चल री गुलाबो
सुबह सुबह अपने मुख पर
हम भी धूल का उबटन लगा लेते हैं
वो कोठी वाली मेम साब की तरह
हम भी अपना चेहरा
अच्छी तरह से चमका लेते हैं !
वो तो मिलाती हैं
अपने उबटन में
दूध, दही, हल्दी, चन्दन, केसर,
मंहगे वाला तेल, नीबू का रस
और भी जाने क्या क्या ;
हमारे पास भी तो हैं
अपने उबटन में मिलाने के वास्ते
धूल, मिट्टी, रेतिया
पसीना, आँसू, घड़े का पानी
हम भी कुछ कम अमीर हैं क्या ?
देख गुलाबो
मुँह धोने के बाद घर में
बिलकुल अकेली बैठी
चाय पीती मेम साब का चेहरा
कितना थका थका सा
लगता है ना उदासी से !
और शाम को घर लौट कर
धूल पसीने का अपना उबटन
नल के पानी से धोने के बाद
हमारा चेहरा कैसा खिल उठता है
अपने बच्चों से मिल कर खुशी से !
उबटन हल्दी चन्दन का हो
या फिर धूल पसीने का
चेहरा चमकता है
सबर से, संतोष से,
मन के अन्दर की खुशी से
जो महल वालों को भी नसीब नहीं
चाहे पूछ लो किसीसे !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 07 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिव्या जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना उनके लिए जिनके विषय में लोग काम ही सोचते हैं असाधारण रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांतनु जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने" (चर्चा अंक- 3910) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सत्य कहा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर भाव लिए रचना |यथार्थ यही है |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी !
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