चेतावनी
तुम पर भरोसा करने का मन भी बनाती हूँ
सिर्फ इसीलिए, क्योंकि बहुत प्यार करती हूँ तुम्हें
लेकिन फिर जाने कितने प्रसंग याद आ जाते हैं
जब मेरे भरोसे को रौंद कर तुमने
अपने क्षणिक सुख को प्राथमिकता दी
और मेरे हृदय में प्रज्वलित क्रोधाग्नि को
अपने तुच्छ आचरण की आहुति दे
और प्रबल कर दिया !
क्षमा तो मैं कर दूँगी तुम्हें
स्त्री जो ठहरी, दयामई, करुणामई, त्यागमई !
लेकिन यह कभी न भूलना
यह क्षमा तुम्हें एक घायल क्षत्राणी से मिली है
जिसने अपने स्वाभिमान को सदैव
सर्वोच्च शिखर पर रखा है !
यह अंतिम अवसर है
इस बार जो चूके तो कहीं ऐसा न हो
कि मेरे अंतर में सुलगती ज्वाला
आँखों की राह बाहर निकल
हमारे संसार को ही भस्म कर दे
और सब कुछ पल भर में स्वाहा हो जाए !
साधना वैद
"...
ReplyDeleteलेकिन यह कभी न भूलना
यह क्षमा तुम्हें एक घायल क्षत्राणी से मिली है
..."
वाह! बहुत ही बढ़िया।
हार्दिक धन्यवाद मान्यवर ! आभार आपका !
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक जी ! आभार आपका !
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
Deleteयह क्षमा तुम्हें एक घायल क्षत्राणी से मिली है - कितनी सटीक पंक्ति है - गागर में सागर!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर ! आभार आपका !
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