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Friday, May 8, 2009

दोषी कौन ?

चुनाव का चौथा चरण भी बीत गया । बड़े दुख की बात है कि मतदान का प्रतिशत अभी तक जस का तस है । लोगों को ‘जगाने’ के सारे भागीरथ प्रयत्न विफल हो गये । लेकिन उससे भी बडे दुख की बात यह है कि जो ‘जाग’ गये थे उनको हमारे अकर्मण्य तंत्र की खोखली अफसरी ने दोबारा ‘सोने’ के लिये मजबूर कर दिया ।
जिस दिन से चुनाव की घोषणा हुई थी मतदाता सूचियों के सुधारे जाने और उनका नवीनीकरण किये जाने का एक ‘वृहद कार्यक्रम’ चलाया गया । कई दिनों तक दिन में शांति से बैठ नहीं सके कि कभी फोटो चाहिये तो कभी पासपोर्ट की कॉपी तो कभी ड्राइविंग लाइसेंस की कॉपी तो कभी परिवार के सारे सदस्यों के विस्तृत वृत्तांत कि कौन कहाँ रहता है और उसकी आयु क्या है आदि आदि । हमने भी बडे धैर्य के साथ उन्हें पूरा सहयोग दिया और सभी वांछित जानकारी उन्हें उपलब्ध कराई इस आशा के साथ कि इस बार तो बड़ी मुस्तैदी से काम हो रहा है और इस बार के चुनाव के साथ अवश्य ही बदलाव की सुख बयार बहेगी और भारतीय लोकतंत्र की जीर्ण शीर्ण काया का अकल्पनीय रूप से सशक्तिकरण हो जायेगा । लेकिन कल बड़ी कोफ्त हुई जब मतदाता सूची में अपना नाम ढूँढने में हमें बड़ी मशक्कत करनी पड़ी और उससे भी ज़्यादह कोफ्त शाम को हुई जब टी.वी. पर कई लोगों को अपना दर्द बयान करते देखा कि मतदाता सूची में नाम नहीं मिलने की वजह से उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया । अपने मताधिकार से वंचित रहने वालों में एक बडी संख्या अशिक्षित मतदाताओं की थी । व्यवस्था में इतनी बड़ी चूक के लिये आप किसे दोष देंगे ? मतदाता सूचियों में सुधार की प्रक्रिया का प्रदर्शन क्या दिखावा भर था ? कई लोग अपना फोटो पहचान पत्र भी दिखा रहे थे लेकिन क्योंकि सूची में नाम नहीं था इसलिये उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया । जहाँ इतनी लचर व्यवस्था हो और उनकी ‘कार्यकुशलता’ के आधार पर नियमों का अनुपालन हो वहाँ सुधार की गुंजाइश कहाँ रह जाती है !
मतदान केन्द्रों पर एक ऐसे निष्पक्ष अधिकारी को नियुक्त करना चाहिये जो स्वविवेक से यह निर्णय ले सके कि निकम्मी व्यवस्था के शिकार ऐसे लोग किस तरह से अपने मताधिकार का प्रयोग करें और उन्हें अपने बुनियादी अधिकार से वंचित रहने का दंश ना झेलना पड़े । भारत जैसे विशाल देश में जहाँ एक बड़ी संख्या में अशिक्षित मतदाता हैं शासन तंत्र को उनका छोटे बच्चों की तरह ध्यान रखने की ज़रूरत है । छिद्रांवेषण कर उनको वोट देने से रोकने से काम नहीं चलेगा ज़रूरत इस बात की है कि तत्काल वहीं के वहीं उन कमियों को दूर करने के विकल्प तलाशे जायें और उन्हें भी नई सरकार के निर्माण में अपना अनमोल योगदान देने के गौरव को अनुभव करने दिया जाये । चुनाव का अभी भी अंतिम चरण बाकी है । शायद चुनाव आयोग इस ओर ध्यान देगा ।
साधना वैद

3 comments :

  1. आपने बिल्कुल सही कहा है,वैसे मतदान कम होने की वजह लोगों का नेताओं से विस्वास उठना व गर्मी भी है

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  2. दोषी हम ही और हमारी सरकार भी, टीवी पर बैठ कर कमेन्‍ट करना आसान होता है कि कोई नही निकला क्‍या आप निकले

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  3. People in general have lost faith in the political class.They still have faith in their vote but there is nothing to choose from.Do you know which party will join which coalition after the 16th? Vote for who?

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