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Sunday, September 14, 2025

खामोश हो गई वो आवाज़

 



रात में किसी भी समय फोन की घंटी बज जाती है और मेरा दिल धड़क उठता है ! घबरा के फोन उठाती हूँ नाम देखती हूँ, आशा जीजी !
“क्या हुआ जीजी, सब ठीक तो है ?”
“हाँ सब ठीक है ! फोन में तेरी फोटो दिखी तो ऐसे ही लगा लिया !”
कुछ शान्ति मिली ! घड़ी देखी रात के दो बज रहे हैं !
“क्या कर रही थी तू?’
“ओफ्फोह जीजी ! रात के दो बज रहे हैं ! ज़ाहिर है इस समय सब सोते ही हैं ! मैं भी सो रही थी ! कुछ काम था ?”
“नहीं तेरी आवाज़ सुनने का मन हो रहा था ! फेसबुक पर तेरी कविता सुनी बहुत अच्छी लगी !”
“अरे तो यह सुबह बता देतीं ! डरा देती हो !”
“अच्छा ! चल सो जा अब !”
अगले दिन रात में साढ़े तीन बजे फिर घंटी बजी ! जीजी के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से फ़िक्र लगी रहती थी ! दौड़ के फोन उठाती हूँ !
“क्या हुआ जीजी ? नींद नहीं आ रही है क्या ? कोई परेशानी है ?”
“नहीं, कुछ हाइकु लिखे थे उन्हें देख लेना !”
“अच्छा ! अब सो जाओ मुझे भी नींद आ रही है !”
“कितनी देर तक सोती है ! अभी सुबह नहीं हुई तेरी !”
“अरे बाबा अभी सिर्फ साढ़े तीन बजे हैं ! आप भी सो जाओ और मुझे भी नींद आ रही है !”
ऐसे ही हफ्ते में तीन चार बार उनके फोन रात बिरात कभी भी आ जाया करते थे ! कभी उनकी मासूमियत पर प्यार आता था, कभी हँसी आती थी, कभी चिंता हो जाती थी ! कविता, हाइकु या आवाज़ सुनने का तो सिर्फ बहाना होता था ! क्या जीजी किसी गहन पीड़ा से गुज़र रही थीं ! कभी अपनी तकलीफ नहीं बताती थीं ! हमेशा उत्साह से लबरेज़, बेहद कर्मठ, बेहद ज़हीन, बेहद प्यार करने वाली मेरी जीजी की आवाज़ १३ सितम्बर की सुबह पाँच बजे हमेशा के लिए खामोश हो गयी ! इंदौर के सुयश अस्पताल में १२ दिन असह्य पीड़ा झेलने के बाद उन्होंने महाप्रस्थान के लिए अपने कदम स्वर्ग की राह पर मोड़ लिए ! नहीं जानती मैं सुकून भरी नींद अब कभी सो भी पाउँगी या नहीं ! लेकिन मुझे झकझोर कर उठाने वाली फोन की घंटी अब कभी नहीं बजेगी !
मेरी माँ समान बड़ी बहन श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपना आवास स्वर्ग की सुन्दर सी कोलोनी में बहुत पहले ही बुक करा लिया था ! काफी समय से बहुत अस्वस्थ चल रही थीं वे ! १३ सितम्बर का बृह्म मुहूर्त उन्होंने गृह प्रवेश के लिए चुना और अपने नए घर में रहने के लिए बड़ी शान्ति के साथ वे चुपचाप निकल गईं ! हमारी परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वे उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें और वहाँ उनके सारे कष्टों का अंत हो जाए ! तुम्हें बहुत याद करेंगे जीजी ! चाहे जब उज्जैन इंदौर के टिकिट बुक कराने की जिद पकड़ लेने की अब सारी वजहें ख़त्म हो गईं ! सच पूछो तो सर से ममता, प्यार और पीहर की छाँव और आश्वस्ति देने वाला आख़िरी पल्लू भी सरक गया ! अब कौन हमारे नाज़ नखरे उठाएगा, कौन लाड़ लड़ायेगा ! आज ऐसा लग रहा है जैसे हम फिर से अनाथ हो गए हैं ! बहुत याद आओगी जीजी ! जहाँ भी रहो सुख से रहना और मम्मी, बाबूजी, दादा, भाभी, जीजाजी सबको हमारा प्रणाम कहना ! सादर नमन और अश्रुपूरित भावभीनी श्रद्धांजलि !


साधना वैद

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