मस्तक पर हिमगिरी हिमालय नैनों में गंगा यमुना
अंतर में हैं विन्ध्य अरावलि सुन्दर संस्कृति
का सपना
मुट्ठी में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर उत्ताल
भारत मेरा अपना है और मैं हूँ भारत का अपना !
जन्म लिया जिस माटी में हम क़र्ज़ उतारेंगे उसका
पाया जिसके कण कण से हम फ़र्ज़ निभायेंगे उसका
आँख उठा कर देखेगा यदि दुश्मन भारत माँ की ओर
पल भर की भी देर न होगी शीश काट लेंगे उसका !
बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! आभार आपका !
Deleteदेशभक्ति से ओतप्रोत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आभार आपका !
Deleteसराहनीय मुक्तक
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteदेशप्रेम की भावना के साथ लाजवाब मुक्तक।
हार्दिक धन्यवाद ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
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