कल रात मानव तस्करों का एक गिरोह
बच्चों को अगवा कर ले जाते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया ! शहर के समाचार पत्र इस
सनसनीखेज खबर से अटे पड़े थे ! कई टी. वी. चैनल्स के संवाददाता अपने चैनल पर पहली
ब्रेकिंग न्यूज़ देने की होड़ में उस थाने के सामने अपने अपने कैमरे और माइक सम्हाले
हुए खड़े थे ! थाने के सामने ही चावल का एक बोरा और तरा ऊपर के अपने पाँच बच्चों के
साथ सुमरिया भी हैरान परेशान बैठी थी जिसकी तीन साल की बेटी को तस्करों के पास से
छुडा कर उसे लौटा दिया गया था !
इंस्पेक्टर के संकेत पर लोकल चैनल की संवाददाता नीरजा अपने कैमरामैन के साथ सुमरिया
के पास लपकती हुई पहुँची !
“यह आपकी बेटी है जिसे इन दरिंदों से पुलिस ने छुड़ाया है ? आप बतायेंगी इसे कौन कब कैसे अगवा कर के ले गया था ? आपको कब पता चला कि आपकी बेटी गायब है ?” मन ही मन चटपटी कहानी का ताना बाना बुनते हुए नीरजा ने माइक सुमरिया के मुँह से लगा दिया ! सारे बच्चे कौतुहल से नीरजा और कैमरामैन की ओर देखने लगे जो हर एंगिल से उनकी तस्वीरें लेने में लगा हुआ था !
“अगवा ? कौनों अगवा नहीं किये हमारी लड़की को ! हम तो खुदई बेचे रहे उसे जे एक बोरी चामल के बदले में ! अब लड़की को लौटा दिए हैं तो का चामल भी वापिस देन के पड़ी हैं ? अब का हुई है ?” सुमरिया का भय और दुश्चिंता आँखों की राह बह निकले ! चौंकने की बारी अब नीरजा की थी !
“क्या ? आपने खुद अपनी लड़की को बेचा था एक बोरी चावल के बदले ? लेकिन क्यों ?”
“तो का करती ? दारू पी पीकर और पाँच पाँच बच्चा को छोड़ कर इनका बाप तो ख़तम हो गया ! मैं कहाँ से खबाती इन्हें ! सो एक जे बीच वाली लड़की बेच दई ! बड़ी बाली के दो बोरी दे रए हते लेकिन फिर उसे नईं दई !”
“क्यों ? उसे क्यों नहीं दिया ? और ये दो लडके भी तो हैं और यह सबसे छोटी वाली भी है ! आपने इसे ही क्यों दिया ?” नीरजा की जिज्ञासा बढ़ गयी थी !
“लड़का से तो बंस चलत है ! छोटी बाली अभी मेरो ही दूध पियत है ! इसे दे देती तो जे तो बैसई मर जाती !” सुमरिया ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे आँचल से लगा लिया ! “बड़ी वाली को दुई चार महीना में चौका बासन को काम मिल जई हैं तो कछु दाना पानी आ जई है घर में ! जेई थी जिसको कछु काम न था घर में !”
साधना वैद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteआँखें भींग गई
ReplyDeleteसादर नमन
आपके मन को छू सकी मेरी लघुकथा मेरी श्रम सार्थक हुआ दिग्विजय जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमर्मस्पर्शी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteमर्म को कँपाने वाली कहानी।
ReplyDeleteस्वागत है विश्वमोहन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमन छूनेवाली कहानी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteओह! हृदय को विदीर्ण कर गई आपकी रचना साधना जी। कथित संपन्न लोग इन साधन विहीन लोगों का दर्द कहाँ जान या समझ पाते हैं,जहाँ एक जान की कीमत एक बोरी चावल-भर है।एक माँ की विवशता कहूं या स्वार्थ क्या तर्क दिया बच्ची के जीवन का 🙏🙏🙁
ReplyDeleteएक ग़रीब माँ के मन की व्यथा को आपने समझा आभारी हूँ आपकी रेणु जी ! ग़रीबी एक माँ को भी कितना हिसाबी बना देती है यह उसकी करुण गाथा है ! आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमार्मिक कहानी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति भाई जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबेहद सुन्दर हृदय स्पर्शी सृजन:)
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संजय ! बहुत बहुत आभार आपका !
DeleteNice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
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Thanks Payal.
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