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Thursday, February 11, 2016

नमन माँ शारदे



ऐ हंसवाहिनी
माँ शारदे
दे दो ज्ञान !
सद्मति और संस्कार से
अभिसिंचित करो
हमारे मन प्राण !
गूँजे दिग्दिगंत में
चहुँ ओर
तुम्हारा यश गान !
शरण में आये माँ
उर में धर
तेरा ही ध्यान !
तू ही मान हमारा माँ
तू ही अभिमान !
हर लो तम और
जला दो ज्ञान की
ज्योति अविराम !
दूर कर दो माँ
जन जन का अज्ञान !
चरणों में
शीश नवाऊँ मैं
स्वीकार करो माँ
मेरा प्रणाम !

साधना वैद



Tuesday, February 9, 2016

परास्त रवि


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(१)
आततायी सूर्य का, यह अनचीन्हा रूप
लज्जित भिक्षुक सा खड़ा, क्षितिज किनारे भूप !
(२)
बाँध धूप की पोटली, काँधे पर धर मौन 
क्षुब्ध मना रक्ताभ मुख, चला जा रहा कौन !
(३)
बुन कर दिनकर थक गया, धूप छाँह का जाल
साँझ हुई करघा उठा, घर को चला निढाल !
(४)
करना पड़ता सूर्य को, सदा अहर्निश काम 
देश-देश जलता फिरे, बिना किये विश्राम !
(५)
ढूँढ रहा रवि प्रियतमा, गाँव, शहर, वन प्रांत
लौट चला थक हार कर, श्रांत, क्लांत, विभ्रांत !  
(६)
आँखमिचौली खेलता, दिनकर दिन भर साथ
परछाईं भी शाम को, चली छुड़ा कर हाथ !

साधना वैद

Saturday, February 6, 2016

'सम्वेदना की नम धरा पर' - श्रीमती आशा लता सक्सेना जी की नज़र से



सम्वेदना की नम धरा पर” फैली काव्य धारा विविधता लिए है | साधना की ‘साधना’ लेखन में स्पष्ट झलकती है | बचपन से ही साहित्य में रूचि और कुछ नया करने की ललक उसमें रही जो रचनाओं के माध्यम से समय-समय पर प्रस्फुटित हुई | रचनाधर्मिता का वृहद् रूप उसकी कविताओं में समाया है |
कम उम्र से ही साधना ने पारिवारिक दायित्वों का कुशलतापूर्वक वहन किया और समय-समय पर अपने विचार लिपिबद्ध किये | साधना स्वभाव से बहुत भावुक और संवेदनशील है | सामाजिक सरोकारों के विविध विषयों और समसामयिक समस्याओं पर तथा नारी उत्पीड़न, महिला जागृति एवं कन्या भ्रूण ह्त्या जैसे संवेदनशील मुद्दों पर लिखी रचनाओं में साधना के मनोभावों की प्रस्तुति उसकी उन्नत सोच की परिचायक है | ‘मौन’, ‘पुराने ज़माने की माँ’, ‘सुमित्रा का संताप’, ‘मैं तुम्हारी माँ हूँ’, ‘तुम क्या जानो,’ ‘गृहणी’, ‘चुनौती’ जैसी रचनाएं जहाँ नारी के सतत संघर्ष की गाथा सुनाती हैं वहीं ‘आक्रोश’ और ‘मैं वचन देती हूँ माँ’ कन्या भ्रूण ह्त्या जैसी सामाजिक कुरीति की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती हैं | वह प्रकृति के सान्निध्य से भी दूर नहीं | ‘सूर्यास्त’, ‘दो ज़िद्दी पत्ते’ तथा ‘वसंतागमन’ जैसी रचनाएं उसके प्रकृति प्रेम की परिचायक हैं ! उसके भावों में गहराई है और लेखन में परिपक्वता है |
कलम का जादू और पैनी दृष्टि सहजता से रचनाओं की माला में सुरभित पुष्पों की भाँति गूँथी गयी है | ये भावपूर्ण रचनाएं साहित्यिक दृष्टि से प्रशंसनीय हैं | खूबसूरत बिम्ब यत्र-तत्र कविताओं के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं | बहु आयामी लेखन की धनी साधना का गद्य और पद्य दोनों पर ही समान अघिकार है | साहित्यिक भाषा लेखन की विशेषता है | वह अंतरजाल पर सन् २००८ से सक्रिय है | सतत लेखन नवीन लेखकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है |
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि साधना की मेहनत रंग लाई है और उत्कृष्ट रचनाओं का यह काव्य संकलन सम्वेदना की नम धरा पर” प्रबुद्ध पाठकों के समक्ष है | मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं इस महत्वपूर्ण प्रयास के लिए और यही कामना है कि साधना की कलम से इसी प्रकार कविता की अविरल धारा बहती रहे तथा जो गुण उसने हमारी माँ श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना किरण” से अर्जित किये उनका पूर्ण उपयोग कर वह इस क्षेत्र में ऐसा योगदान दे कि पाठक उसकी रचनाओं को बारम्बार पढ़ें और फिर भी पढ़ने की ललक बनी रहे |
इस उत्कृष्ट काव्य संकलन की अपार सफलता के लिये एक बार पुनः साधना को मेरा बारम्बार शुभाशीष और हार्दिक शुभकामनायें |

आशा 
सेवा निवृत व्याख्याता

Wednesday, February 3, 2016

सुहानी भोर

(१)
सात अश्व के यान पर, शोभित ललित ललाम
भुवन भास्कर आ रहे, थामे हुए लगाम ! 

(२)
दूर क्षितिज की कोर पर, उभरे रवि महाराज
तिमिर बंध कटने लगे, प्रकृति बजाये साज़ ! 

(३)
कमल पुष्प खिलने लगे, भ्रमर सुनायें गीत
उष्ण सुनहरी रश्मियाँ, दूर भगायें शीत ! 

(४)
पुलक पड़े पर्वत शिखर, पा सूरज का साथ
जगा रहीं रवि रश्मियाँ, फेर माथ पर हाथ !

(५)
पंछी दल उड़ने लगे, वसुधा हुई विभोर
जग का अँधियारा मिटा, हुई सुहानी भोर ! 

(६)
मंदिर के पट खुल गये, गूँज रहा प्रभु गान
अगर धूप की गंध से, सुरभित हैं मन प्राण ! 


साधना वैद