इस सरकार ने आम जनता के लिये यथार्थ में कुछ किया हो या न किया हो लेकिन
कुछ ऐसे नायाब तरीके ज़रूर ढूँढ निकाले हैं जो जादू से सबकी आँखों पर ऐसा चश्मा चढ़ा
सकते हैं कि किसी चमत्कार के तहत दुनिया भर के सारे लोग सावन के अंधे बन जायेंगे
और उन्हें भारत में सब ओर हरा ही हरा नज़र आने लगेगा ! अब देखिये ना बच्चे वास्तव
में शिक्षित हों या न हों, उन्होंने कभी स्कूल की तरफ रुख किया हो या न किया हो
देश में हज़ारों की संख्या में कागज़ी स्कूल तो हैं ना जिनमें लाखों काल्पनिक बच्चे
हज़ारों अह्सासी शिक्षकों से पढ़ रहे हैं और शिक्षित होकर अपना जीवन स्तर सुधार रहे
हैं ! और वे शिक्षित कैसे न होंगे जब आठवीं क्लास तक किसीको फेल किया ही नहीं जायेगा
तो सभी शिक्षित हो जायेंगे ना ! विश्व में भारत का दबदबा कायम हो जायेगा और यहाँ
का लिटरेसी रेट भी संसार के तमाम उन्नत एवँ विकसित देशों से मुकाबला कर सकेगा और
भारतवासियों का सिर विश्व बिरादरी के सामने गर्व से ऊँचा हो जायेगा !
इसी तरह एक और चमत्कारिक फैसला लिया गया कि ग्रामीण इलाकों में २७ रुपये से
३० रुपये तक कमाने वाला और शहरी इलाकों में ३२ रुपये से ३५ रुपये तक कमाने वाला
व्यक्ति गरीबी की रेखा से ऊपर है ! लीजिये गरीबी की पिछली परिभाषा में मात्र एक
रुपये की बढ़ोतरी कर सरकार ने एक ही झटके में देश से गरीबी काफी हद तक घटा दी और
गरीबों की संख्या एकदम से कम हो गयी ! है ना यह चमत्कार ! बस आँकड़ों की थोड़ी सी
हेराफेरी की गयी और बिना कुछ किये देश से गरीबी का सफाया हो गया ! ऐसी बाजीगरी हमारे
देश के नेता ही कर सकते हैं !
जहाँ इतने चमत्कार होते हैं मेरे मन में भी एक चमत्कार की अभिलाषा जाग उठी
है ! कोई मुझे बस एक दिन के लिये इस देश की सत्ता थमा दे तो मैं इस देश के
मंत्रियों, नेताओं. और सांसदों का सारा रुपया केवल एक माह के लिये जब्त कर उन्हें
भी जीवन यापन के लिये मात्र ३० और ३५ रुपये ही प्रतिदिन के लिये दूँ ! जिसमें वे
एक माह तक दोनों समय भरपेट खाना खाकर एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी बिता कर दिखा दें
! देश से गरीबों की संख्या घटा कर वे यही तो सिद्ध करना चाहते हैं कि ३५ रुपये तक
कमाने वाला तो गरीब है ही नहीं ! देश प्रगति कर रहा है, उन्नति की राह पर सरपट दौड़
रहा है तो यथार्थ के धरातल पर कुछ कर के भले ही ना दिखा पायें दिमागी घोड़े दौड़ा कर
लोगों को बेवकूफ तो बना ही सकते हैं ! और यह काम वे बड़ी पाबंदी और मुस्तैदी से सालों
से करते आ रहे हैं, आज भी कर रहे हैं और यदि अवसर मिल गया तो आगे भी करते रहेंगे
!
मँहगाई के इस दौर में, फल दूध की बात तो जाने ही दें, जब पेट भरने के लिये गेहूँ
चावल. मक्का बाजरा और सामान्य सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं ३२ रुपये में कोई
एक समय ही पेट भर कर खाना खा ले तो यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है लेकिन हमारे
कई बाजीगर नेता इस बात का दावा कर रहे हैं कि दिल्ली में ५ रूपयों में और मुम्बई
में १२ रुपयों में भरपेट खाना मिल सकता है ! सत्ता हाथ में आने के बाद मेरी पहली
प्राथमिकता इन नेताओं को उन्हीं के द्वारा प्रस्तावित की गयी राशि देने की होगी !
एक माह तक ३०-३५ रुपये में ना सिर्फ उन्हें दो वक्त भर पेट खाना खाना होगा बल्कि
उसमें अपने दवा इलाज के लिये भी पैसा बचाना होगा और रोटी, कपड़ा, मकान के मसलों को
भी सुलझाना होगा और बच्चों के स्कूल की फीस व पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था भी इसी में
करनी होगी ! ये तो सभी बुनियादी ज़रूरते हैं ! हमारे नेता ३०-३५ रुपयों में अपनी
गृहस्थी को सिर्फ एक माह चला कर एक आदर्श उदाहरण जनता के सामने प्रस्तुत कर दें !
फिर बाकी सबको उनका अनुकरण करने में कोई असुविधा नहीं होगी ! उन्हें एक रियायत भी
मैं दे दूँगी कि जितने सदस्य उनके परिवार में हैं उनके लिये प्रति व्यक्ति के
हिसाब से उन्हें ३० रुपये देने के लिये भी मैं तैयार हूँ ! यानी कि अगर नेताजी के
परिवार में चार सदस्य हैं तो उन्हें मैं १२०- १३० रुपये देने के लिये तैयार हूँ ! जबकि
आवश्यक नहीं कि भारत में इस आमदनी को अर्जित करने वाले व्यक्ति के परिवार में सभी
कमाने वाले हों ! घर में नन्हे शिशु से लेकर स्कूल कॉलेज जाने वाले बच्चे तथा
बीमार और आश्रित बूढ़े बुज़ुर्ग भी हो सकते हैं ! आप क्या सोचते हैं हमारे ये महान
नेता क्या इस चुनौती को सफलतापूर्वक जीत कर दिखा सकेंगे ?
ज़मीन से जुड़े होने का दावा करने वाले हमारे ये नेता आम इंसान की इन
बुनियादी ज़रूरतों की अनदेखी कैसे कर सकते हैं ! ज़रा एक बार घर में खाना पकाने के
लिये इस्तेमाल होने वाले संसाधनों जैसे कुकिंग
गैस, कोयला, मिट्टी का तेल, बिजली इत्यादि की उपलब्धता एवँ दामों पर भी दृष्टिपात
कर लें ! इतने मँहगे संसाधनों पर खाना पकाने के बाद थाली में परोसे गये खाने की
कीमत क्या हो जाती है क्या इसका अंदाजा है इन नेताओं को ? या फिर क्या यह संभव है कि परिवार के सारे के सारे सदस्य इन नेताओं के बताये गये
स्थानों पर सुबह शाम पाँच और बारह रुपये का खाना खाने के लिये पहुँच जायें ?
किसी भी शहर में हर जगह तो यह खाना इतनी सस्ती दरों पर नहीं मिलता तो क्या नेताजी सबको
उन स्थानों पर पहुँचाने के लिये निशुल्क सरकारी बसें चलायेंगे या अपनी कारें जनता
के लिये उपलब्ध करा देंगे क्योंकि सस्ते खाने तक पहुँचने के लिये लोगों
को बस, ऑटो या रिक्शा से जाने के लिये किराया बहुत चुकाना पड़ जायेगा !
शर्म आती है यह सोच कर कि इतने असंवेदनशील, हृदयहीन एवँ क्रूर लोगों को वोट
देकर हम अपने सिर आँखों पर बिठा लेते हैं और अपना खून चूसने के लिये उनके हाथों
में सारे अधिकार सौंप देते हैं ! लानत है ऐसे नेताओं पर और ऐसे सांसदों पर जिनमें
ना तो नाम मात्र को इंसानियत बची है ना ही दया माया ! रुपयों के ढेर पर बैठे हुए स्वार्थी,
आत्मकेंद्रित और दम्भी लोग ही इस तरह की बातें कर सकते हैं ! मेरे हाथों में एक
दिन के लिये सत्ता आ जाने का चमत्कार कभी हो सकेगा या नहीं यह तो दीगर बात है
लेकिन सारी जनता मिल कर इस निर्लज्ज सरकार को एक झटके में धूल चटाने का चमत्कार
ज़रूर संभव कर दिखा सकती है ! इनके पापों का घड़ा ऊपर तक लबालब भर चुका है और अब इसका
फूट जाना ही सबके हित में होगा !
साधना वैद
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