एफ
डी आई उस विदेशी पूँजी को कहते हैं जो इस उम्मीद से किसी देश में लगाई जाती है कि
उस पर उचित लाभ कमाया जा सके ! पर इसमें नया क्या है और इस पर इतना बवाल क्यों उठ
रहा है ! जबसे हमारा देश स्वतंत्र हुआ हम विदेशी पूँजी का हमेशा स्वागत करते रहे
हैं ! पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गाँधी तक और फिर अटलबिहारी बाजपेयी से लेकर
मनमोहन सिंह तक जितने भी नेता विदेश यात्राओं से लौटे उनसे यही जानकारी ली जाती
रही है कि कितनी विदेशी सहायता मिली ? पहले तो यह पूँजी क़र्ज़ के रूप में मिलती थी और
अब जब भारत की क्रय शक्ति कुछ बेहतर हो गयी है यह पूँजी भारत में व्यापार करके धन
कमाने के लिये भागीदारी के रूप में मिलने लगी है ! निवेशक इसीलिये प्रोजेक्ट में 51% की हिस्सेदारी भी माँगता है ताकि कंट्रोल उसका बना रहे !
विदेशी
निवेशक ऐसे क्षेत्र में निवेश करना चाहता है जहाँ उसे कम मेहनत और कम समय में ही
अधिकतम लाभ मिलने लगे ! इस श्रेणी में वे व्यापार आते हैं जो पहले से ही लाभ में
हैं अथवा जिनका बाज़ार बना बनाया होता है ! कठिन और जोखिम वाले निवेश वो माने जाते
हैं जिनमें या तो भारतीय व्यापारी नाकामयाब रहे हैं अथवा जिनका बना बनाया बाज़ार
नहीं है !
जोखिम
भरे निवेश हैं बिजली का उत्पादन, सड़कों का निर्माण, नागरिक सुविधाओं का उपलब्ध
कराया जाना, अविकसित पर्यटन स्थलों का विकास व अन्य इन्फ्रा स्ट्रक्चर का निर्माण
इत्यादि ! यहाँ खतरा अधिक होता है और लाभ की गुंजाइश कम होती है ! एनरौन कंपनी का दिवालिया हो जाना जोखिम भरे निवेश का एक ज्वलंत उदाहरण
है ! सन १९९२ में महाराष्ट्र सरकार के साथ इस जानी मानी कंपनी ने 2015 मेगावाट का
बिजलीघर दोभाल में लगाने के लिये भारत में निवेश किया ! सन 1996 में कौंग्रेस सरकार
हार गयी और नयी सरकार ने इस बिजली को पुरानी तय शर्तों के अनुसार आठ रुपये प्रति यूनिट
के रेट्स पर बिजली खरीदने से इनकार कर दिया ! पूरा प्रोजेक्ट बैठ गया ! सन 2001 में एनरौन
का दिवाला निकल गया ! उसके सी ई ओ विदेशों में रिश्वत देने के अपराध के दोषी पाये जाने पर जेल भेज दिये
गये ! हमें भी आत्म चिंतन करना होगा कि इन हालात के लिये क्या हमारे नेता भी उतने ही ज़िम्मेदार नहीं
हैं ? और यह भी कि हमारे यहाँ निवेश करने से अच्छे निवेशक क्यों कतराते हैं ? आज की परिस्थिति
में यह विचार करना ज़रूरी है किस प्रकार हम अपने निवेशकों के निवेश को सुरक्षित व
लाभकारी बनाने का विश्वास उन्हें दिला सकते हैं तभी अच्छे निवेशक इस दिशा में आगे
आयेंगे !
ज़ीरो
जोखिम वाले क्षेत्र हैं तैयार खाने पीने के सामान का उत्पादन जैसे मैगी, चिप्स,
कोल्ड ड्रिंक्स, दही, पनीर, आटा तथा मैकडोनाल्ड, पिज़्ज़ा हट, के एफ सी इत्यादि के
उत्पाद ! आखिर इतनी विशाल आबादी को खाना पीना तो चाहिये ही ! सौंदर्य प्रसाधन, कपड़े
जूते तथा उच्च शिक्षा आदि भी कम जोखिम वाले क्षेत्रों में आते हैं !
भारत
में रिटेल व्यापार के दो हिस्से हैं ! पहले हिस्से में वे बड़े व्यापारी आते हैं जो थोक का काम करते हैं
और सरकारी भ्रष्टाचार की मिलीभगत से मंडियों पर कब्जा कर लेते हैं ! एक तरफ तो वे
किसानों से लागत से भी कम मूल्य पर माल खरीद लेते हैं और दूसरी तरफ छोटे खुदरा
व्यापारियों को वही माल मँहगे रेट्स पर बेचते हैं ! वास्तव में यही वह क्षेत्र है
जिसमें निवेश की सबसे अधिक आवश्यकता है ! जिससे किसान या उत्पादक को सही मूल्य मिल
सके और उत्पाद का रख रखाव, पैकिंग, नापतौल व उसे खुदरा व्यापारियों तक पहुँचाने की
व्यवस्था को सुचारू किया जा सके !
दूसरा
हिस्सा है खुदरा व्यापार का जो शहरों, कस्बों व गाँवों में बने हुए छोटे बड़े बाज़ारों
के माध्यम से कार्य करता है ! अब इस क्षेत्र में भी विदेशी तर्ज़ के मॉल बन रहे हैं
! गौर तलब बात यह है कि यदि हम अपने वर्तमान बाज़ारों को साफ़ सुथरा, ट्रैफिक जाम से
मुक्त और टॉयलेट आदि की सुविधाओं से युक्त कर सकें तो क्या ये बाज़ार अपने आप में एक
मॉल की तरह ही नहीं हैं ?
आज
रिटेल क्षेत्र में एफ डी आई को लेकर घमासान है और वाल मार्ट का नाम आ रहा है ! इस
मुद्दे पर सरकार गिराने और बनाने के दांव चले जा रहे हैं ! यह वाल मार्ट अमेरिका
में भी विवादित रहा है ! सरकारी नियमों की आड़ लेकर कर्मचारियों और बड़ा खरीदार होने के नाते छोटे उत्पादकों के
शोषण के लिये व अपने देश के व्यापारियों के हितों की अवहेलना करके दुनिया के गरीब
देशों से माल बनवा कर अमेरिका में खपाने में यह माहिर माना जाता है ! हमारे चालाक
नेताओं के इस वक्तव्य पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि वाल मार्ट को इजाज़त इस शर्त पर
दी जा रही है कि वह कम से कम ३०% भारतीय उत्पाद अवश्य बेचेगा ! इस वाक्य को पूरा
किया जाये तो यही स्पष्ट होता है को बाकी ७०% सामान चायनीज़ ही होगा ! अमेरिका में
भी वाल मार्ट के स्टोर्स ९०% सामान चायनीज़ ही बेचते हैं ! यह गलत है और देश हित
में नहीं है ! विदेशों में रिश्वत देकर अपना व्यापार बढ़ाने के सबसे अधिक मुकदमें
वाल मार्ट पर ही चल रहे हैं !
इन
सब बातों को देखते हुए क्या हमको एफ डी आई से परहेज़ करना चाहिए ? हरगिज़ नहीं !
पूँजी आखिर पूँजी है चाहे देशी हो या विदेशी ! तरक्की के लिये निवेश आवश्यक है !
ज़रूरत इस बात की है कि सही प्रोजेक्ट में सही निवेशक और तजुर्बेकार पार्टनर को
छाँटा जाये ! वर्तमान स्थिति में खुदरा व्यापार की जगह हमें मंडियों के आधुनिकीकरण,
स्टोरिंग और कोल्ड चेन ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था को और मजबूत करने के लिये बड़ी
मात्रा में निवेश और एक्स्पर्टीज़ की आवयकता है ! सही निवेशकों की कमी नहीं है ! बस
हमारी नीयत सही होनी चाहिए !
साधना
वैद !