पुस्तक दिवस पर विशेष
निकली ईंट
हिलेगी बुनियाद
किताबी घर
शेष रहेगी
भग्न सी इमारत
कुछ घंटों में
शोभित होंगे
निजी पुस्तकालय
धुर चोरों के
अलंकरण
कीमती किताबों के
उठ जायेंगे
ठगे जाएंगे
सच्चे पुस्तक प्रेमी
इस लीला में
बेचैन रूह
महान लेखकों की
घबरायेगी
खंडहर में
कहाँ ढूँढ़ेगी नाम
अपना काम
किताब घर
रह जाये न बन
मलबा घर
सहेजें इन्हें
सुदृढ भवन में
पूरी निष्ठा से
अनमोल हैं
ज्ञान का भंडार हैं
संरक्षक हैं
सींच रही हैं
संस्कृति औ' संस्कार
युगों युगों से
धरोहर हैं
मानव सभ्यता की
सहेजें इन्हें
ये किताबे हैं
मित्र, गुरू, पोषक
ममतामयी
ये मशाल हैं
पथ प्रदर्शक हैं
ज्ञान की ज्योति
इनके बिना
सद्गति जीवन की
कभी न होती
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteठगे जाएंगे
Deleteसच्चे पुस्तक प्रेमी
इस लीला में
बेचैन रूह
महान लेखकों की
घबरायेगी
बहुत सुन्दर सृजन ।
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रूपा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबेहतरीन प्रस्तुत
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआभार पूर्ण रचना आप आगे बढ़ते रहे
ReplyDeleteधन्यवाद