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Sunday, October 7, 2018

आमंत्रण


सुना है
तुमने किसी बुत को छूकर
उसमें प्राण डाल दिये
ठीक वैसे ही जैसे सदियों पहले
राम ने अहिल्या को छूकर
उसे जीवित कर दिया था !
सुना है तुम जादूगर हो
तुम्हें फ़िज़ा में तैरती
सुगबुगाहटों की भाषा को
पढ़ना भी आता है !
यहाँ की सुगबुगाहटों में भी
कुछ खामोश अनसुने गीत हैं
यहाँ के सर्द सफ़ेद इन
संगमरमरी बुतों में भी
कुछ धड़कने दफ़न हैं
कुछ सिसकियाँ दबी हैं
कुछ रुंधे स्वर छैनी हथौड़ी की
चोट से घायल हो
खामोश पड़े हैं
तुम्हें तो खामोशियों को
पढ़ने का हुनर भी आता है ना
तो कर दो ना साकार
इन आँखों के भी सपने,
दे दो ना आवाज़
इन पथरीले होंठों पर मचलते
हुए खामोश नगमों को,
छू लो न आकर इन बुतों को
अपने पारस स्पर्श से
कि बेहद कलात्मकता से तराशे हुए
इन संगमरमरी जिस्मों को भी
चंद साँसें मिल जायें,
कि इनकी यह बेजान मुस्कान
सजीव हो जाये,
कि इनकी पथराई हुई आँखों में
नव रस का सोता फूट पड़े !
सदियों से प्रतीक्षा है इन्हें
कि कोई मसीहा आयेगा
और इन्हें छूकर इनमें
प्राणों का संचरण कर जाएगा !
यूँ तो हर रोज़ हज़ारों आते हैं
लेकिन लेकिन ये बुत ज़माने से 
ऐसे ही खड़े हैं 
अपनी आँखों में वीरानी लिए हुए 
और अपने अधरों पर यह 
पथरीली मुस्कान ओढ़े हुए 
इनकी आँखों में
किसका ख्वाब है
किसकी प्रतीक्षा है
कौन जाने !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद

     


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