Followers

Sunday, September 23, 2012

घरेलू गैस के छ: सिलेंडर – एक अजीबोगरीब फैसला




 








घरेलू गैस के छ: सिलेंडर – एक अजीबोगरीब फैसला !

इस फैसले के पीछे की कहानी जानना चाहेंगे ?
पिछले दिनों सूचना के अधिकार के तहत यह हकीकत सामने आई कि ऊँचे पदों पर आसीन लोगों और जन नेताओं द्वारा घरेलू गैस का उपयोग औसत से कहीं अधिक किया जा रहा है जो समझ से परे है ! पिछले साल में इन वी आई पीज़ को सप्लाई किये गये सिलेंडरों की संख्या पर ज़रा गौर कीजिये ! 


मायावती – 91
मुलायम सिंह यादव – 108
लालू प्रसाद यादव – 43
रामविलास पासवान – 45
के. जी. बालकृष्णन – 60 ( चीफ जस्टिस )
प्रणीत कौर – 77 ( मिनिस्टर ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स )
हामिद अंसारी – 170  ( उपराष्ट्रपति )
ऐ. राजा – 89
नितिन गडकरी – 35
के. पी. एस. गिल – 79
सलमान खुर्शीद – 62
शरद पवार – 31
सुखबीर सिंह बादल – 31
सुरेश कलमाड़ी – 63
मोहन सिंह – 52   ( रेनबैक्सी वाले )
समीर जैन – 39 ( बोनेट कोलमैन के )
सुनील मित्तल – 27 ( भारतीय ग्रुप )
आदि आदि आदि .....
और ‘मैन ऑफ द मैच’ रहे –  नवीन जिंदल – 369

यह हकीकत देख कर चकरा गया ना आपका भी सर ?  
उसके बाद क्या हुआ ? हर बार की तरह पार्लियामेंट की स्टैन्डिंग कमेटी गठित की गयी जिसने सिफारिश की कि छ: लाख प्रतिवर्ष से अधिक आय वाले आम नागरिक, एम पी, एम एल ए व संवैधानिक पदों पर बैठे विशेष व्यक्तियों को प्रतिवर्ष सिर्फ छ: सिलेंडर ही रियायती दरों पर दिये जाएँ बाकी लोगों को आज के नियम के अनुसार इक्कीस दिन में एक के हिसाब से साल के १८ सिलेंडर दिये जाएँ ! लेकिन आम जनता के साथ होता क्या है आप जानते हैं ना ? इक्कीस दिन के बाद तो गैस बुक की जाती है उसके बाद लगभग 10 - 12 दिन के बाद भी यदि गैस सप्लाई कर दी जाये तो इंसान खुद को खुशकिस्मत समझता है ! बहुत पूछने पर एक रटा रटाया जुमला हवा में उछाल दिया जाता है कि "सप्लाई ही नहीं आ रही है कंपनी से तो हम क्या कर सकते हैं !" हाँ ब्लैक में यही सिलेंडर यथेष्ट मिल जाते हैं ! तो देखा आपने आम जनता के लिये कहने भर को १८ सिलेंडर सालाना का प्रावधान है जबकि वास्तविकता में मिलते तो उसे केवल ९ – १० सिलेंडर ही हैं !
पर देखिये ना इतना बड़ा देश, इतने सारे काम और इतने वयोवृद्ध नेता ! कहाँ से इतनी ऊर्जा लायें कि पूरे देश में किसको देना है और किसको नहीं देना है इसकी लिस्ट बना सकें और सिलेंडरों के दुरुपयोग को रोक पायें ! और भी तो ज़रूरी काम हैं जैसे अपनी कुर्सी बचाना, घोटालों पर पर्दा डालना और प्रतिद्वंदियों की टाँग खींचना इत्यादि ! तो इस सबका उन्होंने आसान तरीका ढूँढ लिया ! उनकी नज़र में आम जनता के सारे लोग बड़े आदमी हैं और सब अमीर हैं ! जनता मालिक है और वे सेवक ! मालिक का कद और ओहदा तो हमेशा बड़ा ही होता है और सेवक का छोटा तो कर दिये सबके सिलेंडर छ: ! भली करेंगे राम !
अब इस समस्या के हल की तरफ विचार किया जाये ! सरकार के अनुसार उसकी सबसे बड़ी समस्या है एल पी जी के सिलेंडर पर दी जाने वाली सब्सीडी के कारण बजट पर पड़ने वाला बोझ ! हकीकत यह है कि कुल सप्लाई का आधा ही आम आदमी के पास पहुँचता है ! बाकी आधे ढाबों, होटलों, कारखानों, हलवाइयों और टैक्सियों, स्कूल वैन्स व बड़े सिलेंडर से निकाल कर छोटे सिलेंडर भरने वाले धंधों में खप जाता है ! मज़े की बात यह है ये सब तथाकथित गैर कानूनी रूप से गैस का इस्तेमाल करने वाले लोग एल पी जी को ब्लैक में ही खरीदते हैं ! यानी कि यदि सरकार खुद ब्लैक कर रही होती तो यह धन उसके घाटे की पूरी भरपाई कर देता ! लेकिन यह धन फिलहाल बिचौलियों की जेबों में जाता है ! बिजिनैस सेन्स कहता है कि दो किलो और दस किलो के सिलेंडर की एक नयी सप्लाई लाइन चालू की जाये और कैश एंड कैरी की तर्ज़ पर खुले आम मँहगी दरों पर गैस को बेचा जाये ! उसके ग्राहक वे ही लोग होंगे जो आज भी ब्लैक में सिलेंडर खरीदते  हैं !   
इसी तरह का प्रयोग दिल्ली में दूध की सप्लाई पर हुआ था ! सरकारी डेयरी से दूध लेना हो तो चार पैकिट्स माँगने पर तीन ही मिलते थे ! यानी कि पच्चीस प्रतिशत सप्लाई कम होती थी ! लेकिन वही दूध के पैकिट ब्लैक में अधिक मूल्य पर जितने चाहो उतने मिल जाते थे ! इस समस्या का यह हल निकाला गया कि दूध की एक मँहगी सरकारी सप्लाई व्यवस्था शुरू की गयी जिसे मदर डेयरी कहा जाता है ! यहाँ मँहगा दूध खुले आम जितना चाहो उतना मिलना शुरू हुआ ! जो लोग पहले ब्लैक में मँहगा दूध खरीदते थे वे अब मदर डेयरी का दूध बिना अपराध बोध के खरीदने लगे ! ब्लैक का पैसा अब सरकारी खजाने में जाने लगा ! जनता भी खुश सरकार भी खुश ! यही पॉलिसी गैस सिलेंडरों के साथ भी निश्चित रूप से कामयाब होगी ! लेकिन इस ओर तवज्जो देने की फुर्सत किसे है !  इस समय तो नेताओं का सारा ध्यान जोड़ तोड़ कर सरकार को गिरने से बचाने में और मौके का फ़ायदा उठा अपनी गोट फिट करने में लगा हुआ है ! 



साधना वैद  

16 comments :

  1. सरकार को किसी की चिंता हो तब तो यह सब ध्यान लगाए. जैसे आपने कहा उसके पास तो बहुत सारे और काम करने को पड़े है. नए घोटालों के लिये राह तैयार करनी है. फिर यह सब होना अवश्यम्भावी है. दूसरी बात यह कि जिन के नाम ऊपर दिए गए हैं उन्हें फिर भी जितने वह चाहें सिलिंडर मिलते ही रहेंगे वह भी पूरे भरे हुए.

    ReplyDelete
  2. अरे साधना जी आप भी कहाँ का विश्लेषण करने लगी? अभी उस दिन माननीय प्रधान मंत्री जी कह रहे थे कि हम लोग ६ सिलेंडर से अधिक नहीं प्रयोग करते हें आम आदमी के लिए ६ ही बहुत हें. हम वी आई पी तो हें नहीं कि जो हमें जरूरत हो. फिर आपके पास कितना पैसा है? क्या हम लोग १०० या इससे अधिक सिलेंडर लेने की औकात रखते हें. हम डाल रोटी खाने वाले लोग इतने बहुत है . वे मुफ्त का पैसा लेने वाले ५६ भोग खाते है तो उन्हें तो इतने सिलेंडर लगेंगे ही. फिर ऐसा बड़े लोगों के यहाँ धर्मशाला खुली रहती है चाहे जो जाए और खाना खाए फिर ऐसी धर्मार्थ सेवा के इए सरकार उन्हें ज्यादा देगी ही.

    ReplyDelete
  3. आदरणीया मौसीजी ,सादर वन्दे,
    सर्वप्रथम आपको बधाई देती हूँ की शानदार विश्लेषण किया है आपने |
    जनता का,जनता के द्वारा,पर जनता के लिए नहीं यही विडम्बना है भारतीय प्रजातंत्र की |

    ReplyDelete
  4. या इलाही ये माज़रा क्या है !!!

    ReplyDelete
  5. क्या खूब विश्लेषण किया है आपने |बहुत सही ..

    ReplyDelete
  6. मैं तो सिलेंडरों की गिनती देखकर यही सोच रही हूँ कि आखिर वो पकाते क्या हैं ? :)

    ReplyDelete
  7. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
  8. जैसे पेट्रोल की कीमत बढ़ जाने के बाद भी उसके इस्तमाल में कोइ कमीं नहीं आई वैसे ही खाना बनाने के लिए इधन का कोइ विकल्प तो है नहीं इससे भी तालमेल हो ही जाएगा महगाई का प्रभाव किस चीज पर नहीं है ?पहले आम आदमीं दाल दलिए से काम चला लेता था अब वह भी सपने की बात हो गयी है |गेस का कम उपयोग ही एक विकल्प नजर आ रहा है कि आदीन आदमीं की तरह सभी वस्तुएँ कच्ची खाएं |खैर लेख अच्छा है |
    आशा

    ReplyDelete
  9. साधना जी,

    गैस सिलेंडर पहुँचाने वाले 'श्रमिक' से जब मैंने पूछा 'आपको एक सिलेंडर पर अब कितना लाभ मिलता है?, एजेंसी आपको प्रति-सिलेंडर कितना कमीशन देती है?' उसने बताया कि 'कुछ नहीं देती'. मैंने फिर पूछा - 'आपको लाभ किस तरह होता है?' उसने कहा - 'अन्दर की बात है' मतलब 'बताना मना है'.......... फिर भी उसने बता दिया ... 'सच कहूँ भाईसाहब, हमें हर दस सिलेंडर पर २ सिलेंडर ब्लेक करने को मिल जाते हैं.' मतलब अब 'ब्लेक-करने की' एजेंसी की तरफ से ही परमीशन है. मतलब इसमें एजेंसी को भी लाभ है और 'डिलीवर मेन' को भी लाभ है... बस उपभोक्ता को ही परेशानी और नुकसान है. एजेंसी अपना 'कमीशन' वाला पैसा बचा लेती है. और 'डिलीवर मेन' प्रति सिलेंडर पर १०० से १५० रुपये कमा लेता है. एक दिन में यदि वो ३० सिलेंडर डिलीवर करता है तो सीधा-सा अर्थ है वह ६०० से ९०० रुपये कमाता है.

    आपने जो बताया कि बुकिंग कराने के १० से १२ दिन में गैस' सिलेंडर आता है... उसकी हकीकत यही है कि एजेंसी इस इंतज़ार में रहती है कि 'कब' उपभोक्ता परेशान होकर दूसरा-तीसरा सिलेंडर बुक कराये और वे पहले बुक कराये सिलेंडर को 'ब्लेक' के लिये डिलीवर मेन को दे सकें. कभी-कभी उपभोक्ता इसकी शिकायत यदि एजेंसी को करता है कि 'डिलीवर मेन' उसके सिलेंडर को 'ब्लेक' कर देता है और तो एजेंसी वाले पूरा ड्रामा करते हैं कि 'उसकी खबर लेंगे' और 'उसे हटाकर दूसरे से डिलीवर कारयेंगे.' ............ मैं इस हकीकत को जान गया हूँ और भुक्तभोगी भी हूँ. पूरे साल में मैं चार सिलेंडर प्रयोग में लाता हूँ लेकिन इससे डबल बार बुक कराता हूँ.

    ReplyDelete
  10. दूसरी बात आपने 'मदर डेयरी' के संबंध में जो बतायी... उस जानकारी में कुछ और इजाफा किये देता हूँ...

    दिल्ली से लगे हुए 'गाजीपुर के डेयरी फ़ार्म' में कई ऐसे हैं जिनका दूध मदर डेयरी को सप्लायी होता है...

    पिछले वर्ष मेरे बड़े भाईसाहब अपने बच्चों के लिये गाय के शुद्ध दूध की तलाश में वहाँ जाते रहे थे ...वहीं एक दूधिया ऐसा था जिसका प्रतिदिन २ केन दूध मदर डेयरी को जाता था वह अपने डायरेक्ट ग्राहकों के लिये तो सही था लेकिन 'इनडायरेक्ट' ग्राहकों के लिये सही नहीं ... वह यूरिया आदि के प्रयोग से नकली दूध बनाकर 'मदर डेयरी' में सप्लायी कर आता था.... और मिलीभगत से उसके दूध के सेम्पल को पास भी कर दिया जाता था... उनका मानना था कि हज़ारों लीटर दूध में यूरिया वाले घोल का पता नहीं पड़ता..... शायद वह क्रम अभी भी जारी हो... तब से हमने 'मदर डेयरी' का दूध पीना छोड़ दिया है... लेकिन कभी-कबाह खरीदते हैं भी तो ये सोच लेते हैं कि 'इस थैली में मिलावट नहीं होगी' मतलब जानकार बूझकर अनजान बन जाते हैं.' इसी तरह की लापरवाही का नतीजा है कि मिलावटखोरों की चांदी है और हौंसले बुलंद हैं.'

    ReplyDelete
  11. कितना गहन विश्‍लेषण किया है आपने ... आपकी लेखन एवं सोच को सादर नमन

    ReplyDelete
  12. गैस की सप्लाई और किल्लत दोनों पर गहन दृष्टि ने इसे विस्तार से समझाया !

    ReplyDelete
  13. deri k liye kshama chaahti hun.

    samasya k hal k liye bahut acchha sujhaav diya hai.

    dukhi aur hairan hun gas supply ke aankde dekh kar.

    aapke lekh ki sahayata se in aankdo ki dusron ko bhi jankari de payi.

    afsos hota hai. ye to vahi baat ho gayi andha baante revri bar bar de apno ko .

    ReplyDelete