कहानी पुरानी है ! एक गरीब आदमी था ! पर था बहुत भला ! उसकी मुलाकात एक साधू बाबा से हुई ! साधू बाबा को उसकी गरीबी और सीधापन देख कर दया आ गयी ! अपने थैले से एक शंख निकाल कर उन्होंने उस गरीब को दे दिया और बताया कि, “यह शंख तुम्हारी सब ज़रूरतों को पूरा कर दिया करेगा ! इस शंख से जो भी माँगोगे वह तुम्हें मिल जायेगा !”
गरीब आदमी बाबा को धन्यवाद देकर शंख घर ले आया ! परिवार के साथ बैठ कर सबसे पहले शंख से भोजन माँगा ! तुरंत भोजन सामने आ गया ! खुशी-खुशी सबने भोजन किया ! फिर शंख से कपड़े व अन्य आवश्यक वस्तुएँ माँगीं और उन्हें भी शंख ने तुरंत ही उपलब्ध करा दिया ! परिवार के कष्ट दूर हो गये और वे सुखपूर्वक रहने लगे !
उनके पड़ोस में रहने वाले एक धनी पर लालची पड़ोसी ने उनके जीवन में आये इस बदलाव को देखा और गरीब आदमी से इसका रहस्य जानना चाहा ! बार-बार पूछने पर गरीब आदमी ने झिझकते हुए उसे साधू बाबा की मेहरबानी की सारी कहानी सुना दी ! धनी आदमी के मन में लालच आ गया और वह भी साधू बाबा के पास जा पहुँचा ! रुआँसा होकर अपनी गरीबी की झूठी कहानी बाबा को सुनाने लगा और अपने लिये भी एक शंख माँगने लगा ! बाबा सब समझ गये ! उन्होंने अपने झोले में हाथ डाल कर दो शंख निकाले और लालची आदमी से कहा,
“इनमें से कोई एक ले लो !”
लालची आदमी ने बाबा से दोनों का अंतर पूछा तो उन्होंने कहा,
“खुद ही जाँच लो !”
लालची आदमी ने एक शंख हाथ में लिया और उससे एक रुपया माँगा ! तत्काल एक रुपया आ गया ! फिर उसने दूसरा शंख हाथ में लिया और उससे भी एक रुपया माँगा ! शंख बोला, “एक रुपये से क्या आता है ! कम से कम दो रुपये तो माँगो !”
लालची आदमी खुश हो गया और बाबा से वही शंख लेकर घर चला आया !
अब घर आकर उसने सारे परिवार को एकत्रित किया और अपने करामाती शंख का प्रदर्शन शुरू किया ! शंख हाथ में लेकर उसने शंख से सौ रुपये माँगे ! शंख बोला, “सौ रुपये से क्या होगा कम से कम दो सौ रुपये तो माँगो !”
“ठीक है दो सौ रुपये ही दे दो !”
शंख बोला, “दो सौ रुपये से क्या होगा कम से कम चार सौ रुपये तो माँगो !” आदमी कुछ घबराया और बोला, “दे दो ! चार सौ रुपये ही दे दो !”
शंख ने समझाया, “चार सौ रुपये से कुछ नहीं होगा, आठ सौ रुपये माँगो !”
मजबूर होकर लालची आदमी बोला, “चलो आठ सौ रुपये ही दे दो !”
शंख फिर बोला, “आठ सौ रुपये से भी कुछ नहीं होगा सोलह सौ रुपये माँगो !” आदमी समझ गया कि यह शंख कुछ नहीं देगा ! भागा-भागा वह बाबा के पास पहुँचा और उन्हें सारी बातें बताईं ! बाबा ने कहा, “मुझे तो पता था कि तुम लालच वश अपनी गरीबी की झूठी कहानी सुना रहे थे फिर भी मैंने तुमको दोनों शंख दिखाये थे ! तुमने जाँच परख कर लालच में आकर जो शंख लिया उसका नाम है गपोड़शंख ! यह देता कुछ नहीं है सिर्फ बातें बनाता है ! अब कुछ नहीं हो सकता !” बेचारा आदमी मुँह लटका कर घर चला गया !
यही पुरानी कहानी आज देश में फिर दोहराई जा रही है ! विषय है जन लोकपाल बिल ! नेताओं और सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिये एक अलग से कमीशन बनाने की आवश्यकता सन् १९६३ में महसूस की गयी ! और तत्कालीन सरकार ने इसको बनाने की प्रक्रिया आरम्भ की ! सन् १९६८ में इसे लोकसभा में पेश किया गया और पास किया गया ! पर अनेक तकनीकी कारणों की वजह से जैसे राज्य सभा में बिल का पास ना हो पाना, केन्द्र में सरकारों का बदल जाना आदि के कारण सन् १९७१, १९७७, १९८५, १९८९, १९९६, १९९८, २००१, २००५, व २००८ में यह बिल बार-बार संसद में पेश किया जाता रहा पर कानून न बन सका ! सन् २०११ में श्री अन्ना हजारे की टीम ने भी इस पर काम किया और एक प्राइवेट लोकपाल बिल बनाया और उसको नाम दिया ‘जन लोकपाल बिल’ ! इसे जनता का व्यापक समर्थन मिला ! सरकार पर लोकसभा में इस बिल पर जल्दी विचार करने के लिये और इसे पास करने के लिये दबाव भी डाला गया ! आंदोलन तथा अनशन किये गये ! ऐसा लग रहा था कि प्रमुख मुद्दों पर सहमति बन रही है ! और इस बिल को जल्दी ही पास कराया जा सकता है क्योंकि इसे पास करने के लिये संविधान में संशोधन की आवश्यकता भी नहीं है और लोक सभा व राज्य सभा में इसे पास कराने के लिये आवश्यक बहुमत भी उपलब्ध है ! लेकिन बीच में कुछ भरमाने वाले सुझाव आ रहे हैं ! लोक सभा में अपने बहुचर्चित भाषण में श्री राहुल गाँधी ने कहा कि उनकी राय में एक कदम और आगे बढ़ा जाये और लोकपाल बिल को लगे हाथ संविधान में परिवर्तन कर एक संवैधानिक संस्था बनाया जाये जैसा कि निर्वाचन आयोग है परन्तु स्थिति यह है कि संविधान संशोधन के लिये आज की तारीख में सरकार के पास आवश्यक बहुमत नहीं है और राजनैतिक दलों में आपस में कितना तालमेल है वह तो हम सब देख ही रहे हैं ! संविधान में संशोधन की संभावना ना के बराबर है ! फिर सरकार कहेगी कि अब तो चुनाव में दो वर्ष ही रह गये हैं ! इस बार हमें दो तिहाई बहुमत से जिताओ और बढ़िया वाला लोकपाल कानून बनवाओ ! ना बाबा आये ना घंटा बाजे ! हमको फिलहाल बिना संवैधानिक सुरक्षा वाला जन लोकपाल बिल ही मंजूर है ! जब सही समय और मौका आयेगा तो इसे ही संवैधानिक बना दिया जायेगा ! हमको तो सादा शंख ही चाहिये ! हमें गपोड़शंख नहीं चाहिये ! अंग्रेज़ी में एक कहावत है-
A bird in hand is better than two in a bush.
साधना वैद
आपने बात तो बिल्कुल सही कही है और आम जनता चाहती भी यही है मगर ये लोग नही चाहते आखिर कुर्सी का सवाल है।
ReplyDeleteअगर यह लोकपाल बिल बन जाता तो हिंदी ब्लॉग जगत आपकी इस अच्छी पोस्ट से महरूम रह जाता।
ReplyDeleteराहुल बाबा देश की उन्नति चाहते हैं लिहाज़ा वह रचनाधर्मियों को रचना की प्रेरणा देकर हम सबका भला ही कर रहे हैं।
वैसे भी उनका चेहरा देखकर तो दिल बहल जाता है, किसी और का देखो तो इतना भी भला नहीं हो पाता।
कथा दमदार है, हमेशा से यही राजनीति का सार है।
पब्लिक ऐसे ही नेता चाहती है, जो उसे सब्ज़बाग़ दिखाए।
बढ़िया लेख.....
ReplyDeleteअति सुन्दर....
कुछ अलग हट के....!!
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबस ऐसे ही हमें कई कई दशकों से मूर्ख समझ कर नौटंकी जारी है
ReplyDeleteजब ये चाहेगा बदल देगा ज़माने का मिज़ाज।
सिर्फ क़ानूनों की इज़्ज़त कर रहा है आदमी।।
गुजर गया एक साल
हमको तो सादा शंख ही चाहिये ! हमें गपोड़शंख नहीं चाहिये !
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने इस आलेख में ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत सुन्दर ....बढ़िया लेख....
ReplyDeleteजरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
इतनी बढ़िया कहानी के माध्यम से बड़ी सामयिक -सटीक बात कह दी आपने...
ReplyDeleteएकदम सटीक उदाहरण दिया है आपने इस कहानी के ज़रिये.
ReplyDeleteगपोड़शंख कहानी के मध्यम से आज की राजनीति को सहज ही समझा दिया है ... जनता तो सादे शंख की ही चाहत लिए हुए है ... पर साधू बनाम सरकार केवल गपोड़ शंख से ही काम चलाना चाहती है ... बहुत सटीक और समसामयिक लेख ...
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