरिया मामी गुस्से से एकदम आगबबूला होकर ज़ोर से चिचियाई ! उसकी आवाज़ सुन कर ढेर सारे बन्दर आसपास के सारे पेड़ों से भाग कर नीम के पेड़ के पास आ गए ! और सबने मिल कर वहाँ ज़ोर से धावा बोल दिया जहाँ कॉलोनी के लोग मिल कर पटाखे चला रहे थे ! कोई फुलझड़ी का पैकेट लेकर भागा तो कोई अनार का ! किसीने झिलझिल का पैकेट फाड़ डाला तो किसीने बम का पैकेट हवा में उछाल दिया ! लोगों में हड़कम्प मच गया बंदरों की ये आफत कहाँ से टूट पड़ी ! इस सारे तमाशे के बीच मामी अपने बच्चे को सीने से चिपटाए व्याकुल स्वर में क्रंदन कर रही थी ! सुरेश के पापा की नज़र उस पर पड़ी तो वे फ़ौरन सब समझ गए ! उन्होंने तुरंत ही डॉक्टर को फोन कर बुलवाया और नन्हे बन्दर का उपचार करवाया ! उसे चोट अधिक नहीं लगी थी लेकिन वह डर बहुत गया था ! उस दिन पटाखे चलाने का कार्यक्रम उसी वक्त स्थगित हो गया ! सुरेश के पापा ने सबको बड़े प्यार से समझाया कि ऐसी आतिशबाजी चलाने से हमको बचना चाहिए जिस पर हमारा कोई नियंत्रण ना हो ! इंसानों के अलावा हमारे आसपास के परिवेश में अनेकों प्राणी रहते हैं जो हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग हैं हमें उनकी सुरक्षा और सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए ! पेड़ पौधों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए ! अनार आदि चलाने से दूर तक और देर तक चिंगारियाँ धरती पर गिरती रहती हैं जिनसे पौधे झुलस जाते हैं ! 

सबने सुरेश के पापा की बात का अनुमोदन किया और संकल्प लिया कि आइन्दा वे कभी ऐसे पटाखे नहीं चलाएंगे जिनसे हमारे पर्यावरण को हानि पहुँचे ! 



साधना वैद