मैं तो चल पडी थी
सपनों की डोर थामे
दूर फलक की राह पर
लेकिन मेरा यह सुख भी
तुझे कहाँ बर्दाश्त हुआ नियति
फोड़ ही दिया ना तूने
मेरी ख्वाहिशों का गुब्बारा
लेकिन देख मेरी चाल
और देख मेरा हौसला
कभी नहीं तोड़ पायेगी तू
मेरा विश्वास और
मेरी जिजीविषा
क्योंकि जीतना ही
मेरी फितरत है !
साधना वैद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेरणा देती सुंदर सार्थक रचना।
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteसकारात्मकता से परिपूर्ण रचना...।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संदीप जी ! आपका बहुत बहुत आभार !
Deleteक्योंकि जीतना ही
ReplyDeleteमेरी फितरत है !
सुंदर सृजन आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।
हार्दिक धन्यवाद दीपक जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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