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Wednesday, April 20, 2016

जल प्रदूषण ---- एक विकट समस्या



वर्तमान में आम इंसान को दिन प्रतिदिन जल के घटते हुए स्तर एवं प्रदूषण की भीषण समस्या का सामना करना पड़ रहा है ! ज़मीन के नीचे का जल स्तर कम वर्षा के कारण हर रोज़ घट रहा है तो नदी, झील, तालाब एवं कुओं का पानी प्रदूषण से इतना गंदा हो चुका है कि इसे साफ़ किये बिना इस्तेमाल करना आपदाओं को निमंत्रण देने जैसा हो गया है ! वर्षा पर तो हमारा कोई वश नहीं है लेकिन नदियों, झीलों, तालाबों, और कुओं के पानी को यदि हम कुछ प्रयास कर प्रदूषित होने से बचा सकें तो न केवल हम अपने आज को बचा सकेंगे हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के कल को भी सँवार पायेंगे ! 

आइये ज़रा उन कारणों की जाँच पड़ताल कर लें जिनकी वजह से नदियों, झीलों व तालाबों का पानी सबसे अधिक प्रदूषित होता है !


बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव -                         
          

प्राय: बड़े-बड़े शहर व गाँव जो नदियों के किनारे बसे हुए हैं उनकी आबादी में पिछले कुछ वर्षों में कल्पनातीत वृद्धि हुई है किन्तु आबादी के अनुरूप नगर पालिकाओं की कार्य प्रणाली में न तो कोई सुधार ही आया है ना ही उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिये समुचित प्रबंध ही किये गये हैं ! नगरों में घरों के गंदे पानी की निकासी व कूड़े कचरे को हटाने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण सारा गंदा पानी घर से बाहर सड़क की नालियों में सड़ता रहता है जो अक्सर फेंके गये कूड़े कचरे से चोक हो जाती हैं और दुर्गन्ध और बीमारी के कीटाणुओं को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं ! शहर की नालियों का यह गंदा पानी और सारा कूड़ा कचरा बिना किसी ट्रीटमेंट के नदियों में ज्यों का त्यों मिला दिया जाता है जो नदियों के पानी को प्रदूषित करता है !


कल कारखानों के रसायन युक्त पदार्थों का नदियों में प्रवाहित होना –---


कल कारखानों से जो हानिकारक रसायन युक्त अपशिष्ट पदार्थ निकलते हैं उन्हें भी ट्रीटमेंट की समुचित व्यवस्था न होने के कारण जैसे का तैसा ही नदियों में बहा दिया जाता है जिनकी वजह से नदियों का पानी इतना प्रदूषित हो जाता है कि उससे कुल्ला करना भी बीमारियों को दावत देने जैसा हो जाता है ! आधुनिक खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन व कीटनाशक दवाएं भी बारिश के पानी के साथ नदियों के पानी में मिल कर पानी को प्रदूषित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं !


धार्मिक कारण ---


नदियों व तालाबों के प्रदूषण के लिये काफी हद तक जन मानस की अंधश्रद्धा व धार्मिक अनुष्ठानों का अतिरेक भी ज़िम्मेदार है ! पहले गणेशोत्सव या दुर्गा पूजा के अवसर पर शहरों में गिने चुने स्थानों पर पूजा के लिये पंडाल बनाए जाते थे और बड़ी दूर-दूर से लोग वहाँ पूजा करने के लिये आते थे ! अब शहरों की आबादी और सीमाएं बढ़ने साथ हर गली मोहल्ले में असंख्यों पंडाल बनाए जाने लगे हैं ! पूजा के बाद बड़ी संख्या में मूर्तियों तथा पूजा पाठ के लिये प्रयोग में लाये गये सामान जैसे सड़े गले हार फूल, राख, हवन सामग्री आदि का विसर्जन नदियों या तालाबों में किया जाता है जो न केवल पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं वरन पानी को बहुत अधिक प्रदूषित भी करते हैं !

हमारे देश में एक मानसिकता यह भी है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और समस्त रोगों का उपचार हो जाता है ! उनके किनारे अंतिम क्रिया करने से मृतात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसकी सद्गति हो जाती है ! इन मान्यताओं के चलते पवित्र मानी जाने वाली नदियों जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा आदि का प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ गया है क्योंकि हर समय इनके किनारे किसी न किसी शव की अंतिम क्रिया चलती रहती है व संस्कार के बाद का सारा अवशिष्ट सामान नदियों में बहा दिया जाता है ! इन नदियों में स्नान कर रोगमुक्त होने के स्थान पर अनेकों बीमारियों को लोग अपने साथ घर ले आते हैं ! कई बार तो धनाभाव के कारण शवों को बिना जलाए ही पानी में बहा दिया जाता है जो पानी में ही सड़ते रहते हैं और जलचरों का भोजन बन जाते हैं ! इस वजह से न केवल पानी ही प्रदूषित होता है नदी के जीव जंतुओं को भी बहुत हानि पहुँचती है !


आम जनता की अपनी विवशताएं एवं आदतें ---



बढ़ती हुई आबादी की पानी ज़रूरत पूरी न हो पाने के कारण लोग अक्सर नदी या तालाब पर नहाने धोने के लिये चले जाते हैं ! इसके कारण घाटों का पानी बहुत अधिक गंदा व प्रदूषित हो जाता है ! पहले के ज़माने में लोग सिर्फ पानी में डुबकी लगाते थे लेकिन अब लोग जब नदियों के घाट पर कपड़े धोने व नहाने के लिये जाते हैं तो तरह तरह के साबुन व शैम्पू इत्यादि का प्रयोग करते हैं ! नदी तालाबों के पानी में इन पदार्थों के मिलने से वह पानी बहुत अधिक गंदा हो जाता है ! 


केवल हम ही नहीं शहरों के आस पास गाँव देहात में बड़ी संख्या में गाय भैंसों को ताल तलैया में नहाते हुए और अपनी गर्मी को शांत करते हुए देखा जा सकता है ! चिंता का विषय तब हो जाता है जब इन्हीं ताल तलैयों का गंदा पानी बिना साफ़ किये हमें नलों के द्वारा घरों में इस्तेमाल करने के लिये सप्लाई किया जाता है !

इन्हीं सब कारणों से पानी हर रोज़ और अधिक गंदा होता जाता है ! घरों में जितना और जैसा पानी नलों में आ रहा है वह चिंता का विषय है ! एक तो पानी की मात्रा ही अपर्याप्त है दूसरे जो भी है और जितनी है वह भी नियमित नहीं है ! कई शहरों में तो रोज़ पानी की सप्लाई ही नहीं होती ! जहाँ होती भी है तो वह अपर्याप्त होती है ! और जो पानी नलों में आता है वह इतना गंदा होता है कि उसे यदि उबाले बिना या साफ़ लिये बिना पी लिया जाए तो प्राण संकट में पड़ सकते हैं ! नल के पानी को काँच के गिलास में निकालने पर पानी में घूमते हुए कीड़ों को बिना मैग्नीफाइंग ग्लास की सहायता के नंगी आँखों से भी सहज ही देखा जा सकता है !

उपर्युक्त कारणों पर गंभीरता से मनन किया जाए तो जल प्रदूषण के कारकों को हम भली भाँति समझ सकते हैं और इन्हें दूर करने के उपायों पर भी विचार कर सकते हैं ! सबसे पहले हमें स्वयं यह संकल्प लेना होगा कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिनके कारण जल प्रदूषित हो ! क्योंकि जल है तो कल है ! आज चेत जाइए और अपने आने वाले कल को और पीढ़ियों को रोगमुक्त और सुरक्षित कर लीजिए !



साधना वैद


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