सीला सावन
तृषित तन मन
दूर सजन
मुग्ध वसुधा
उल्लसित गगन
सौंधी पवन
गाते विहग
सुरभित सुमन
झूमें मगन
व्याकुल बूँदें
देती हैं आमंत्रण
आओ सजन
पुकारें तुम्हें
बिखर धरा पर
नष्ट हो जायेंं
बुलायें तुम्हें
वार दें तन मन
खुद सो जायें
आया सावन
सुन कर पुकार
धरा मुस्काई
गोटे के फूल
चूनर में अपनी
टाँँक ले आई
हुआ अंधेरा
कड़कती बिजली
डरपे हिया
बरसी बूँदें
गरजते बादल
तड़पे जिया
रीता जीवन
रीता उर अंतर
आ जाओ पिया
भर के सुख
सूने मधुबन में
ना जाओ पिया
साधना वैद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवारीय विशेषांक १५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...