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Tuesday, July 20, 2021

मत कुरेदो घाव मन के


 

मत कुरेदो घाव मन के

फिर वही शिकवे गिले और चाँदमारी

हर समय ज़िल्लत सहें किस्मत हमारी  

अब न बाकी ताब है जर्जर हृदय में

कह नहीं पायेंगे शब कैसे गुज़ारी !

बस तुम्हें तो दोष देना सोहता है 

भूल कर भी फ़िक्र कब की है हमारी  

हम अगर कहने पे कुछ जो आ गए तो

खामखाँ जग में हँसी होगी तुम्हारी !

इसलिए तुम मत कुरेदो घाव मन के

दर्द सहना बन चुकी आदत हमारी

तुम रहो खुशहाल अपनी ज़िंदगी में

रंजो गम से दोस्ती है अब हमारी !



चित्र - गूगल से साभार  

साधना वैद  

14 comments :

  1. बहुत ही अच्छी शायरी की है आपने साधना जी। आपने अपने परिचय में न्यायप्रिय होने की बात कही है। इस ज़माने में किसी (सच्चे अर्थों में) न्यायप्रिय व्यक्ति का मिलना ही दुर्लभ है। ऐसे में आपकी न्यायप्रियता सत्य ही एक बड़ी उपलब्धि है, विरला गुण है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी ! न्यायप्रियता का गुण मुझे विरासत में मिला है ! मेरे पिताजी अत्यधिक अनुशासन प्रिय एवं कड़क न्यायाधीश के रूप में जाने जाते थे ! इसलिए न्यायप्रियता का यह गुण मेरे रक्त में सतत प्रवाहित है ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
    'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शांतनु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  4. सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. हार्दिक धन्यवाद भारती जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. भूल कर भी फ़िक्र कब की है हमारी
    हम अगर कहने पे कुछ जो आ गए तो
    खामखाँ जग में हँसी होगी तुम्हारी !
    इसलिए तुम मत कुरेदो घाव मन के
    दर्द सहना बन चुकी आदत हमारी
    तुम रहो खुशहाल अपनी ज़िंदगी में
    रंजो गम से दोस्ती है अब हमारी !
    अत्यंत मार्मिक सृजन मैम!

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    1. आपको अच्छा लगा मेरा लिखना सार्थक हुआ ! हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी ! स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर !

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  7. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  8. अब हमें तो आदत हो गयी है ,हमारी फिक्र छोड़ो । अपने में खुश रहो ।
    मन के भावों को सुगढ़ता से सहेजा है ....

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