जीवन
यदि सुरभित एवँ
निष्कंटक
बनाना है तो
अंतर
के सारे शूलों को
चुन
कर मन उपवन के
कोने-कोने
की
सफाई
करनी होगी !
हृदय
के सारे गरल को
एक
पात्र में एकत्रित कर
नीलकंठ
बन अपने ही
गले
के नीचे
उतारना
होगा !
अंतर
में दहकते
ज्वालामुखी
के सारे लावे को
सप्रयास
बाहर निकाल
शीतल
जल की फुहार से
उसके
भीषण ताप को
ठंडा
करना होगा !
हाथ
भले ही जल जायें
हृदय
में सुलगते अंगारों पर
राख
डाल इस धधकती
अग्नि
का भी शमन
करना
ही होगा !
मन
की नौका को
तट
पर लाना है तो
सागर
की उत्ताल तरंगों से
कैसा
घबराना !
डूब
जायें या तर जायें
पतवार
उठा कर
नाव
को तो खेना ही होगा !
मुझे
पता है तूने
कभी
हार नहीं मानी है
आज
भी अपने कदमों को
डगमगाने
मत देना !
जितना
तेरा संकल्प दृढ़ होगा
उतना
ही तेरा आत्मबल बढ़ेगा
और
उतना ही यह संसार
प्रीतिकर
हो जायेगा !
एक
अलौकिक
दिव्य
संगीत की धुन
तुझे
सुनाई देने लगेगी जिसे सुन
तू
मंत्रमुग्ध हो जायेगा !
फिर
तेरे मन में यह
असमंजस
और संदेह कैसा !
चल
उठ देर न कर !
नव
निर्माण के पथ पर
अपने
कदम बढ़ा
और
संसार के सारे सुख
अपनी
झोली में भर ले !
साधना
वैद
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