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Sunday, August 10, 2025

नौकरी करने वाली महिलाओं की समस्याएँ

 




आज की सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था में यह एक बहुत ही ज्वलंत समस्या है ! यह एक निर्मम यथार्थ है कि नौकरी करने वाली कामकाजी महिलाओं पर दोहरी ज़िम्मेदारी होती है और उन्हें घर की जिम्मेदारियों के साथ अपने कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारियों को भी निभाना पड़ता है !

अभी भी हमारे पुरुष प्रधान समाज में घर गृहस्थी के सारे कामों का दायित्व स्त्री पर ही होता है ! घर में खाना बनाना हो, मेहमानों की आवभगत करनी हो, बच्चों की लिखाई पढ़ाई हो या घर परिवार में किसी की बीमारी हारी की समस्या हो ! पतिदेव अपनी ज़िम्मेदारी पैसों की व्यवस्था करना या बाज़ार हाट का थोड़ा बहुत काम कर देने तक ही समझते हैं ! बाकी सारे कामों का दाइत्व स्त्री को ही निभाना पड़ता है ! अगर कहीं चूक हो जाती है तो घर में असंतोष और क्लेश का वातावरण बन जाता है ! जहाँ संयुक्त परिवार अभी भी अस्तित्व में हैं वहाँ परिवार की अन्य महिलाएं कुछ सहायता कर देती हैं लेकिन वह भी अक्सर एहसान की तरह ! जिसकी वजह से अक्सर सम्बन्ध खराब हो जाते हैं !

संपन्न घरों में सहायता के लिए नौकर रख लिए जाते हैं लेकिन अक्सर उन घरों में चोरी इत्यादि के समाचार भी सुनने में आते हैं ! बच्चों की परवरिश पर भी बुरा असर पड़ता है और बच्चे उस प्यार और परवरिश से वंचित रह जाते हैं जो एक माँ उन्हें दे सकती है ! कभी काम से खीझ कर या कभी बच्चों की जिद या असहयोग से चिढ कर नौकर अक्सर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करने लगते हैं ! उनके साथ गाली गलौज की भाषा का प्रयोग करते हैं जिसकी वजह से बच्चे भी गंदी आदतें और गंदी भाषा का प्रयोग करना सीख जाते हैं ! काम के बोझ से त्रस्त माता-पिता भी अपने अपराध बोध की क्षतिपूर्ति के लिए बच्चों की हर जिद पूरी करने का प्रयास करते हैं जिसकी वजह से बच्चे जिद्दी और उद्दंड हो जाते हैं ! नौकरों के हाथ का बना खाना पसंद न आने पर वे बाहर से खाना ऑर्डर करके मँगवाने लगते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है ! बच्चों को न तो अच्छे संस्कार मिलते हैं, न स्वास्थ्यवर्धक भोजन, न ही उचित परवरिश !
रुग्ण मानसिकता वाले परिवारों में कामकाजी महिलाओं के चरित्र पर भी संदेह किया जाता है और ऑफिस के काम में देर हो जानी वजह से घर पर उनके काम का बोझ और अधिक बढ़ा दिया जाता है !
कामकाजी स्त्रियों को भी स्कूल या ऑफिस के लिए समय पर ही निकलना होता है ! जहाँ पुरुष को उनके हाथों में चाय नाश्ता, खाना, कपड़े आदि थमाए जाते हैं वहीं स्त्री को ये सारे काम परिवार के बाकी सदस्यों के लिए भी करना पड़ता है और अपने खुद के लिए भी ! अगर न कर पाए तो उसी दिन सबका मूड खराब हो जाता है !
यह समस्या तो विकट है लेकिन इसका समाधान यही है कि पति व परिवार के अन्य सदस्यों को अपनी सोच को थोड़ा बदलना चाहिए और कामकाजी स्त्री का पूरी तरह से सहयोग करना चाहिए ! आखिर वह अपने परिवार की बेहतरी के लिए ही तो इतनी मेहनत कर रही है ! अभी तक कई घरों में लोगों की यह मानसिकता बनी हुई है कि जो स्त्री नौकरी कर रही है तो वह शौकिया कर रही है ! उसका स्थान परिवार में हमेशा सबसे नीचा ही माना जाता है ! जो कि सर्वथा अनुचित है और गलत है ! खुद स्त्रियाँ भी ऐसा ही सोचती हैं इसीलिये न वो डट कर विरोध ही कर पाती हैं और न ही लोगों की सोच बदल पाती हैं ! अपनी स्वयं की सोच के चलते वे खुद भी पिसती जाती हैं और दोहरी जिम्मेदारियाँ उठा कर थकती भी हैं
, असंतुष्ट भी रहती हैं और अवसादग्रस्त भी हो जाती हैं !
इस समस्या का एक ही समाधान है कि परिवार के लोग स्त्री के साथ सहानुभूति और संवेदना के साथ व्यवहार करें ! उसके काम को भी गंभीरता से लें, घर के कामों में उसकी सहायता और सहयोग करें और उसकी समस्याओं का संज्ञान लेते हुए उसके साथ नरमी से पेश आएं और उसके साथ मीठा व्यवहार करें ! स्त्रियाँ स्वभाव से ही भावुक होती हैं और अगर उनकी उपेक्षा अवहेलना की जाती है तो स्थिति सम्हलने की जगह और बिगड़ जाती है ! यहाँ परिवार के सभी सदस्यों से समझदारी की अपेक्षा की जाती है ! 

साधना वैद  


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