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Monday, November 18, 2024

Offoh Dadoo Haiku Samvad 3


ओफ्फोह दादू - दिल छू लेने वाली कविता जो याद दिलाती है बचपन के दिन

क्या आप भी अपने दादा की यादों में खो जाते हैं? साधना वैद की यह कविता दादा-पोते के रिश्ते को एक खूबसूरत तरीके से पेश करती है। पोते की जिज्ञासा, दादा की ममता और दोनों के बीच का प्यार, ये सभी भावनाएं इस कविता में बखूबी उभर कर आती हैं।

अपनी बचपन की यादों को ताजा करें और इस कविता के माध्यम से अपने दादा को याद करें।


साधना वैद 

Saturday, November 9, 2024

जगमग जग कर दें

 



दूर भगा कर तम हर घर को
जगर मगर कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !

रहे न कोई घर का कोना
कहीं उपेक्षित
, तम आच्छादित
हो जाए मन का हर कोना
हर्षित
, गर्वित और आह्लादित
रच कर सुन्दर एक रंगोली  
घर पावन कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर

जगमग जग कर दें !
गूँथ आम्र पल्लव से सुन्दर
द्वारे वन्दनवार सजाएं
तेल और बाती से रच कर
घर आँगन में दीप जलाएं
माँ लक्ष्मी के स्वागत में हम
घर मंदिर कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !
जैसे आज सजाया घर को
मन का भी श्रृंगार करें
ममता
, करुणा, दया भाव से
अतिथि का सत्कार करें
द्वेष
, ईर्ष्या, क्रोध मिटा कर
मन निर्मल कर दें !
चलो आज हम सब मिल जुल कर
जगमग जग कर दें !  

साधना वैद

Tuesday, November 5, 2024

दौज का टीका

 



दौज का टीका

भैया के भाल पर

दमके ऐसे

 

चंदा सूरज

नील गगन पर

चमके जैसे 

 

भैया सा स्नेही

सकल जगत में

दूजा न कोई

 

सौभाग्य जगा

पाकर तुझे भैया

खुशियाँ बोई

 

स्नेह की डोर

कस कर थामना

दुलारे भैया

 

पार उतारो

थाम के पतवार

जीवन नैया

 

दौज का टीका

दीप्त हो भाल पर

सूर्य सामान

 

शीतल करे

अन्तर की तपन

चन्द्र सामान   

 

रोली अक्षत

सजे भाल पर ज्यों

सूरज चाँद 


स्नेह डोर से 

बहना ने लिया है 

भैया को बाँध !



साधना वैद 


Thursday, October 24, 2024

किसान

 



बुधिया सुबह सवेरे जब खेत पर पानी लगाने पहुँचा तो हैरान रह गया उसके खेत में जाने वाली नहर की धार को साथ वाले खेत के नए मालिक ने खूब ऊँची मेंड़ बना कर रोक लिया था और अपने खेत की और मोड़ लिया था ! वहाँ पहलवान किस्म के चार हट्टे कट्टे आदमी भी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे ! बुधिया ने प्रतिवाद किया तो उन्होंने उसे डपट कर हड़का दिया ! पहले तो बगल वाले खेत का मालिक रामेसर था ! उसका जिगरी दोस्त ! दोनों बारी-बारी से अपने खेत में पानी लगा लेते थे ! कोई झगड़ा कोई तकरार कभी नहीं हुए ! गले तक कर्जे में डूबे रामेसर ने पिछले हफ्ते अपना खेत किसी जगत सिंह को बेच दिया ! और अपने परिवार के साथ शहर की ओर पलायन कर गया मेहनत मजदूरी करके बाल बच्चों का पेट भरने के लिए ! बुधिया के सर पर संकट के बादल मंडरा रहे थे ! क्या करे किससे मदद माँगे ! पिछले साल भी सूखे की वजह से सारी फसल खराब हो गयी थी ! बहुत नुक्सान उठाना पडा था उसे भी ! इस साल भी ठीक से सिंचाई नहीं हुई तो वह तो बर्बाद हो जाएगा !
दुखी चिंतित बुधिया मुँह लटकाए घर आया तो बापू ने सलाह दी विधायक जी के पास जाकर अपनी विपदा कहे ! वो कुछ न कुछ सहायता जरूर करेंगे ! बुधिया को कुछ धीरज बँधा ! पास पड़ोस के दो तीन बुजुर्गों को लेकर वह विधायक जी का पता पूछते हुए उनके बंगले तक पहुँचा ! गेट पर चार बंदूकधारी पहरा दे रहे थे और सुनहरे अक्षरों में नेम प्लेट पर विधायक जी का नाम चमक रहा था, ‘जगत सिंह चौधरी’ !



साधना वैद

 

चित्र - गूगल से साभार 

Tuesday, October 22, 2024

लेखक और उसका आचरण





किसी भी लेखक के लेखन में उसके व्यक्तित्व या उसके आचरण की झलक दिखना आवश्यक तो नहीं होता फिर हम उसे ढूँढने की कोशिश ही क्यों करते हैं ! लेखक सर्वप्रथम एक इंसान है और लेखन उसकी रूचि, शौक या व्यवसाय कुछ भी समझ लीजिये ! ये दोनों ही चीज़ें एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं और किसी भी तरह से एक दूसरे को तनिक भी प्रभावित नहीं करतीं या यूँ कहिये कि उन्हें एक दूसरे को प्रभावित करना नहीं चाहिए !


किसी भी लेखक के लेखन में उसका अपना व्यक्तित्व झलक सकता है और उसकी अपनी सोच, उसकी मानसिकता एवं उसकी प्राथमिकताएं प्रतिबिंबित अवश्य हो सकती हैं लेकिन उसके शत प्रतिशत लेखन में ऐसा ही हो यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं ! कोई भी लेखक सदैव एक ही साँचे में ढाल कर लेखन कैसे कर सकता है ! लेखन के विषय विविध होंगे तो उसका प्रारूप भी भिन्न ही होगा ! सामाजिक सरोकारों के प्रति साहित्यकार की प्रतिबद्धता सर्व विदित भी है और सर्वमान्य भी ! कभी उसकी रचनाएं आत्मपरक हो सकती हैं तो कभी नितांत तटस्थ और निर्वैयक्तिक ! कभी वह भावुक होकर लिखता है तो कभी वस्तुपरक होकर ! दोनों ही सूरतों में उसका लेखन भिन्न होगा ! जो व्यक्ति पर्यटन को विषय बना कर लिख रहा है या किसी भवन की वास्तुकला पर लिख रहा है जो कि एक विशुद्ध तथ्यपरक विषय है उसमें उसके आचरण की झलक देखने की कोशिश बेमानी ही होगी ! ऐसा मेरा विचार है ! वैसे एक लेखक की कुछ रचनाओं को पढ़ कर उसके सोच
, उसकी मानसिकता और उसके आत्मिक सौन्दर्य के दर्शन तो अवश्य ही हो जाते हैं इसमें भी संदेह नहीं है तभी तो हम बिना मिले ही कतिपय लेखकों के मुरीद हो जाते हैं और अपने हृदय में उनके लिए कोई न कोई कोना अवश्य ही सुरक्षित कर लेते हैं ! आशा करते हैं कि उनका आचरण भी उतना ही श्रेष्ठ होगा जितना उनका लेखन है !


एक बात और जो कहने से रह गई उसे और कह दूँ ! कुछ लेखकों की छवि और लोकप्रियता जनमानस में उनके लेखन व रचनाओं के माध्यम से बनती है ! जैसे कि हास्य रस के दो बड़े स्तम्भ हैं काका हाथरसी एवं सुरेन्द्र शर्मा जी ! दोनों ही दिग्गज रचनाकार माने जाते हैं और पाठकों एवं श्रोताओं के बीच गहरी पैठ बनाए हुए हैं ! दोनों ने ही अपनी रचनाओं में अपनी पत्नी की इंतहा की हद तक हँसी उड़ाई है ! काका हाथरसी की कविताओं में 'काकी' और सुरेन्द्र शर्मा जी की कविताओं में उनकी 'घराड़ी' सारी मुसीबतों की जड़ रही हैं तो क्या हम यह समझ लें कि वे अपनी पत्नियों का सम्मान नहीं करते या उनकी नज़रों में उनकी पत्नियाँ केवल मूर्ख, अज्ञानी और उपहास की पात्र ही हैं ! लेखक केवल कभी-कभी पाठकों को रिझाने के लिए, उनके अवसाद को कम कर उन्हें गुदगुदाने के लिए या उन्हें खुश करने के लिए भी लिखते हैं ! लेकिन यह कतई ज़रूरी नहीं कि उनकी सोच भी वैसी ही हो और उनका आचरण भी वैसा ही हो !


साधना वैद


Sunday, October 13, 2024

मेरा फैसला – लघुकथा

 





आज कक्षा में टीचर बहुत खुश दिखाई दे रही थीं | उन्होंने इशारा करके रोहित को खड़ा किया |

“रोहित, तुम अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद क्या बनना चाहते हो ?”

“जी टीचर, मैं डॉक्टर बन कर दीन दुखियों और निर्धन रोगियों का मुफ्त में उपचार कर मानवता की सेवा करना चाहता हूँ |”

“शाबाश ! और आकाश तुम ?”

“टीचर, मैं पायलट बनना चाहता हूँ और देश विदेश के सभी प्रसिद्ध स्थानों को देखना चाहता हूँ |”

इसी तरह, कोई जज, कोई वकील, कोई इंजीनियर, कोई स्पेस साइंटिस्ट, कोई कलाकार तो कोई अध्यापक बनना चाहता था और सबके पास अपने सबल तर्क भी थे जो उनकी महत्वाकांक्षा का समर्थन कर रहे थे | टीचर बहुत खुश हो रही थीं अपने विद्यार्थियों की खूबसूरत सपनों की उड़ान और उनकी सुलझी हुई सोच को देख कर |

अंत में बारी आई देवांश की | टीचर ने उससे भी यही सवाल किया |
“टीचर, मैं साधू बाबा बनना चाहता हूँ |”

टीचर के साथ सारे बच्चे हैरान थे !

“और भला तुम साधू बाबा क्यों बनना चाहते हो बताओगे |” टीचर ने पूछा |

“टीचर, सबसे बड़ा फ़ायदा तो साधू बाबा बनने में ही है | कहीं कोई डिग्री नहीं दिखानी पड़ती, कोई एंट्रेंस इम्तहान पास नहीं करना पड़ता, किसी को रिश्वत नहीं देनी पड़ती | बस किराए के कपड़े पहन कर, दो चार बढ़िया बढ़िया भजन याद कर कीर्तन और सत्संग के नाम पर थोड़ी सी भीड़ जुटा लो एक दो बार, आपके तो समर्थक बढ़ते ही जायेंगे | पुराने संतों के उपदेशों को सुन कर चार छ: दमदार डायलॉग्स याद कर लो | इस धंधे में बड़ी इज्ज़त मिलती है | आप चाहे तीस बरस के भी न हों बड़े बूढ़े बुज़ुर्ग भक्त आपके चरणों में लोट लगाने को तैयार रहते हैं | भेंट पूजा उपहार में इतने फल फ्रूट मेवा मिठाई और तरह तरह के व्यंजन आते हैं कि कितना भी खाओ खिलाओ ख़त्म ही नहीं होते | दान पेटी हर समय रुपयों से भरी रहती है और बिन माँगे पुलिस प्रशासन आपकी सेवा सुरक्षा में लगा रहता है | बड़े बड़े नेता आपके आगे सर झुकाते हैं और हर समाचार पत्र में, टी वी के हर चैनल पर आपके ही इंटरव्यू आते रहते हैं | इसके अलावा लोग हज़ारों रुपयों के टिकिट खरीद कर आपकी सभा में आने के लिए हफ़्तों पहले से बुकिंग कराते हैं | जितना पैसा ये जीवन भर नौकरी करके नहीं कमा पायेंगे उससे कहीं अधिक मेरे पास बिना कुछ करे धरे एक सभा में आ जाएगा ! इंसान को इससे ज़्यादह और क्या चाहिए | बताइये टीचर मेरा फ़ैसला इन सबसे बढ़िया है या नहीं ?”  


चित्र - गूगल से साभार 


साधना वैद

 


Thursday, October 10, 2024

त्योहार

 



आज शारदेय नवरात्रि की अष्टमी है ! बस्ती के घरों में खूब हलचल है ! जो बच्चियाँ अपनी माँओं की डाँट फटकार खाने के बाद भी दिन चढ़े तक ऐसे ही घूमती रहती हैं आज सुबह से नहा धोकर साफ़ सुथरे कपड़े पहन कर बाल बाँध कर तैयार हो रही हैं ! आज का दिन उन सबके लिए सबसे बड़े त्योहार का दिन है ! सबको आज कई घरों में आमंत्रित किया जाएगा ! खूब हलवा पूरी खाने को मिलेंगी और भेंट उपहार मिलेंगे सो अलग ! लड़कियों के ग्रुप में बड़ा उत्साह है !
बिल्मा भी सबके साथ जाना चाहती है ! लेकिन न तो उसके पास कोई अच्छी सी फ्रॉक है न जूते या चप्पल ! जूता फट गया है चप्पल टूट गयी है ! अम्माँ के पास पैसे भी नहीं है जो खरीद कर दिला देती ! इसलिए माँ ने जाने से मना कर दिया है ! बिल्मा आँखों में आँसू भरे उदास बैठी है ! आज बापू ज़िंदा होते तो ज़रूर उसके लिए कोई न कोई जुगत लगा कर इंतजाम कर देते ! तभी उसकी पक्की सहेली मुनिया उसके लिए एक फ्रॉक लेकर आ गयी ! “ले बिल्मा ! इसे पहन ले और जल्दी से तैयार हो जा ! पूजा में इतने पैसे तो मिल ही जायेंगे कि तेरी चप्पल आ जाए !” बिल्मा ने माँ की तरफ देखा ! माँ की आँखों में आँसू भी थे और इजाज़त भी !


चित्र - गूगल से साभार


साधना वैद