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Friday, October 14, 2016

खाली कमरा



त्यौहारों का मौसम है
घर के दरो दीवार
साफ़ करके चमकाने का वक्त है !
कहीं कोई निशान बाकी न रह जाये
कहीं कोई धब्बा नज़र न आये
कुछ भी पुराना धुराना
बदसूरत दिखाई न दे !
सोचती हूँ बिलकुल इसी तरह
आज मैं अपने अंतर्मन की
दीवारों को भी खरोंच-खरोंच कर
एकदम से नये रंग में रंग दूँ !
उतार फेंकूँ उन सारी तस्वीरों को
जिनके अब कोई भी अर्थ
बाकी नहीं रह गए हैं
मेरे जीवन में
धो डालूँ उन सारी यादों को
जो जीवन की चूनर पर
पहले कभी सतरंगी फूलों सी
जगमगाया करती थीं
लेकिन अब बदनुमाँ दाग़ सी
उस चूनर पर सारे में चिपकी
आँखों में चुभती हैं !
शायद इसलिए भी कि
कोई रिश्ता तभी तक
फलता फूलता और महकता है
जब तक ताज़ी हवा के
आने जाने के लिए
रास्ता बना रहता है !
अपने अंतर्मन के कक्ष से
इन अवांछित रिश्तों की
निर्जीव यादों को हटा कर
मैं मुक्ति का लोबान
जला कर चिर शान्ति के लिए
यज्ञ करना चाहती हूँ !
मैं आज नये सिरे से
दीवाली का पर्व
मनाना चाहती हूँ !


साधना वैद

   चित्र – गूगल से साभार  

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