अपने छोटे से हृदयालय की 
नन्ही सी खिड़की से बाहर 
सुदूर सपनों के 
विस्तीर्ण आकाश में 
दमकते महत्वाकांक्षा के 
प्रखर सूरज की 
उजली सुनहरी 
उम्मीदों की किरणों को 
अपनी नन्ही सी
उँगलियों से लपेट कर 
मैंने विश्वास का 
एक छोटा सा गोला 
बना लिया है माँ 
जिससे मैं संसार में 
आने के बाद अपनी 
मेहनत और लगन की 
सलाइयों पर 
अपने नवीन विचारों 
और ख्यालों से ढेर सारे 
अभिनव, अनुपम और 
बहुत-बहुत-बहुत सुन्दर 
वस्त्र बुनना चाहती हूँ 
तुम्हारे लिये, अपने लिये, 
और सभी के लिये !
बस जो केवल तुम मुझे 
इस संसार में आने का 
अवसर दे दो माँ ! 
अन्य घरों की कन्याओं को
साल में बारम्बार  
पूजने वाली मेरी माँ 
तुम अपने शरीर के 
इस अंश के साथ तो 
कोई अन्याय नहीं 
होने दोगी ना माँ ?
मुझमें भी तो 
उसी देवी का वास है ! 
है ना माँ ? 
साधना वैद   

 
 
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