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Tuesday, August 23, 2011

मंज़िल







बस

फूलों की पंखुड़ी की तरह

एक नाज़ुक सा ख़याल ,

स्पंज की तरह भीगा-भीगा सा

एक चाहत का जज्बा ,

मन पर चहलकदमी करती

अतीत के मधुर पलों को दोहराती

ढेर सारी खट्टी मीठी यादें ,

दिल के टी वी स्क्रीन पर

हर लम्हा बदलती

बीते पलों की बेहद मोहक

खूबसूरत तस्वीरें !

साथ ही लम्बे-लम्बे

अनचीन्हे अनजान रास्ते ,

दूर तक ना तो

मंज़िल का कोई निशान

ना ही कोई पहचान ,

ना कोई आवाज़

ना ही कोई आहट ,

ना कोई रोशनी की किरण

ना ही किसी विश्वास का उजाला !

समय की गीली रेत पर

तुमने जो निशाँ छोड़े थे

उनकी नमी

मौसमों के प्रखर ताप ने

सारी की सारी

ना जाने कब सोख ली और

वो हालात की आँधी के साथ

उड़ कर अब तो मिट भी गये !

इस गुमनाम सफर की

मंज़िल कहाँ है ,

राह में पड़ाव कहाँ हैं ,

और मेरा लक्ष्य कहाँ है ,

मुझे कुछ तो बताओ !



साधना वैद

13 comments :

  1. आदरणीय साधना वैद जी
    नमस्कार !
    उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
    ........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  2. इस गुमनाम सफर की

    मंज़िल कहाँ है ,

    राह में पड़ाव कहाँ हैं ,

    और मेरा लक्ष्य कहाँ है ,

    मुझे कुछ तो बताओ !

    ....बहुत कोमल अहसास..सुन्दर भावपूर्ण संवेदनशील प्रस्तुति....

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  3. यादों की भटकन में मंजिल की तलाश ... इस भाव को बहुत खूबसूरती से शब्दों में बाँधा है .. अच्छी प्रस्तुति

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  4. इस गुमनाम सफर की

    मंज़िल कहाँ है ,

    राह में पड़ाव कहाँ हैं ,

    और मेरा लक्ष्य कहाँ है ,

    मुझे कुछ तो बताओ !

    आपने मंजिल की खोज में अच्छा प्रश्न किया है.
    यह प्रश्न एक जिज्ञासु ही कर सकता है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.

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  5. "समय की की गीली रेत पर तुमने जो निशाँ छोड़े थे
    उनकी नमीं मौसमों के प्रखर ताप ने सारी की सारी
    न जाने कब सोच ली "
    बहुत सुन्दर |
    बधाई |
    आशा

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  6. मौसमों के प्रखर ताप ने

    सारी की सारी

    ना जाने कब सोख ली और

    वो हालात की आँधी के साथ

    उड़ कर अब तो मिट भी गये !

    पूरी कविता के साथ साथ यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं।

    सादर

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  7. उनकी नमी

    मौसमों के प्रखर ताप ने

    सारी की सारी

    ना जाने कब सोख ली और

    वो हालात की आँधी के साथ

    उड़ कर अब तो मिट भी गये !

    man ke garden me chaahton ke foolon ko yaado ka pani dete rahiye...to dekhiyega ye halaat ki aandhi, ye mausam ke taap ki prakharta khud-b-khud, ahista ahista mit jayegi aur fir ye boyi hui kheti ek na ek din leh laha uthegi...tab kahi-n-kahin....kabhi-n-kabhi hame, tumhe, sabko manzil mil hi jayegi. vo sunta to hoga tumne...jahan chaah hoti hai vahan raah mil hi jati hai.

    to??????
    meri nayi post par to bin bulaye nahi aaogi na ? mat aana ....huh..kabhi mat ana...jao me bulaungi bhi nahi.

    :)

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  8. मंज़िल कहाँ है ,

    राह में पड़ाव कहाँ हैं ,

    और मेरा लक्ष्य कहाँ है ,

    मुझे कुछ तो बताओ !

    सुन्दर रचना

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  9. bahut hi umda rachna ,sunder bhav.....

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  10. समय की गीली रेत पर
    तुमने जो निशाँ छोड़े थे
    उनकी नमी
    मौसमों के प्रखर ताप ने
    सारी की सारी
    ना जाने कब सोख ली.....

    खुबसूरत अभिव्यक्ति....
    सादर बधाई...

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  11. यादों की खूबसूरत तस्वीरें जो हैं हमारे पास, ुनके सहारे ही कट जायेगा इन्तज़ार ।
    सुंदर भावप्रवण रचना ।

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