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Friday, August 21, 2020

मुंडेर

मेरी छत की मुंडेर पर

हर रोज़ सैकड़ों परिंदे आते हैं

मैं उनके लिए बड़े प्यार से

खूब सारा बाजरा डाल देती हूँ

मिट्टी के पात्र में मुंडेर पर

कई जगह पानी रख देती हूँ

उनमें कहीं इसके लिए स्पर्धा न हो

मैं बहुत ध्यान से ये पात्र

खूब दूर दूर रखती हूँ !

गोरैया, कबूतर, तोते, बुलबुल,

कौए, मैना, बया और कभी कभी तो

कोयल भी मेरी छत पर खूब

मजलिस जमाते हैं !

मुंडेर पर बैठे फुदकते मटकते

खुशी खुशी कलरव करते इन

भाँति-भाँति के पंछियों को

मैंने कभी झगड़ते नहीं देखा !

किसने मंदिर के कलश पर बैठ कर

भजन गाया और किसने

मस्जिद की गुम्बद पर बैठ कर

अजान दी, किसने गुरुद्वारे की छत से

शब्द पढ़े और किसने गिरिजाघर की

मीनार पर बैठ कर हिम्स पढ़े

कोई बता नहीं सकता !

मेरी छत की मुंडेर इन पंछियों का

साझा आशियाना है, आश्रय स्थल है !

किसी भी किस्म के अंतर्विरोधों से परे

ये सारे पंछी यहाँ आकर हर रोज़

सह भोज का आनंद लेते हैं !

इनमें कोई ऊँच नीच, कोई अमीर गरीब

कोई छोटा बड़ा नहीं होता !

सब प्यार से हिलमिल कर रहते हैं

और सह अस्तित्व के सिद्धांत पर

निष्काम भाव से चलते हैं !

मुझे इन्हें इस तरह कलरव करते देख

बहुत आनंद मिलता है !

क्या हम इन परिंदों से

कुछ नहीं सीख सकते ?

क्या हम इन परिंदों की तरह

अपने सारे विरोध भूल

एक ही मुंडेर पर बैठ अपने अपने

गीत नहीं गुनगुना सकते ?

 

साधना वैद