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Monday, November 2, 2015

दिव्य सौंदर्य


हिरनी जैसे नैन हैं, चंदा जैसा रूप 
कुंतल सावन की घटा, स्मित खिलती धूप ! 

आँखों का उपकार है, कह डाली हर बात 
अधर सकुच कर रह गये, करने को संवाद !  
 
कैसे समझायें उन्हें. अंतर के जज़्बात 
तस्वीरों से क्या कभी, हो सकती है बात !

मरहम रख दें ज़ख्म पर, अंतर्मन को खोल
हर पल छिन सुरभित करें, मधुर वचन अनमोल ! 

दग्ध हृदय शीतल करें, अमृत से मृदु बोल
कानों में रस घोलते, मिसरी जैसे बोल ! 
 
विषमय करता प्रेम को, मन में शक का वास 
स्नेहिल रिश्ते टूटते, जब टूटे विश्वास ! 
 
पूँजी है विश्वास की, इस जग में अनमोल 
इसके रक्षण हित सदा, तोल मोल के बोल ! 
 
शिथिल हुए बंधन सुदृढ़, ऐसी छल की मार 
प्यार भरोसा बह गये, गहरी शक की धार ! 

गहन अंध के कूप में. मैं थी खड़ी निराश 
सूरज बन आशा उगी, किया तिमिर का नाश ! 
 
समय चितेरे ने भरे, जीवन में दो रंग 
आशा संग निराश ज्यों, फूल शूल के संग ! 
 
आस निराशा जान लो, सिक्के के दो रूप 
ज्यों काँटों संग फूल हैं, अरू छाया संग धूप ! 
 
साधना वैद


 

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