प्रियांशी इस
बार फिर अवसादग्रस्त थी ! डॉक्टर मिश्रा ने उसे आगाह किया था कि प्राकृतिक तरीके
से उसके लिए गर्भाधान करना संभव नहीं है ऐसी स्थिति में किसी अन्य स्त्री के
गर्भाशय में भ्रूण का प्रत्यारोपण कर उसकी सहायता से ही उसके बच्चे का जन्म लेना
संभव हो सकेगा ! इस तकनीक को आई. वी. ऍफ़. तकनीक और ऐसी माताओं को सरोगेट मदर कहते
हैं !
प्रियांशी चिंतित थी ! नौ माह तक बच्चे को अपने शरीर में रख कर गर्भाधान के सारे
कष्ट सहने के बाद और फिर प्रसव की सारी पीड़ा से गुज़रने के बाद क्या उस स्त्री को
बच्चे के प्रति मोह नहीं हो जाएगा ? अगर उसने जन्म के बाद बच्चे को देने से इनकार
कर दिया तो क्या होगा ? उसके मन में बड़ी बेचैनी थी ! उस स्त्री के स्थान पर वह खुद
को रख कर देख रही थी ! वह तो बिलकुल नहीं दे पाती अपने बच्चे को ! इतने महीनों तक
अपने अस्थि मज्जा से उसे सींचा है ! ऐसे कैसे दे दें किसी और को ! प्रियांशी की
साँस अटकी हुई थी !
तभी दरवाज़े की घंटी बजी ! डॉ. मिश्रा का असिस्टेंट एक स्त्री को लेकर आया था जो
प्रियांशी के बच्चे को अपने गर्भ में रखने के लिए तैयार थी ! खूब गोरी चिट्टी,
स्वस्थ वह खुश मिजाज महिला दिखाई देती थी ! प्रियान्शी ने डरते-डरते उससे पूछ ही
लिया, “इतने दिनों तक बच्चे को अपनी कोख में रखने के बाद तुम्हें उससे मोह नहीं हो
जाएगा ? कैसे विश्वास करें कि तुम बच्चा हमें दे दोगी ?”
महिला ठठा कर हँस पड़ी, “हमारा शरीर तो है ही किराए की कोख बहू जी ! किरायेदारों से
कैसा मोह ! यह कोई पहला बच्चा थोड़े ही है ! पहले भी तीन बच्चे पैदा करके सौंप चुके
हैं उनके माँ बाप को ! हाँ किराया अच्छा देना पड़ता है ! सो तो तुम्हें बता ही दिया
होगा मिश्रा मैडम ने !” वह नज़रों में प्रियांशी की औकात को तोल रही थी और प्रियांशी
हतप्रभ सी उसे देख रही थी !
साधना वैद