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Monday, June 2, 2025

दो जून की रोटियाँ

 





ठंडा है चूल्हा

सीली हैं लकड़ियाँ

बुझी है आग


कैसे मिलेंगी

दो जून की रोटियाँ

खाली बर्तन


चिंतित मन

  बीच मंझधार में  

डूबती नैया
 

अभागे नहीं

मेहनतकश हैं

कमा ही लेंगे


इतना पैसा

कि जल जाए चूल्हा

आ जाए आटा


नसीब होंगी

दो जून की रोटियाँ

भूखे पेटों को


सुबह होगी

उगेगा सूरज भी 

आसमान में


होगा उजाला

हमारे भी घर में

जलेगा चूल्हा


पकायेगी माँ

दो जून की रोटियाँ

हमारे लिए !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद



14 comments :

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में बुधवार 04 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी ! बहुत-बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !

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  2. This comment has been removed by the author.

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    1. धन्यवाद प्रिया जी !

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  3. हिम्मते मरदा तो मददे - ए - खुदा

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिया जी !

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  4. सुंदर चित्र और शब्द-चित्र !

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    1. दिल से आभार अनीता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका !

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  5. विपन्नता में आशा की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती हैं। एक उम्मीद से भरी रचना। बधाई आदरणीय साधना जी🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद रेणु जी ! आभार आपका !

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  6. अत्यंत मर्मस्पर्शी और सुंदर रचना।

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका विजय कुमार जी ! बहुत-बहुत आभार !

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  7. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !

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