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Friday, December 6, 2019

हालात जो बदले...



हालात जो बदले मिजाज़ ए ग़म बदल गया
आयी बहार हिज्र का मौसम बदल गया !
मन को सुकून आया और ऐतबार हो चला
पल भर में ग़म ओ दर्द का जज़्बा बदल गया !
लोगों के रंज ओ ग़म का फ़साना हुआ तमाम
हर आम जन और ख़ास का चेहरा बदल गया  !
बदले सभी के फैसले शिकवे गिले मिटे
मन का मलाल पल में खुशी में बदल गया !                 
जो पुलिस थी मक्कार और बेकार, निकम्मी
उसके लिए लोगों का नज़रिया बदल गया !
एन्काउंटर में मर गए चारों वो दरिन्दे
हैवानियत का, दर्द का आलम बदल गया !
चलते रहे नेता जो सियासत के पैंतरे
उनके रुखों से झूठ का चेहरा उतर गया !
जो ‘जानवर’ थे आज तक दुनिया के वास्ते
मरने के बाद ओहदा ‘मानव’ में बदल गया !
जो लड़ रहे हैं 'जानवर' के हक़ के वास्ते
कह दो उन्हें कि उनका ज़माना बदल गया !
वो कहाँ थे उस वक्त जब वो ‘पीड़िता’ जली
न क्यों उसके ‘हक़’ के वास्ते दिल उनका जल गया !  
अब रख रही जनता कदम हर फूँक फूक के
पल में हवा के झोंके से मंज़र बदल गया !
हालात के हाथों सभी मजबूर हैं यहाँ
इन खोखली रवायतों से दिल ही भर गया !

साधना वैद



14 comments :

  1. उम्दा रचना पर मीनिग लिख दिया करो तो और आनंद आएगा |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जी ! किस शब्द का मीनिंग जानना है बताइये ! बता देती हूँ !

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०८ -१२-२०१९ ) को "मैं वर्तमान की बेटी हूँ "(चर्चा अंक-३५४३) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत शुक्रिया एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. सुंदर और सटीक रचना ,सादर नमन दी

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    1. हार्दिकं धन्यवाद कामिनी जी ! आभार आपका !

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  4. बहुत बढ़िया लिखा है आपने।

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    1. हार्दिक धन्यवाद नीतीश जी ! स्वागत है आपका !

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ९ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  6. बहुत सुन्दर सटीक समसामयिक हालातों पर लाजवाब सृजन..।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. साधना जी, बहुत भावुकतापूर्ण रचना है आपकी किन्तु मुझे हैदराबाद का पुलिस-एनकाउंटर, पुलिस की अक्षमता और मक्कारी का जीता-जागता प्रमाण लगता है. जो एनकाउंटर में मारे गए, उनका अपराध सिद्ध हुए बिना पुलिस या जनता उन्हें कैसे अपराधी मान सकती है. पीड़िता नहीं रही लेकिन उसकी मृत्यु के बाद भी उसकी और पकडे गए आरोपियों की फ़ोरेंसिक रिपोर्ट यह तय कर सकती थी कि आरोपियों ने ही उसका बलात्कार किया था या नहीं. जनमत के आधार पर पुलिस किसी को कैसे मार सकती है? फिर अगर यही बलात्कारी और क़ातिल थे तो क्या ज़रूरी था कि सिर्फ़ यही चार लोग अपराध में लिप्त थे? अब इनके मारे जाने के बाद हम इस मामले की तह तक कैसे पहुँच सकते हैं?
    यही हैदराबाद की पुलिस थी जिसने कि पीड़िता की गुमशुदगी की रिपोर्ट के बावजूद उसे घंटों तक तलाश करने की ज़रुरत नहीं समझी. फिर इस हादसे के 9 दिन बाद झूठ-मूठ की मुठभेड़ कर के हीरो बन गए? 10 शस्त्रधारी जवान, चार निहत्थों का मुकाबला क्या सिर्फ़ उन्हें जान से मारकर कर सकते थे? कोई अपराधी सिर्फ़ घायल कर के भी तो पकड़ा जा सकता था?
    बातें बहुत हैं. सुप्रीमकोर्ट के चीफ़ जस्टिस पुलिस को न्यायाधीश की और जल्लाद की संयुक्त भूमिका में नहीं देखना चाहते हैं पर जनता की डिमांड थी तो पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया और सरकार से इनाम भी पा लिया.

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