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Friday, December 25, 2009

उलझन

अभी तक समझ नहीं पाई कि
भोर की हर उजली किरन के दर्पण में
मैं तुम्हारे ही चेहरे का
प्रतिबिम्ब क्यों ढूँढने लगती हूँ ?
हवा के हर सहलाते दुलराते
स्नेहिल स्पर्श में
मुझे तुम्हारी उँगलियों की
चिर परिचित सी छुअन
क्यों याद आ जाती है ?
सम्पूर्ण घाटी में गूँजती
दिग्दिगंत में व्याप्त
हर पुकार की
व्याकुल प्रतिध्वनि में
मुझे तुम्हारी उतावली आवाज़ के
आवेगपूर्ण आकुल स्वर
क्यों याद आ जाते हैं ?
यह जानते हुए भी कि
ऊँचाई से फर्श पर गिर कर
चूर-चूर हुआ शीशे का बुत
क्या कभी पहले सा जुड़ पाता है ?
धनुष की प्रत्यंचा से छूटा तीर
लाख चाहने पर भी लौट कर
क्या कभी विपरीत दिशा मे मुड़ पाता है ?
वर्षों पिंजरे में बंद रहने के बाद
रुग्ण पंखों वाला असहाय पंछी
दूर आसमान में अन्य पंछियों की तरह
क्या कभी वांछित ऊँचाई पर उड़ पाता है ?
मेरा यह पागल मन
ना जाने क्यूँ
उलझनों के इस भँवर जाल में
आज भी अटका हुआ है ।


साधना वैद

14 comments :

  1. अच्छी कविता उलझन पर ।

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  2. बहुत ही सुंदर रचना है।
    ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
    pls visit...
    www.dweepanter.blogspot.com

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  3. मेरा यह पागल मन
    ना जाने क्यूँ
    उलझनों के इस भँवर जाल में
    आज भी अटका हुआ है ।
    मन का काम ही है उलझना
    औ फिर
    उलझन में उलझे बिना उलझन नहीं सुलझती
    सुन्दर् रचना

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  4. मेरा यह पागल मन
    ना जाने क्यूँ
    उलझनों के इस भँवर जाल में
    आज भी अटका हुआ है ।


    -बहुत उम्दा भाव!

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  5. बीना शर्माDecember 26, 2009 at 6:27 AM

    ये ही तो प्यार है जिस पर मिट जाने का मन करता है।

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  6. वर्षों पिंजरे में बंद रहने के बाद
    रुग्ण पंखों वाला असहाय पंछी
    दूर आसमान में अन्य पंछियों की तरह
    क्या कभी वांछित ऊँचाई पर उड़ पाता है ?
    मेरा यह पागल मन
    ना जाने क्यूँ
    उलझनों के इस भँवर जाल में
    आज भी अटका हुआ है ।
    मन की व्यथा को बहुत सुन्दर शब्दों से उभारा है अच्छी अभिव्यक्ति के लिये बधाई और शुभकामनायें

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  7. अच्छी रचना ।नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ |

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  8. बहुत सुन्दर कविता.


    धन्यवाद.

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  9. ऊँचाई से फर्श पर गिर कर
    चूर-चूर हुआ शीशे का बुत
    क्या कभी पहले सा जुड़ पाता है ?
    धनुष की प्रत्यंचा से छूटा तीर
    लाख चाहने पर भी लौट कर
    क्या कभी विपरीत दिशा मे मुड़ पाता है ?
    बहुत शानदार कविता है.

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  10. आपकी भावुकता शब्‍दो से टपकती ही नहीं झरती सी महसुस होती है। खुबसुरत ह्रदर्य पाया....समभालना

    मनसा आनंद मानस

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  11. uljhan ko suljhana hota hai kya?
    a very difficult theme dealt in such a easy way in spontaneous
    flow> this is something which touches heart>
    Asha

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  12. सुन्दर शब्दों से उभारा है अच्छी अभिव्यक्ति के लिये बधाई और शुभकामनायें

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  13. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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