सच दीदी, जब भी कोई वृक्ष कटता है, मेरा तो कलेजा मुँह को आ जाता है। अभी दो तीन महीने पहले मेरी बालकनी की लताओं में लाल मुनिया नामक पक्षी ने घरौंदा बनाया था। पक्षी तो उड़ गए, छोटी फुटबाल के आकार का गोल मटोल घोंसला वहीं छोड़कर। अब मुझे लताओं की छँटाई करने में भी डर लगता कि घोंसला ना टूट जाए। आस लगी है कि वे नन्हे पक्षी फिर आएँगे। पता नहीं, इतने बड़े बड़े वृक्षों को काटने / कटवाने की हिम्मत कैसे होती है लोगों को !
आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया मन मोह गयी मीना जी ! सच में यह क्रूर मानव हृदयहीन हो गया है ! प्राकृतिक वनों को उजाड़ कर कोंक्रीट के वन उगाने में लगा है ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार मीना जी !
सच दीदी, जब भी कोई वृक्ष कटता है, मेरा तो कलेजा मुँह को आ जाता है। अभी दो तीन महीने पहले मेरी बालकनी की लताओं में लाल मुनिया नामक पक्षी ने घरौंदा बनाया था। पक्षी तो उड़ गए, छोटी फुटबाल के आकार का गोल मटोल घोंसला वहीं छोड़कर। अब मुझे लताओं की छँटाई करने में भी डर लगता कि घोंसला ना टूट जाए। आस लगी है कि वे नन्हे पक्षी फिर आएँगे।
ReplyDeleteपता नहीं, इतने बड़े बड़े वृक्षों को काटने / कटवाने की हिम्मत कैसे होती है लोगों को !
आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया मन मोह गयी मीना जी ! सच में यह क्रूर मानव हृदयहीन हो गया है ! प्राकृतिक वनों को उजाड़ कर कोंक्रीट के वन उगाने में लगा है ! आपका हृदय से बहुत बहुत आभार मीना जी !
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद तिवारी जी ! आभार आपका !
Deleteवाह. बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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