क्रोध काम मद लोभ सब, हैं जी के जंजाल
इनके चंगुल जो फँसा, पड़ा काल के गाल !
परमारथ की राह का, मन्त्र मानिये एक
दुर्व्यसनों का त्याग कर, रखें इरादे नेक !
माया ममता मोह से, रहें सदा जो दूर
निकट रहें प्रभु के सदा, सुख पायें भरपूर !
साँप छछूँदर सी दशा, जग में ‘सच’ की हाय
बोले बिन बनती नहीं, बोले तो फँस जाय !
जीवन के उद्यान में, कम हैं सच के फूल
जो भी तोड़ेगा उन्हें, चुभ जायेंगे शूल !
दुर्गम पथ है सत्य का, मौसम भी प्रतिकूल
निर्भय होकर जो चले, पाये सुख का मूल !
साधना वैद
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