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Sunday, July 1, 2012

रुकी हुई ज़िंदगी













ठहरे हुए पलों में कैद
एक बेमानी बेमकसद
ज़िंदगी के सलीब को खुद
अपने ही कन्धों पर
ढोना पड़ता है ,
अगर ज़िंदा होने के अहसास
से रू ब रू होना हो तो
बीते दिनों की खुशबू और
यादों के घने वनांतर में
गहराई तक अंदर जा
खुद को ही नये सिरे से
खोना पड़ता है !

रंगीन तितलियों जैसे
जाने कितने सुखद पल
वक्त के बाजीगर की
जादूगरी से
नितांत खाली मुट्ठी में
अचानक से सिमट आते हैं ,
और ना जाने कितने
खूबसूरत मंज़र गगन में
दूर तक फ़ैले 
चाँद सितारों की तरह
मनाकाश पर छा जाते हैं !

वो छोटे से शहर की
पतली-पतली गलियों में  
सहेली को चलती
साइकिल पर बिठा
डबल सवारी चलाने की
कोशिश करना ,
और डगमगाते हैंडिल को
सम्हालते-सम्हालते
सहेली को भी गिराना
और खुद भी गिरना !  

फिर आस पास हँसते लोगों
की नज़रों से बचने की कोशिश में    
धीरे से नहीं बैठ सकती थी पागल
कह सहेली को झिड़कना ,
और जल्दी से कॉपी किताबें समेट
हवा की सी तेज़ी से
वहाँ से खिसकना ! 

वो हिन्दी के सर की
क्लास बंक कर
कॉलेज के गार्डन के कोनों में 
सखियों के संग
गपशप की चटपटी चटनी के साथ
समोसे पकौड़ों की पार्टी करना ,
और चुपके से कभी दुपट्टे में
तो कभी रिबन में गाँठ लगा
दो लड़कियों को
जी भर के तंग करना ! 

वो तीरथगढ़ और चित्रकूट
जलप्रपातों की सैर ,
वो इन्द्रावती का किनारा ,
वो बैडमिंटन और कैरम के मैच
वो कॉमन रूम में
सहेलियों का शरारत भरा इशारा !

मन के किसी कोने में
दबी छुपी ये यादें ही
आज की ठहरी ज़िंदगी को
रवानी देती हैं ,
और उम्रदराज़ होती
दिल की थकी हुई
लस्त तमन्नाओं को
जी उठने का
नायाब सलीका सिखा
फिर से नयी
जवानी देती हैं !


साधना वैद  
    

25 comments :

  1. अरे.......
    हमारा कॉलेज भी तो चित्रकोट के रास्ते में था...धरमपुरा में.....
    :-)

    बहुत प्यारी रचना ....दिल के करीब लगी...
    सादर

    अनु

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  2. साधना जी ,

    आज तो आपने मुझे अपने हॉस्टल पहुंचा दिया .... न जाने कितनी शरारतें याद आ गईं ....
    शिथिल जीवन में शायद कुछ तरंगे उठ पाएँ ।
    बहुत सुंदर

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  3. सहेली को भी गिराना
    और खुद भी गिरना !
    यादें समेटे ....खूबसूरत एह्सासों से भरी ...बहुत सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें.

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  4. कुछ यादें यहाँ भी उभरीं...रचना सफल रही...

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  5. कुछ यादें यहाँ भी उभरीं...रचना सफल रही...

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें

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  7. यादों का सुन्दर झरोखा..बहुत सुन्दर..साधना जी..

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  8. वाह वाह वाह यादों की सुन्दर तस्वीर खींच दी।

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  9. सचमुच बहुत सारी यादें ताज़ा हो गईं आपके साथ... वो हिंदी के सर वाली भी बिलकुल अपनी सी लगी... :)

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  10. वाह ... यादों में बसे यह मधुर पल जीवंत से ..

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  11. @ अब आपको किस नाम से संबोधित करूँ दुविधा में हूँ क्योंकि अभी तक मुझे आपका नाम तो पता ही नहीं है इसलिए 'एक्सप्रेशन जी' से ही काम चलाना पडेगा ! आपके कमेन्ट से पता चला कि आप भी जगदलपुर से सम्बन्ध रखती हैं ! अपार हर्ष होता है जब कोई जगदलपुर से ताल्लुक रखने वाला कोई मिलता है ! हम आपसे भी पुराने ज़माने के हैं ! उन दिनों कॉलेज महल की प्रेमिसेज़ में लगता था ! धरमपुरा में उन दिनों कॉलेज की बिल्डिंग बन रही थी ! जब वहाँ कॉलेज शिफ्ट हुआ तब तक हम लोग जगदलपुर छोड़ चुके थे क्योंकि मेरे पिताजी का ट्रांसफर हो गया था ! परिचय के साथ यदि आप आपना ई मेल एड्रेस भी देंगी तो आभारी रहूंगी !

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  12. क्या बात है..यादों के किस जंगल में ले गयी ये कविता कि निकलना मुश्किल..
    बड़े प्यारे प्यारे पल...याद दिला गयी ये ख़ूबसूरत कविता.

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  13. मन के किसी कोने में
    दबी छुपी ये यादें ही
    आज की ठहरी ज़िंदगी को
    रवानी देती हैं.


    पुराने पलों की यादें बस सिर्फ याद करने के लिए होती हें फिर इतनी भी फुरसत कहाँ कि उन सहेलियों के संग कुछ दिन भी गुजर सकें.

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  14. शरारतों से भरपूर बीते कॉलेजके दिनों की यादें समेटे सुन्दर प्रस्तुति |बहुत अच्छी लगी इसी तरह की कवितायेँ जीवन में भी जान डाल देती है |हार्दिक बधाई |
    आशा

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  15. साधना जी हमने आपको मेल किया है.....
    :-)

    आपने देखा नहीं...मैं अनु हूँ,लिखा है मैंने.

    अनु

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  16. कल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' जुलाई का महीना ''

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  17. कहाँ-कहाँ भटका दिया आपने - जितनी मधुर उतनी ही प्यारी यादों के जंगल में,
    -बहुत प्यारी रचना !

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  18. ye yade kuchh khatti...kuchh meethi jo jeewan ki naiya ko khete chalne ka aadhar hain aur mand thandi thandi vayu ka sa ehsaas kara jati hain.

    bahut sunder chitran kar diya beete dino ka.

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  19. यादों के जिस रास्ते पर आपने खड़ा किया , वहाँ तो यादों के वृक्ष की हर शाखाओं ने हाथ थाम लिया , एक साथ कई चेहरे , कई पुकार , कई हँसी .... जाने कितना कुछ साथ साथ हो गए !

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  20. सच कहा है ... अपने आप ही उठाना पढता है जीने के एहसास के लिए ... खुद से ही बात करनी हिती है ...

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    उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार


    प्रवरसेन की नगरी
    प्रवरपुर की कथा



    ♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

    ♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥


    ♥शुभकामनाएं♥

    ब्लॉ.ललित शर्मा
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  22. अगर ज़िंदा होने के अहसास
    से रू ब रू होना हो तो
    बीते दिनों की खुशबू और
    यादों के घने वनांतर में
    गहराई तक अंदर जा
    खुद को ही नये सिरे से
    खोना पड़ता है !


    यादों के झरोखों से निकलकर आयी एक बड़ी अच्छी और सुंदर रचना !!

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  23. यही खूबसूरत पल ज़ेहन में हर वक़्त उम्र की सरहदों पर टिके रहते हैं ...
    खूबसूरत यादों की मीठी कविता !

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  24. यादें....यादें.....ये यादें.....!!
    बहुत सुन्दर

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