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Monday, February 21, 2022

दोष किसका है

 


चुनाव का मौसम चल रहा है ! बड़े दुख की बात है कि मतदान के लिए लोगों को ‘जगाने’ के सारे भागीरथ प्रयत्न विफल हो गये । लेकिन उससे भी बडे दुख की बात यह है कि जो ‘जाग’ गये थे उनको हमारे अकर्मण्य तंत्र की खोखली कार्यप्रणाली ने दोबारा ‘सोने’ के लिये मजबूर कर दिया ।

आपको अभी इसी दस फरवरी का अपना कटु संस्मरण सुनाना चाहती हूँ ! पता नहीं क्यों और कैसे मेरा नाम मतदाता सूची में से अकारण ही विलुप्त हो गया है ! इसका पहली बार पता हमें तब चला जब २०१९ में लोकसभा के चुनाव हुए ! हमारे घर पर हमारे परिवार के सभी सदस्यों के नाम की पर्ची आई लेकिन मेरे नाम और नंबर की पर्ची नहीं आई ! हम इसे मानवीय भूल समझ कर निश्चित दिन अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्र पर पहुँच गए ! लेकिन हमें पर्ची के बिना वोट नहीं डालने दिया गया ! हम जनता की मदद के लिए बैठे हुए उन अधिकारियों के पास गए जिनके पास कई प्रकार की मतदाता सूचियाँ उपलब्ध थीं ! मई माह की कड़ी धूप में झुलसते हुए हम उन सूचियों में अपना नाम और अपनी सूरत तलाशते रहे लेकिन हमें सफलता नहीं मिली ! हमारी हताशा बढ़ती जा रही थी और उस पर आगरा की दोपहरी का प्रखर सूरज हमें और जलाए जा रहा था ! हमारे पतिदेव हमें समझाते हुए बोले, “कब तक यहाँ इतनी विकट धूप और गर्मी में खड़ी रहोगी चलो घर चलते हैं अगली बार अपना वोट देना !” लेकिन उस समय हमें कोई तर्क कोई सुझाव समझ में नहीं आ रहा था ! आगे क्या करना है हम सोच चुके थे ! बड़ी तसल्ली से हमने पतिदेव से कहा, “आप अपना वोट डाल चुके हैं आप चाहें तो घर चले जाइए ! हम अपना वोट डाल कर ही आयेंगे ! पिक्चर तो अभी शुरू हुई है !” श्रीमान जी हमारे तेवर देख कर चुप हो गए लेकिन वे भी हमारे साथ ही मोर्चे पर डटे रहे घर नहीं गए ! हमने अपने नम्बर वाले कक्ष में जाकर फिर से ऐलान किया कि हमारे नाम की पर्ची नहीं है लेकिन आप हमें हमारे मतदान करने के बुनियादी अधिकार से वंचित नहीं कर सकते हम अपना वोट देकर ही जायेंगे ! पोलिंग ऑफीसर ने बड़ा विरोध किया बोला यह हमारे अधिकार में नहीं है ! बिना पर्ची के हम आपको वोट नहीं डालने दे सकते ! लेकिन हम भी अड़ गए, “आपके अधिकार में नहीं है तो आपसे ऊपर कौन है जिसके अधिकार में है उसका नाम बताइये उसका टेलीफोन नंबर बताइये हम उससे बात करेंगे लेकिन अपना वोट बिना दिए नहीं जायेंगे ! आप यह भी नहीं करेंगे तो हम पार्टी कमान को फोन करेंगे या पी एम ओ ऑफिस में फोन करेंगे ! मीडिया को बुलायेंगे कि इस बूथ पर धाँधली हो रही है !” हमारे तेवर देख कर अधिकारी कुछ ठन्डे पड़े और आखिर में बड़ी हीलो हुज्जत के बाद उन्होंने हमें वोट डालने की इजाज़त दे दी और हम अपना वोट डाल कर आ गए ! लेकिन मन बड़ा कसैला हो गया ! किसे दोषी माना जाए इन सभी अनियमितताओं के लिए ! और जो कम शिक्षित हैं या हमारी तरह जुझारू नहीं हैं उन्हें किसकी गलती का दंड भुगतना पड़ रहा है कि वे तो अपने मताधिकार का प्रयोग कर ही नहीं पा रहे लेकिन बाद में उनके ही नाम से कितने फर्जी वोट पड़ रहे होंगे इसका हिसाब किसके पास होगा !
इस साल फिर चुनाव आने वाले थे ! जिस दिन से चुनाव की घोषणा हुई थी मतदाता सूचियों के सुधारे जाने और उनका नवीनीकरण किये जाने का एक ‘वृहद कार्यक्रम’ चलाया गया । मतदाता सूची में संशोधन के लिए कई बार कैम्प लगे कि जो नए मतदाता वोट देने के अधिकारी हो गए हैं उनका नाम वोटर्स लिस्ट में जोड़ दिया जाए और जिनका भूल वश मिट गया है या छूट गया है उनका भी जुड़ जाए ! नवम्बर माह में हमने ऐसे ही एक कैम्प में जाकर फिर से अपना फॉर्म भरा ! घर के दोबारा चक्कर लगा कर फोटो लेकर आये ! सारी औपचारिकताए पूरी कीं ! अधिकारियों ने हमें आश्वस्त किया कि आपका नाम मतदाता सूची में निश्चित रूप से जुड़ जाएगा और आपके पास सरकार की तरफ से इसकी सूचना भी जल्दी ही आ जायेगी !
प्रदेश के चुनाव का समय आ गया ! मतदान का दिन भी आ गया लेकिन न तो हमारे पास सरकार की तरफ से कोई सूचना ही आई न ही पर्ची आई ! हमें अंदेशा हो गया था कि इस बार भी फिर वही कहानी दोहराई जायेगी ! इसलिए हम पूरी तरह से चाक चौबस्त होकर मतदान केंद्र पर गए ! पासपोर्ट, पैन कार्ड, वोटर्स कार्ड, आधार कार्ड तो ले ही गए थे साथ ही ऐसी सूरत में किस धारा के तहत चैलेन्ज वोट या टेंडर वोट का अधिकार माँगा जा सकता है हम इसका भी प्रिंट आउट निकाल कर अपने साथ ले गए थे क्योंकि सरकारी तंत्र पर हमें ज़रा सा भी भरोसा नहीं था कि हमारा नाम जुड़ गया होगा ! और वही हुआ ! इस बार भी लोक सभा चुनाव के समय मंचित हुआ पूरा नाटक उन्हीं दृश्यों और संवादों के साथ दोहराया गया ! इस बार हमें अपना स्वर कुछ और बुलंद करना पडा क्योंकि अधिकारी कुछ अधिक अकडू थे ! लेकिन अंतत: हम अपने मताधिकार का प्रयोग करके ही आये !
इतनी कवायद के बाद यह तो तय है कि हमारे सरकारी ऑफिसों की कार्यकुशलता की जो बानगी है उसके कारण हालात में रत्ती भर भी कोई सुधार आयेगा इसका हमें अब भरोसा नहीं रह गया है ! इसलिए ऐसी समस्याएँ पैदा न हों उसके लिए कुछ प्रभावी कदम उठाने चाहिये ! मतदान केन्द्रों पर एक ऐसे निष्पक्ष अधिकारी को नियुक्त करना चाहिये जो स्वविवेक से यह निर्णय ले सके कि इस निकम्मी व्यवस्था के शिकार ऐसे लोग किस तरह से अपने मताधिकार का प्रयोग करें और उन्हें अपने बुनियादी अधिकार से वंचित रहने का दंश ना झेलना पड़े । भारत जैसे विशाल देश में जहाँ एक बड़ी संख्या में अशिक्षित मतदाता हैं शासन तंत्र को उनका छोटे बच्चों की तरह ध्यान रखने की ज़रूरत है । छिद्रान्वेषण कर उनको वोट देने से रोकने से काम नहीं चलेगा ज़रूरत इस बात की है कि तत्काल वहीं के वहीं उन कमियों को दूर करने के विकल्प तलाशे जायें और उन्हें भी नई सरकार के निर्माण में अपना अनमोल योगदान देने के गौरव को अनुभव करने का अवसर मिल पाए ! चुनाव का अभी भी अंतिम चरण बाकी है । शायद चुनाव आयोग इस ओर ध्यान देगा ।



साधना वैद
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16 comments :

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. सरकारी आयोग एवं चुनाव व्यवस्था की पोल खोलता बहुत ही सटीक एवं लाजवाब संस्मरण।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-2-22) को "प्यार मैं ही, मैं करूं"(चर्चा अंक 4348)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. लोकतंत्र की पोल खोलता प्रभावशाली लेखन, अगले चुनाव में वोट देने के लिए अभी से लग जाइए, शायद आपका नाम शामिल हो जाए

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! आपके सुझाव पर ही अमल करने का मेरा भी इरादा है ! अब इस अकर्मण्य व्यवस्था पर ज़रा भी विश्वास नहीं रहा ! अभी से कमर कस कर काम करेंगे तो शायद अगले चुनाव तक तीसरा नेत्र खोलने की आवश्यकता न पड़े ! आपका बहुत बहुत आभार !

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  5. प्रभावी आलेख
    सादर

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  6. वाह! बहुत ही शानदार,लाज़वाब,व बेहतरीन आलेख!
    आपने अपने वोट के लिए लिए जो कदम उठाएं वो काबिले तारीफ़ है!एक ओर ऐसे लोग हैं जो वोट डालने जाना ही नहीं चाहते एक आप हैं कि अपने वोट के लिए इतना कुछ किया!

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    1. जी ! बहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी ! कुछ लोगों का सुस्त रवैया, कुछ उलझी हुई व्यवस्था की पेचीदगियाँ कुछ सरकारी तंत्र की अकर्मण्यता ने मतदान के प्रति उदासीनता का वातावरण बना दिया है और लोगों ने तटस्थता ओढ़ ली है ! ऐसा नहीं होना चाहिए इसीलिये यह आलेख लिखा है ! मेरी पोती इस बार बहुत खुश और उत्साहित थी कि इस बार वह पहली बार अपना वोट देगी लेकिन सारी कवायद करने के बाद भी उसका नाम वोटर्स लिस्ट में नहीं जुड़ पाया ! उसे हताशा हुई ! अगले चुनाव तक यह उत्साह कायम रहेगा या नहीं कहना मुश्किल है ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद महाजन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  8. सार्थक लेख
    हमारी तंत्र व्यवस्था पर करारी चोट

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    1. दुर्भाग्य से यह अकर्मण्यता हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे कड़वा सच है ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !

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  9. सुन्दर और सार्थक लेख |पढने में आनंद आ गया |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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