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Tuesday, April 2, 2024

भूमंडलीकरण का प्रभाव

 



इसमें संदेह नहीं है कि भूमंडलीकरण एवं बाजारवाद ने आज के युग में हर परिवार की जीवन शैली पर बड़ी तेज़ी से असर डाला है| पहले अपने घर आँगन, अपने मोहल्ले, अपने शहर तक जन जीवन सीमित था अब भूमंडलीकरण ने सबको एक जगह पर ला खड़ा किया है| पहले हर प्रांत की, हर देश की एक विशिष्ट वेशभूषा होती थी, एक संस्कृति होती थी, एक ख़ास तरह का खान पान होता था, अपने स्थान के विशेष त्योहार होते थे जो उस स्थान की पहचान होते थे लेकिन अब सबकी वेशभूषा, खान-पान, तीज त्योहार सब एक जैसे होते जा रहे हैं| टी वी और समाचार पत्रों की बातों पर विश्वास किया जाए तो अब मुस्लिम महिलाएं भी करवा चौथ का व्रत रखना चाहती हैं और कई महिलाओं ने इस वर्ष रखा भी था| इसका श्रेय भूमंडलीकरण को ही जाता है| देश विदेश की फ़िल्में, टी वी धारावाहिक और तेज़ी से पैर पसारती सोशल मीडिया ने भूमंडलीकरण को विस्तार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है| 

पश्चिमी देशों के पिट्जा, बर्गर, हॉट डॉग, चीन के चाऊमीन, मंचूरियन, मैगी इत्यादि भारत में भी हर शहर के हर क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय हैं और अब हर जगह मिल जाते हैं| यहाँ तक कि भारत के गाँव भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं| वैसे ही भारत के छोले भटूरे, समोसे जलेबी, इडली डोसा, ढोकला थेपले, आलू टिक्की, दही बड़ा भी विदेशों में बहुत लोकप्रिय हो चुके हैं और हर जगह मिलते हैं| यह भूमंडलीकरण का ही प्रमाण है| इसी तरह अब युवा लड़के लड़कियों ने विदेशों की देखा देखी जीन्स और टॉप की वेशभूषा को अपना लिया है तो अब यह पहचानना मुश्किल होता है कि वे मूल रूप से वे किस जगह के रहने वाले हैं| आप किसी भी पर्यटन स्थल पर जाइए अधिकतर युवा लड़के लड़कियाँ एक ही तरह की कटी फटी जींस, एक ही तरह के ढीले ढाले टॉप और आँखों पर बड़े साइज़ के विभिन्न रंगों के गॉगल्स चढ़ाए दिख जायेंगे| अब अगर आप उनकी कुण्डली खोलने के लिए बहुत आतुर हैं तो अनुमान लगाते रहिये कि ये किस देश से यहाँ आये होंगे|

साहित्य भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है| भाषा पर भी इसका प्रभाव पड़ा है| अध्ययन या नौकरी के सिलसिले में युवा पीढ़ी का बाहरी देशों में जाने का सिलसिला बढ़ा है| इस कारण अंग्रेज़ी भाषा का आधिपत्य भी बढ़ा है| आज की पीढ़ी हिन्दी साहित्य के स्थान पर अंग्रेज़ी की पुस्तकें पढ़ना अधिक पसंद करती है| हिन्दी का कोई उपन्यास अगर पढ़ना चाहें भी तो वे उसका अंग्रेज़ी में अनूदित वर्जन ही पढ़ना चाहेंगे हिन्दी में नहीं| यहाँ तक कि बच्चों के लिए भी अगर कॉमिक्स खरीदना हों तो वे अमर चित्र कथा, पंचतंत्र या जातक कथाओं के कॉमिक्स भी अंग्रेज़ी भाषा में अनूदित ही खरीदते हैं क्योंकि बच्चे ढाई तीन साल की उम्र से ही अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं इसलिए उन्हें हिन्दी न तो पढ़ना आती है, न लिखना आती है, न ही बोलना या समझना आती है| मुझे भय है कि कुछ वर्षों के अंतराल के बाद आज के छोटे बच्चों के लिए हिन्दी सिर्फ घर में काम करने वाले सहायकों से बोलने की भाषा बन कर ही रह जायेगी| और अब जबकि अंग्रेज़ी का वर्चस्व इतना अधिक बढ़ चुका है तो बेस्ट सेलर्स भी अंग्रेज़ी के उपन्यास ही अधिक होते हैं| यह सोच कर बहुत दुःख होता है कि अत्यंत उत्कृष्ट एवं स्तरीय हिन्दी साहित्य होने के उपरान्त भी उसे भूमंडलीकरण के इस दौर में दोयम दर्जे का स्थान ही प्राप्त है|

साधना वैद

 


Saturday, March 30, 2024

रंगमंच

 




रंगमंच है

ये समूचा संसार

प्रभु की लीला

 

करने आये

यहाँ अपना काम

रंग रंगीला

हम सब हैं

उँगलियों से बँधी

कठपुतली

 

नाचना हमें

उस के इशारों पे

बन के भली  

 

नाचेंगे हम

जैसे वो नचाएगा

जीवन भर

 

कभी राजा तो

कभी बन के रानी

कभी नौकर

 

कभी दुलहा

कभी दुलहन तो

कभी बाराती

 

कभी सिपाही

कभी तुरही वाला

तो कभी हाथी

 

हमारा काम

नाचना इशारों पे

जैसे वो चाहे   

 

उसका काम

नचाना डोरियों पे

जब जी चाहे

 

मानते हम

हुकुम मालिक का

सर झुका के  

 

खुश हो जाते

सभी देखने वाले

ताली बजाते  

 

हँसते गाते

लोग चले घर को

खेल ख़तम

 

साथ ही हुआ   

कठपुतली का भी

किस्सा ख़तम   




 

साधना वैद 

 

 

 


Friday, March 22, 2024

एकल काव्य पाठ


       जन सरोकार मंच पर मेरा एकल काव्य पाठ |

Thursday, March 14, 2024

आभासी मित्र

 



ये आभासी मित्र बड़े अच्छे होते हैं
हँसते संग में और हमारे संग रोते हैं !
होती नहीं हमारी उनसे कभी लड़ाई
करते नहीं किसी दूजे की कभी खिंचाई !
कभी न खोलें फरमाइश की लम्बी सूची
कभी न माँगें पिट्जा बर्गर छोले लूची !
जब जी चाहे उनसे हँस हँस बातें कर लो
जब जी चाहे हफ़्तों उनकी छुट्टी कर दो !
कभी न होती उनसे बक झक रूठा रूठी
कभी न लगता डोर प्रेम की अब है टूटी !
देखा नहीं कभी पर हमको लगते सुन्दर
हर लड़की ज्यों ‘सुधा’ और हर लड़का ‘चंदर’ !
सबको उनका साथ बड़ा अच्छा लगता है
अपने घर का हाल बड़ा कच्चा लगता है !
घर के जोगी ‘जोगड़ा’ और लगते वो ‘सिद्ध’
इनमें ‘सारस’ कौन है और कौन है ‘गिद्ध’ !
इसकी जाँच परख भी बहुत ज़रूरी भाई
होती नहीं स्वास्थ्य के हित में अधिक ‘मिठाई’ !
बातों ही बातों में उठ जाती रचनाएं
लिखते हम और मेवा वो सारी ले जाएं !
किसे कहें, है कौन, करेगा जो सुनवाई
दूजे हित क्यों मोल भला वो लें रुसवाई !
इसीलिये चौकस रहना अच्छा होता है
अधिक भरोसा जो करता है वह रोता है !
जब तक इनकी भली तरह पहचान न होवे
रहें सतर्क सचेत न अपनी बुद्धि खोवें !

साधना वैद
चित्र - गूगल से साभार

Friday, March 8, 2024

हे शिव शंभू

 




महाशिवरात्रि पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

 

हे महादेव

फ़ैल गया असत

विनाश करो

 

भ्रष्टाचार से 

सिक्त इस जग को

पावन करो

 

छाये हुए हैं

चहुँ ओर असुर

संहार करो

 

भोले शंकर

पीड़ित हुए भक्त 

आश्वस्त करो

 

आये शरण

तुम्हारे चरणों में

वरदान दो

 

हे शिव शम्भू

त्रस्त हो चुके अब

निर्वाण करो !

 

चित्र - गूगल से साभार  


साधना वैद





Sunday, March 3, 2024

दो मुक्तक

 



मस्तक पर हिमगिरी हिमालय नैनों में गंगा यमुना

अंतर में हैं विन्ध्य अरावलि सुन्दर संस्कृति का सपना

मुट्ठी में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर उत्ताल

भारत मेरा अपना है और मैं हूँ भारत का अपना !

 

जन्म लिया जिस माटी में हम क़र्ज़ उतारेंगे उसका

पाया जिसके कण कण से हम फ़र्ज़ निभायेंगे उसका

आँख उठा कर देखेगा यदि दुश्मन भारत माँ की ओर

पल भर की भी देर न होगी शीश काट लेंगे उसका !

 

 साधना वैद 


Sunday, February 25, 2024

बसंत ऋतु

 

   


         


खिला पलाश

झूमा अमलतास

मन हर्षाया


उल्लास छाया 

सकल जगत में 

वसंत आया


दहका टेसू

लटकाये फानूस 

दीपित वन 


हर्षित सृष्टि 

उल्लसित धरती 

सँवारे तन 


आये मदन 

गाने लगे विहग 

स्वागत गान 


विस्मित प्राण 

अनुरक्त वसुधा 

फूलों के बाण 


आ गए कन्त 

करने अभिसार 

धरा तैयार 


गूँथ ली वेणी 

सजा लिए तन पे 

फूलों के हार 


फूली सरसों

डाल डाल पुष्पित  

महके बाग़ 


धरती खेले 

मनोहर रंगों से 

पी संग फाग 


साधना वैद