10 मई – स्मोकी फाल्स
रिज़ोर्ट की सुहानी भोर
गुवाहाटी से चेरापूँजी के
लिए चले तो रास्ते में उमियम झील, एलीफैंट फाल्स
और डाइम्प्ड वैली के खूबसूरत नज़ारे देखते देखते कब साँझ उतर आई पता ही नहीं चला !
देर शाम जब हम अपने रिज़ोर्ट स्मोकी फाल्स पर पहुँचे तो अँधेरा घिर आया था ! चारों
तरफ घने ऊदे बादलों से घिरे एक छोटी से पहाड़ी पर स्थित इस रिज़ोर्ट पर आने के बाद
ऐसा लग रहा था जैसे किसी फ़िल्मी लोकेशन पर पहुँच गए हैं ! बादलों के बीच चटक मैरून
रंग की ढलवाँ छतों वाले बेहद खूबसूरत कमरों वाले इस रिजोर्ट की सुन्दरता देखते ही
बनती थी ! यह होटल किसी एक बड़ी सी आधुनिक इमारत में नहीं था ! इसका हर कमरा
स्वतंत्र रूप से खुले आसमान के नीचे बना हुआ था और इन सुन्दर कमरों की खूबसूरती
थके हुए तन मन और आँखों को बहुत ठंडक पहुँचा रही थी ! बस अब जल्दी से फ्रेश होकर
बिस्तर में घुसने की इच्छा हो रही थी !
होटल जितना सुन्दर था यहाँ
खाने की व्यवस्था उतनी ही ढीली ढाली थी ! आर्डर देने के बाद खाना बनाना शुरू करते
थे वो लोग और जो बन कर सामने आता था वह भी बस कामचलाऊ ही होता था ! बिलकुल घर जैसा
माहौल था ! कच्ची उम्र के युवा बच्चे होटल की व्यवस्था देख रहे थे ! और हमारे कुछ
मुखर और कुछ दबंग से ग्रुप को देख कर मुझे तो कुछ घबराये से भी लग रहे थे ! बेसिक
परम आवश्यक सुविधाओं के अलावा उनके पास शायद हमारी किसी भी ज़रुरत को पूरा करने का
इंतजाम नहीं था ! हम जिस भी चीज़ के लिए कहें उनका जवाब ‘न’ ही होता था ! खैर यह तो मज़ाक की बात हो गयी ! रिज़ोर्ट के
आसपास की खूबसूरती और जो नज़ारा हम देख पा रहे थे उसके ऊपर तो ऐसी हज़ारों असुविधाएं
कुर्बान की जा सकती हैं ! और अभी भी अगर हमें दोबारा चेरापूँजी जाने का अवसर मिले
तो हम उसी रिज़ोर्ट में रुकना पसंद करेंगे !
शाम को जल्दी ही खाना खाकर
हम लोग सोने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए ! गुवाहाटी से जब से चले थे पूअर
सिग्नल्स और ब्रोकन कनेक्टीविटी के कारण किसीसे भी ठीक से बात नहीं हो पा रही थी !
लेकिन रिज़ोर्ट में अच्छे सिग्नल्स आ रहे थे ! सोने से पहले बच्चों से बात हो गयी
और सबके साथ दिन भर की रिपोर्ट और कुछ तस्वीरों का आदान प्रदान हो गया कुछ देर
सबसे वीडियो चैट भी हो गयी तो लगा दिन सार्थक हो गया ! रात को भरपूर नींद आई !
सुबह जब खिड़की से बाहर की रोशनी अन्दर आई और चिड़ियों के चहचहाने के स्वर सुनाई
देने लगे तो मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी ! लगा बहुत देर हो गयी है ! रात को ही सबको
ताकीद कर दी गयी थी कि सुबह ठीक साढ़े आठ बजे सब बस में बैठने के लिए तैयार मिलें !
नहा धोकर तैयार भी होना था ! चाय नाश्ता भी सबके साथ बैठ कर डाइनिंग हॉल में करना
था ! बाहर फैले उजाले को देख कर मुझे घबराहट होने लगी कहीं ऐसा न हो कि हमारी वजह
से सबको देर हो जाए और सबको हमारी प्रतीक्षा करनी पड़े ! मैंने जल्दी से चाय का
पानी केतली में डाल कर स्विच ऑन किया और राजन ( मेरे पतिदेव ) को भी जगा दिया !
फोन पर नज़र गयी तो मैं हैरान थी ! उस समय सुबह के सिर्फ साढ़े चार बज रहे थे ! बाहर
इतनी रोशनी हो रही थी जैसी आगरा में सुबह के साढ़े छह सात बजे होती है ! तब हमने इस
बात को समझा कि यह तो भारत का उत्तर पूर्वी इलाका है ! यह उगते सूरज का देश है ! यहाँ
सूर्योदय जल्दी होता है और प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण इस अछूते
हिस्से में तो और भी जल्दी होता है क्योंकि यहाँ उसकी रोशनी को रोकने के लिए
गगनचुम्बी इमारतों के जंगल जो नहीं उगे हुए हैं !
हम लोग जाग तो चुके ही थे !
चाय भी बन गयी थी ! चाय के प्याले हाथ में लिए कमरे का दरवाज़ा खोल हम बाहर निकले तो
बाहर का खूबसूरत नज़ारा देख कर ठगे से रह गए ! आसमान के वक्ष पर सर टिकाए आस पास की
पहाड़ियाँ अलसाई सी सोई हुई थीं ! आदित्य नारायण अपनी सुनहरी रश्मियों से उनके
बालों में उँगली फेर उन्हें जगाने का प्रयास कर रहहे थे और वादी के हर कोने से
पक्षियों की मधुर चहचहाहट में प्रभाती के स्वर मुखरित होकर सम्पूर्ण सृष्टि को जगाने
के लिए ही जैसे गूँज रहे थे ! बगीचे में बहुत ही खूबसूरत ताज़े ताज़े फूल खिले हुए
थे ! रात वादी में घिर आये बादल सुबह के बढ़ते उजास के साथ तिरोहित होते जा रहे थे जैसे
उन्हें भी स्कूल, कॉलेज, कारखाने, ऑफिस, हाट बाज़ार या अपने कार्यस्थल पर समय से
पहुँचने की हड़बड़ाहट हो ! रात को जहाँ बादलों के सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था इस
समय घनी हरियाली से लदी हुई गहरी गहरी घाटियाँ दिखाई दे रही थीं और उनमें कहीं
कहीं माचिस की डिब्बियों जैसे दिखाई देते घरों के छोटे छोटे समूह वहाँ लोगों की
बस्तियों के अस्तित्व की गवाही दे रहे थे ! घने पेड़ों से आच्छादित इन वादियों को
देख कर ‘जुरासिक पार्क’ फिल्म की याद आ गयी !
एक-एक कर हमारे ग्रुप के
सभी लोग बाहर आ चुके थे ! सबके हाथों में चाय की प्यालियाँ थीं और मुख पर अपरिमित
संतोष और आनंद से भरी मुस्कान ! सबके हाथों के मोबाइल फोटो खींचने में व्यस्त थे
और सब ख़ास पोज़ देकर अपनी-अपनी तस्वीरें खिंचवाने में मगन थे !
फोटो सेशन के बाद नाश्ते के
लिए आवश्यक निर्देश देकर सब लोग जल्दी-जल्दी तैयार होने के लिए अपने-अपने कमरों
में चले गए और फिर जल्दी ही नाश्ते के लिए डाइनिंग हॉल में सब समय से आ भी गए ! ऐसा
सुना था कि विश्व में सबसे अधिक बारिश चेरापूँजी में होती है ! हम सब लोग अपने साथ
छाते वगैरह सब लेकर भी गए थे लेकिन न तो नौ तारीख को बारिश मिली न ही आज बारिश के
आसार दिखाई पड़ रहे थे ! मन में कहीं मलाल भी था कि बारिश के लिए विश्व प्रसिद्ध
स्थान में हमने बारिश की हल्की सी फुहार भी नहीं देखी ! हमारे छाते तो खुले ही
नहीं ! और कौन बेवजह बोझा उठाये यह सोच कर हम अपने साथ छाते ले भी नहीं गए ! आसमान
तो बिलकुल खुला था और खूब धूप खिली हुई थी !
बस अब तो घूमने जाने के लिए
बस में बैठना था सो सबने अपना-अपना आसन ग्रहण किया और चेरापूँजी की सर्पीली पहाड़ी
सड़कों पर हमारा काफिला गायत्री मन्त्र और गणपति वन्दना के उद्घोष के साथ चल पड़ा !
हमारे रिजोर्ट से पहला स्थान केवल चार किलोमीटर की दूरी पर था ! जल्दी ही पहुँच गए
! लेकिन उसके बारे में आपको मैं आज नहीं बल्कि अगली पोस्ट में बताउँगी ! बहुत देर
हो चुकी है और पोस्ट भी काफी लम्बी हो चुकी है ! आप भी तो थक गए होंगे ना ! तो
चलिए आप भी विश्राम करिए और मैं भी चलती हूँ अब किचिन में ! अगली पोस्ट में आपसे
फिर मुलाक़ात होगी ! तब तक के लिए मुझे इजाज़त दीजिये ! शुभ रात्रि !
साधना वैद
हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार आपका रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... रोचक यात्रा संस्मरण।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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