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Friday, September 23, 2022

श्राद्ध कर्म

 


 

शेष जीवन

पंचतत्व विलीन

हो चुकी काया

 

श्राद्ध तर्पण

खिलाना ब्रह्मभोज

सब बेमानी

 

व्यर्थ रूढ़ियाँ

खर्चीला कर्मकांड

मात्र दिखावा

 

श्रद्धा मन में

आदर हृदय में

वही सत्य है

 

शेष असत्य

बचें आडम्बर से

धारें धर्म को


कर लो सेवा

जीते जी बुजुर्गों की

मिलेगा पुण्य

 

होंगे संतुष्ट

देंगे तुम्हें आशीष

सच्चे मन से

 

किसने देखा

क्या क्या किया तुमने

मरणोपरांत

 

सुख दो उन्हें

जीवित रहते ही

पा लो दुआएं

 

 

साधना वैद


13 comments :

  1. सामयिक चिंतन को प्रेरित करती अभिव्यक्ति।

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    1. हार्दिक धन्यवाद दिनकर जी ! बहुत बहुत आभार !

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !

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  4. भाव पूर्ण हाइकू |

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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !

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  5. समसामयिक रचना। जो पृत सेवा जीते जी कर ली,वही पुण्य है। किसी ने सत्य कहा है कि जीते जी जा नहीं सकता और मरा हुआ बता नहीं सकता.... फिर स्वर्ग नर्क की खोज किसने की?

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    1. सार्थक चिंतनपरक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद गोदियाल जी ! हार्दिक आभार आपका !

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    1. हार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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