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Thursday, February 12, 2015

प्रेम पाषाण हो चुका है


जब मेघदूत की तर्ज़ पर
बादलों के पंखों पर
बड़े जतन से सवार कर
प्रियतम को भेजे हुए संदेश
धरा पर गिर
भूलुण्ठित हो जायें,
जब चाँद के कानों में कही गयी
तमाम राज़ की बातें
काल के अगम्य गह्वर में
विलीन हो राज़ ही रह जायें,
जब नभ के अनगिनत तारों के
टिमटिमाते आलोक में
घुली मिली आशा की
एक नन्हीं सी किरण भी
धीरे-धीरे चुक कर
धूमिल हो जाये,
जब आँगन के चम्पा की
घनिष्ठ सहेलियों सी शाखों के
इर्द-गिर्द पड़ी गलबहियाँ
स्वत: ही अनमनी शिथिल हो
नीचे लटक जायें,
जब आँखों के दरीचों में पसरी
इंतज़ार की लम्बी-लम्बी सूनी पगडंडियाँ
दूर-दूर तक बिलकुल
निर्जन, नि:संग, सुनसान सी
दिखाई देने लगें,
जब हवा विरक्त हो जाये,
जब बारिश की बूँदें
तन पर चुभने लगें,  
जब फिज़ाओं में गूँजते
मोहोब्बत के तराने
मद्धम होते-होते एक दम ही
मौन हो जायें,  
जब प्रेम की कोमल भावनाओं को
परिभाषित करती कवितायें
बेमानी अर्थहीन सी लगने लगें,
जब वादी में किसी भी पुकार की
कोई भी प्रतिध्वनि  
सुनाई न दे,  
जब कायनात भी
निश्चल, निस्पंद, निष्प्राण
प्रतीत होने लगे  
समझ लेना चाहिये कि 
हृदय को आंदोलित करने वाला
जीवंत प्रेम अब
पाषाण हो चुका है !
प्रेम निष्प्राण हो चुका है !

साधना वैद

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