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Tuesday, March 12, 2013

इक शमा रूहे रौशन जो जलती रही



 















इक शमा रूहे रौशन जो जलती रही ,
हर घड़ी याद तेरी पिघलती रही !

दर्द बढ़ता रहा, अश्क बहते रहे ,
हिज़्र की आँख से मोम ढलती रही !

हर एक फूल गुलशन का जलता रहा ,
हर कली शाख पर ही सुलगती रही !

न ख़्वाबों खयालों का था सिलसिला ,
मैं बिखरे पलों में सिमटती रही !

न था हमसफ़र ना कोई कारवां ,
यूँ ही बेनाम राहों पे चलती रही !

भूल से बाँध ली मुट्ठियों में खुशी
रेत सी उँगलियों से फिसलती रही !

तू दरिया की माफिक उमड़ता रहा ,
मैं लहरों से दामन को भरती रही !

तू फलक के नज़ारों में गुम था कहीं ,
मैं शब भर सितारों को गिनती रही ! 

कि ज़मीं से फलक तक का ये फासला ,
मैं सदियों से चढ़ती उतरती रही !


साधना वैद

17 comments :

  1. कि ज़मीं से फलक तक का ये फासला ,
    मैं सदियों से चढ़ती उतरती रही !
    अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...
    आभार

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  2. न ख़्वाबों खयालों का था सिलसिला ,
    मैं बिखरे पलों में सिमटती रही !

    बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।

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  3. तू दरिया की माफिक उमड़ता रहा ,
    मैं लहरों से दामन को भरती रही !...waah

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  4. भूल से बाँध ली मुट्ठियों में खुशी
    रेत सी उँगलियों से फिसलती रही
    कि ज़मीं से फलक तक का ये फासला ,
    मैं सदियों से चढ़ती उतरती रही ....
    उम्दा अभिव्यक्ति ......
    हिम्मत-हौसले ना होते , बिखर ही जाते .....
    सादर !

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  5. भूल से बाँध ली मुट्ठियों में खुशी
    रेत सी उँगलियों से फिसलती रही !

    बहुत बढ़िया ,,, सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति

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  6. लाजवाब...लाजवाब...
    बहुत ही बेहतरीन
    वाह...
    :-)

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  7. तू फलक के नज़ारों में गुम था कहीं ,
    मैं शब भर सितारों को गिनती रही !wah....lazabab.

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  8. गहरेभाव लिए रचना |सुन्दर शब्द चयन |
    आशा

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  9. भूल से बाँध ली मुट्ठियों में खुशी
    रेत सी उँगलियों से फिसलती रही ..

    ये तो एक सच है इस नश्वर जीवन का ... खुशी ढलक ही जाती है एक दिन ... दुःख के बादल भी आते हैं जीवन में ...
    हर शेर गहरा भाव लिए है ...

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  10. दिनांक 14/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. कि ज़मीं से फलक तक का ये फासला ,
    मैं सदियों से चढ़ती उतरती रही !
    लाज़वाब रचना...हर शेर खास है... बहुत - बहुत आभार

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  12. भूल से बाँध ली मुट्ठियों में खुशी
    रेत सी उँगलियों से फिसलती रही !

    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  13. भूल से बाँध ली मुट्ठियों में खुशी
    रेत सी उँगलियों से फिसलती रही ......

    http://pankajkrsah.blogspot.com

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  14. तू दरिया की माफिक उमड़ता रहा ,
    मैं लहरों से दामन को भरती रही !

    तू फलक के नज़ारों में गुम था कहीं ,
    मैं शब भर सितारों को गिनती रही
    बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल,

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  15. तू दरिया की माफिक उमड़ता रहा ,
    मैं लहरों से दामन को भरती रही !

    बेहतरीन गज़ल...

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